Monday, November 12, 2007

बाल कविता- बस्ते का भार



कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?


मन करता है तितली के पीछे मैं दौड़ लगाऊं।
चिडियों वाले पंख लगाकर अम्बर में उड़ जाऊं।


साईकिल लेकर जा पहुंचूं मैं परी–लोक के द्वार।
कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?


कर लेने दो मुझको भी थोड़ी सी शैतानी।
मार लगाकर मुझको, मत याद दिलाओ नानी।


बिस्किट टॉफी के संग दे दो, बस थोड़ा सा प्यार।
कब तक मैं ढ़ोऊंगा मम्मी, यह बस्ते का भार?


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8 पाठकों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

मासूम बच्चे की मासूम सी शिकायत बहुत प्यारी लगी आपकी इस बाल कविता में रजनीश जी :)

शोभा का कहना है कि -

रजनीश जी
बच्चों की व्यथाका सुन्दर चित्रण किया है ।
मन करता है तितली के पीछे मैं दौड़ लगाऊं।
चिडियों वाले पंख लगाकर अम्बर में उड़ जाऊं।
बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बाल मन की अच्छी परख रजनीश जी,

बढिया..

Mohinder56 का कहना है कि -

रजनीश जी,

बाल मनोभावों को आपने बहुत सुन्दर सब्दों में व्यक्त किया है... बधाई

Girish Kumar Billore का कहना है कि -

WAH...!WAH....!!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बहुत चुटीली कविता में सही शिकायत बच्चों की। ये बस्ते कब हल्के होंगे..पता नहीं।

*** राजीव रंजन प्रसाद

अभिषेक सागर का कहना है कि -

रजनीश जी,

सही मे बच्चों की व्यथाका सुन्दर चित्रण किया है ।
हमे जब बच्चो के बस्ते का भार ज्यादा लगता है तो बच्चो को कैसे लगता होगा..

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बालमन को आप खूब समझते हैं या आपको बचपन की सारे बातें याद हैं :)

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