कदम बढ़ाकर
कदम बढ़ाकर
कभी नही घबराना
कदम बढ़ाकर चलते जाना
मंजिल तुमको पाना.
चलते रहना जिसने सीखा
मंजिल है वह पाता
जीवन से जो कभी न हारे
वीर वही कहलाता.
साहस शौर्य जिसने दिखलाया
जग ने उसको माना.
मानवता का पहनो चोला
दीनों का दुख हरने
पर पीड़ा को अनुभव करने
घाव दुखों का भरने
खुशियां भले ही बांट न पाओ
दुख न कभी पहुंचाना.
घोर निराशा कितनी छाए
धीरज कभी न खोना
सौ बार भले ही हारो तुम
हार पे तुम न रोना
समय की कीमत तुम पहचानो
समय कभी न गंवाना.
हर ओर तुम्हारे छल खल हो
फिर भी हंसते जाना
चीर तिमिर को, सत्य, न्याय औ
प्रेम लुटाते जाना
कदम बढ़ाकर चलते जान
कोशिश करते जाना.
कवि कुलवंत सिंह

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4 पाठकों का कहना है :
कवि कुलवंत जी, आपको पढ़ना अच्छा लगता है, तब और भी जब आप बालकवि के रूप में होते है।
achchhee rachna...
कुलवंत जी, बहुत अच्चा लिखते हैं बच्चों के लिए आप. यह भी बहुत अच्छी कविता है.
aap mitron ka dhanyawaad...
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