Friday, May 8, 2009

कदम बढ़ाकर

कदम बढ़ाकर

कभी नही घबराना
कदम बढ़ाकर चलते जाना
मंजिल तुमको पाना.

चलते रहना जिसने सीखा
मंजिल है वह पाता
जीवन से जो कभी न हारे
वीर वही कहलाता.
साहस शौर्य जिसने दिखलाया
जग ने उसको माना.

मानवता का पहनो चोला
दीनों का दुख हरने
पर पीड़ा को अनुभव करने
घाव दुखों का भरने
खुशियां भले ही बांट न पाओ
दुख न कभी पहुंचाना.

घोर निराशा कितनी छाए
धीरज कभी न खोना
सौ बार भले ही हारो तुम
हार पे तुम न रोना
समय की कीमत तुम पहचानो
समय कभी न गंवाना.

हर ओर तुम्हारे छल खल हो
फिर भी हंसते जाना
चीर तिमिर को, सत्य, न्याय औ
प्रेम लुटाते जाना
कदम बढ़ाकर चलते जान
कोशिश करते जाना.

कवि कुलवंत सिंह


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4 पाठकों का कहना है :

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

कवि कुलवंत जी, आपको पढ़ना अच्‍छा लगता है, तब और भी जब आप बालकवि के रूप में होते है।

Divya Narmada का कहना है कि -

achchhee rachna...

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

कुलवंत जी, बहुत अच्चा लिखते हैं बच्चों के लिए आप. यह भी बहुत अच्छी कविता है.

Kavi Kulwant का कहना है कि -

aap mitron ka dhanyawaad...

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