स्वप्नदर्शी जी को आख़िर पटक ही दिया
स्वप्नदर्शी जी को आख़िर पटक ही दिया अंत में आकर अपने पुराने खिलाडी मनु जी ने ,स्वप्नदर्शी जी एक एक करके सबको पीछे छोड़कर आगे निकलते जा रहे थे ,तभी मनु जी ने बजरंगबली का नाम लेकर आख़िर में धोबी पटका दे ही दिया ,पहेली सुलझाने में वो आगे ही आगे थे कल से और साथ में हमे और शन्नो जी को समझा भी रहे थे कि सब लोग पहाडों की सैर करने चले गए हैं ,पर हम लोग कब उनकी बातों में आने वाले थे नही माने ,और आख़िर में मिल ही गया
w.w.f का वो पहलवान जिसे आप मनु कहे या खली ,उसने एक पहेली बता कर इन स्वप्नदर्शी जी को चारों खाने चित्त
कर दिया ,d .s chauhan जी हम सब लोग आपसे बेहद नाराज हैं ,आप के ही कहने पर हर शनिवार को पहेलीका आयोजन किया जाता है और आप हैं कि ........खैर जाने दीजिये अगली बार से जल्दी आने का प्रयास करियेगा
शन्नो बेटा ,
तुम बखूबी अपने काम को अंजाम दे रही हो,ऐसे ही अपना काम करती रहो तुम्हारी तरक्की होने वाली है ,किसी को बताना मत |
१. जूता-चप्पल
२. प्राण
३. होंठ
४. पैबंद
५. कहानी
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26 पाठकों का कहना है :
नीलम जी,
केम छे? कुछ अच्छी कुछ बुरी खबर देने के लिए धन्यबाद. स्वप्नदर्शी जी ने अपनी नींद को ताक पर रखके इस बार झपकी लेते-लेते बहुत कोशिश की पहेलियाँ सुलझाने की किन्तु पछाड़ खा गए अंत में बस एक ही वार से..... मेरा मतलब है कि एक ही पहेली के जबाब से मनु जी ने स्वप्नदर्शी जी को मात दे दी. मनु जी, आपको वधाई हो! अब आपकी तरक्की निश्चित है. Thank God! नीलम जी, आपको बहुत धन्यबाद कि आप मुझे कुछ महीनों की छुट्टी की तरक्की देने वाली हैं जिसकी मुझे भी जरूरत है सुमीत जी की तरह. देंगीं ना आप दो हफ्ते बाद, बोलिए ना, बोलिए ना?? please, please. अब स्वप्नदर्शी जी तो अपनी निद्रा में खो कर फिर से सपनो की दुनिया में पहुँच कर वहां हंसते-मुस्कुराते करवटें बदल रहे होंगे हार की पटकी खा कर. इस बार मनु जी का तुक्का बिलकुल फिट हो गया क्यों कि वह वाला सवाल तो कोई भी न सुलझा पाया था. यह अत्यंत प्रशंशा की बात है.
पर इस बार कुछ खटके वाली बात यह है कि कक्षा से अत्यंत मात्रा में छात्र और छात्राएं गायब रहे. आप इसे मेरे दिमाग का फितूर कह सकती हैं लेकिन फिर भी मैं सोच रही हूँ कि कहीं कक्षा में वह pied piper तो नहीं आया था जो अपनी बांसुरी की तान पर बच्चों को टहलाने के बहाने बाहर ले जाता है. और फिर कहीं उसके पीछे-पीछे सभी बच्चे मन्त्र-मुग्ध से खिंचे चले गये हों. सुमीत जी तो कक्षा से बहाना करके ऐसे सरके कि फिर कक्षा में तो वापस नहीं आये लेकिन महफ़िल में जाने से नहीं हिचकिचाये. भला हो चिरंजीव सुमीत जी का. बच्चा बड़ा होनहार है कि इतनी चीज़ों में वह दिलचस्पी रखता है. बिना नागा किये तन्हा जी की महफ़िल में आराम से समय बिताते हैं फिर तफरी के लिये इधर उधर निकल जाते हैं, बरखुरदार.
चलो फिर जल्दी ही मिलते हैं नीलम जी. जय श्री कृष्णा.
आपकी शुभ-चिंतक
शन्नो (कक्षा-मानीटर)
नीलम जी,
बड़ा ही खतरनाक सा शीर्षक दिया है अब के बार,,,,,
अगली बार स्वपनदर्शी जी जाने मेरी क्या गत बनाएं,,,,,
और सही भी है,,,,,,सब ने इत्ते सरे जवाब दिए और हमने केवल एक,,,,,,
और हाँ शन्नो जी,
ये बात साफ़ कर दें के ये कोई तुक्का नहीं था,,,,,
पूरे आत्मविश्वास से भरपूर जवाब था ये ,,,,,
ठीक है मनु जी, जैसा आप कहें.....नहीं होगा यह आपका तुक्का. तो फिर सवाल उठता है कि ..... क्या यह आपका जबाब किसी और का तुक्का था? कुछ भी हो आपकी हाँ में हाँ मिलाती हूँ क्यों कि पता नहीं कब आगे आपका कोई तुक्का मेरा jabaab बन जाए. वैसे चुपचाप एक बात पूंछूं.....क्या पहेलियों को सुलझाने वाली कोई तरकीब आपके हाथ लग गयी है या नीलम जी को कुछ रिश्बत देकर उत्तर-पुस्तिका प्राप्त कर ली है...?????
क्योंकि इधर आप धका-धक पहेलियाँ सुलझा रहे हैं और उधर आप के शेर मेरे मच्छरों के पीछे पड़े हुए हैं. और हाँ बहर में भी आपका lecture इतना शानदार रहा. अब तो हर जगह आपसे डर लगने लगा है. अपने दिमाग की अब बैटरी चार्ज करने का समय आ गया है.
नीलम जी आपका प्रयास बहुत अच्छा है और बच्चों के लिए दिमागी कसरत इससे अच्छी क्या होगी लेकिन एक बात कहते हुए मुझे थोडी हिचक सी हो रही है , फ़िर भी कहुंगी क्योंकि जहां बच्चों के लिए मुझे थोडी सी भी कमी महसूस होगी , वहां कहुंगी , बाकी बहुत कुछ देखकर चुप रह जाती हूं लेकिन इसमें नहीं रहुंगी कि अगर अच्छे शब्दों का प्रयोग किया जाए तो बच्चे भी अच्छा सीखेंगे । हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह बच्चों का कोना है और यहां जो भी किया जाता है बच्चॊ को ध्यान्में रखकर । भले ही इससे बडों का मनोरंजन होता हो लेकिन जो वास्तविक लक्ष्य है उससे नहीं हटना चाहिए । बच्चे जो देखते /सुनते या पढते हैं वही बोलते हैं । अगर पटकना जैसे शब्दों का इस्तेमाल करंगे तो बच्चों से क्या उम्मीद करेंगे । ऐसी टिप्पणी के लिए क्षमा , लेकिन मुझे जो उचित लगा वो कह दिया ।
humne ise dimaagi kushti ka naam diya tha ,aur jab hum kushti ke saath jodte hain to ,kushti me to bina patke aap apne pratidwandi ko haraa nahi sakte humne isme ek jagah dhobi patka shabd ka istemaal kiya hai ,kushti humaare desh ka ek gaurvaanvit khel hai ,uski shabdavali ka istemaal baal man par kuch galat ankit kar deta hai ,to aajkal ke vigyapan aur foohad nritya jo t.v me bachche dekh rahe hain ,wo shaayad jaane anjaane kya kya seekha rahe hain humaare bachchon ko .
haan ek baat par awashya sahmat hoon ki paheli jis uddeshya ko lekar suru kiya gaya tha ,wo kahi door rah gaya hai ,sirf manoronjak baaton ka wo bhi badon ki baaton ka ,maadhyam ban gaya hai ,ise band karke kuch aur rochak prastuti ka sujhaav hai to uska swaagat hai ,aur hamesha rahega
नीलम जी मै आपकी बात से सहमत हूं और मैने तो इसे बहुत अच्छा कहा है बच्चों के लिए , बन्द करने की तो बात ही नहीं है । खेद है कि आपको मेरी बात बुरी लगी । यह भी सही है कि टीवी के माध्यम से बच्चे न जाने क्या-क्या सीख रहे हैं लेकिन यहां बच्चों के साहित्य की बात हो रही है और यह कोई दो-चार दिन का खेल नहीं है । अगर कहीं कुछ गलत हो रहा है तो क्या हम स्वयं को भुला देन्गे और हमारी बाल-साहित्य रचने की कोशिश तो है ही उस फ़ूहडता के खिलाफ़ ,जिसको कई कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में परोसा जा रहा है । आपको बुरा लगा उसके लिए मै क्षमा चाहती हूं लेकिन फ़िर भी यही कहुंगी कि बच्चों के लिए ऐसी शब्दावली का प्रयोग न हो तो अच्छा है ।
humne ise dimaagi kushti ka naam diya tha ,aur jab hum kushti ke saath jodte hain to ,kushti me to bina patke aap apne pratidwandi ko haraa nahi sakte humne isme ek jagah dhobi patka shabd ka istemaal kiya hai ,kushti humaare desh ka ek gaurvaanvit khel hai ,uski shabdavali ka istemaal baal man par kuch galat ankit kar deta hai ???????
agar bachche kusti dekh rahe honge yaa seekh rahe honge ,jo gaaon ka abhi bhi prachlit aur lokpriya khel hai kyounki wahaa manoranjan ka aur koi vikalp bhi nahi hai ,bade bujurg seekhaate hain aur patakne ke liye hi kahten hain
patkne shabd me koi buraai nahi hai ,albatta heading ke taur par likha hua dekhkar logon ko bura lage to ,aage se is prakaar ke sankat me padne se hameshaa bacna hi chaahungi .
हाय राम! यह तो एक और कुश्ती चालू हो गयी.
अब मेरा माथा भी ठनकने लगा है. मुझे अपनी चिंता होने लगी है अपनी की हुई गलतियों को जानने के लिए. मैंने सोचा कि लगे हाथों मैं भी अपनी slate साफ़ कर लूं.....मेरा मतलब है कि जो भी मेरे लिखे के स्टाइल में अनुचित हो तो आप दोनों से विनती है कि बेझिझक होकर पहले मेरा मामला साफ़ करिये. मुझे बता दीजिये मेरे दोषों के बारे में, वरना आज रात भर नींद नहीं आयेगी, please. नीलम जी, सीमा जी. लगता है कि कहीं न कहीं मेरा भी दोष जरूर होगा जो आप लोग मुझे नहीं बता पा रही हैं. और मेरे लिए जानना जरूरी है क्योंकि मेरा दिल बहुत धक-धक कर रहा है. फिर चलो जल्दी से मामला रफा-दफा करते हैं. और दोनों लोग हाथ मिलाकर एक प्यारी सी मुस्कान तो मेरी तरफ फेंकिये.........हाँ यह बात रही. लेकिन पहले मेरा मामला निपटा दीजिये.
नहीं शन्नो जी,
ये आपका नहीं हमारा ही कसूर है,,,, लाइट के जाने के बाद भी हम तो स्वन्दर्शी जी के डर से जगे हुए थे के जाने किस गुस्से में भरे आते हैं ,,हमारी तरफ,,,,,,,
वे तो आये नहीं पर यहाँ पर इन दो गुनिजनो की बहस शुरू हो गयी,,,,,
और हमें बड़ा अच्छा भी लगा देख कर ,,,,,
हलाँकि हमें पटकने वाली ,,,,और धोबी पटक वाली बात दिमागी कुश्ते के हिसाब से गलत नहीं लगी.....भाई जब पटकना ही नहीं तो कुश्ती कैसी,,,,,?
पर बहुत जरूरी है सीमा जी का हस्तक्षेप,,,,,
और किसी की क्या कहें,,,,हमें खुद अपने शब्द वापस लेने पड़े है एकाध बार,,,,,
तो ये हस्तक्षेप भी होना बहुत जरूरी है,,,इसी साफगोई के साथ
एक स्वस्थ मंच की यही पहचान है,,,,,
अब मैं ज्यादा नहीं लिखूंगा क्यूंकि एक तो लाइट का भरोसा नहीं है,,,दुसरे मुज्जे के कहानी याद आ रही है,,,,
किसी समय एक टोपी वाला बंदर था,,,,
ek baar उसने देखा के आपस में दो ,,, ,,,
खैर ये कहानी फिर कभी,,,,,,,,,, ,,.,
:::::)
मनु जी,
जानती हूँ कि आप ही वह टोपी वाले बन्दर हैं और आपको धोबी वाली पटकनी लगाने में बड़ा मज़ा आता है. लेकिन आप एक डरपोक बंदर हैं जो साफ़-साफ़ कुछ ना कहकर एक नेता की तरह diplomatic बनने की हुशिआरी कर रहे हैं, ताकि आपकी टोपी ना खतरे में पड़ जाये. इधर इस तरह की बहस देख कर अपने प्राण गले में आ गए हैं कि इस सबके बीच में मैं कहाँ फिट होती हूँ. अपने से तो तो कोई गलती नहीं हुई ना? बोलो ना सब लोग जल्दी से? नीलम जी, सीमा जी, जरा देखिये तो मेरी यह बन्दर पर लिखी रचना कैसी लगी आप दोनों को? आप दोनों ही अपने बिचार बताइये क्योंकि यह टोपी वाला बंदर डर के मारे खुल कर कुछ नहीं कहेगा.
है टोपी वाला एक बंदर नेता
किसी की साइड ना वह लेता
वह बस देखे तमाशा दूर से
खाता है लड्डू मोतीचूर के
जो भी गुजरे उसके पास से
खूब रिझाता अपने हास से
हर रोज़ हाजिरी देने आता
करे मसखरी खूब हंसाता
यह बंदर पहेली में उस्ताद
हमें देनी होगी इसकी दाद
और बड़ा ही है अकल-मंद
लिखे हैं इसने शेर और छंद.
रघुपति राघव राजाराम, बिगड़े बनाओ सबके काम.
जय सियाराम, जय सियाराम.
शुभ-रात्रि
शन्नो जी , मनु जी हमारी नीलम जी से कोई बहस नहीं है बल्कि हम उनके कार्य की दिल से तारीफ़ करते हैं । भले ही समयाभाव के कारण कभी भाग न ले पाएं लेकिन निश्चय ही यह एक अच्छा प्रयास है । रही शब्दावली की बात तो एक सामान्य पाठक होने के नाते प्रथम-द्रश्टया हमें जो अनुभव हुआ , अपने विचार रख दिए । एक मामूली सा पाठक होने के नाते हमें अपने विचार प्रक्ट करने का हक तो है न । वैसे भी ऐसी छोटी-छोटी चीजों पर अगर ध्यान दिया जाए तो बुराई क्या है उसमें । अगर एक भी बच्चा किसी शब्द का गलत प्रयोग करना सीख जाता है तो मै समझती हूं कि वो किसी साहित्यिक मंच की हार है । बाकी अगर मैने कुछ गलत कह दिया हो तो फ़िर से क्षमा ।
सीमा जी,
अरे आप यह क्या कर रही हैं क्षमा मानकर मुझसे? ऐसे तो फिर मुझे भी क्षमा मांगनी चाहिए, है ना? और आप मामूली नहीं हैं. आप में बहुत ही अधिक प्रतिभा है. और मैं भी मानती हूँ कि हर किसी का अपना नजरिया होता है. और अपनेपन से बातों को सुलझा लिया जाये तो अच्छा रहता है. हम सभी का अधिकार बनता है कि समय-समय पर इशारा कर दें. मैंने भी इशारा दिया था कि मेरे लिखे में यदि कोई ऐसी-वैसी बात हो तो आप सभी को छूट है कि मुझे सही-गलत में फर्क बतायें ताकि मैं भी अपने को सुधार सकूं. वर्ना मैं अपनी खामियों को कैसे जानूंगी. हर कोई अपने तरीके से सही होता है किन्तु अपनेपन से ही कोई किसी से कुछ कह पाता है. मेरी बेचैनी बढ़ रही थी तो अचानक मैं भी अपने बारे में सोचने लगी. चलो आप में और नीलम जी में एक under standing कायम है और मुझे आप सब से बातचीत करके बड़ा अच्छा लगता है. हिन्दयुग्म एक सुखी परिवार की तरह रहे यही दुआ है.
शन्नो जी ,
आपके आशीर्वचनों की हमे बेहद बेहद जरूरत है,आप जैसे लोग जिन्दगी जीना सिखाते हैं,आगे बढ़ने का हौसला भी देते हैं
आपकी जिन्दादिली के हम कायल हैं,बस आपनी तरक्की के लिए तैयार रहिये ,कमर कस कर |(मुहावरे का प्रयोग है )सीमा जी बुरा मत मानियेगा |हह्हहहाहहहहाहा
अब हिंदी में हँसते हैं ,हम बारबार इसे लिखते हैं यह दिमाग में रखते हुए कि हंसने और रोने कि कोई भाषा नहीं होती ,संवेदनाओं की कोई भाषा नहीं होती और प्यार की कोई भाषा नहीं होती ,
दोनों बिल्ली समझ गईं बंदर जी की घात
खुद ही रोटी बाँट कर दे दी उसको मात
अब देखें कोपभाजन किन का बनना पड़ता है,,,,,
हे इश्वर ,,,,!!!!!!!!
ये पहेलियाँ न बंद हो जाएँ कहीं इस नोक झोंक में,,,,,,,
मनु जी,
चिंता ना आप करो अब दोनों हैं बनीं सहेली
कापी कलम उठाओ आती होगी नयी पहेली.
खेल बंदरवा का देखकर वो हुईं बहुत प्रसन्न
दोनों कक्षा में भागीं जब घंटी बज गयी टन्न
रोटी खाई बांटकर और बन्दर रहा था ताक
हो निराश तब भागा और टोपी से पूंछे नाक.
इस सब झंझट में हम लोग स्वप्नदर्शी जी की खबर लेना तो भूल ही गये. मनु जी से पटकी खाकर वह कराह रहे हैं. या फिर वह भी टोपी पहनकर चुपचाप फ्री का शो देखकर ही..ही..ही..ही कर रहे हैं.
अरे नही मनु जी , अब भला सागर में रहते हैं तो मगरमच्छ से दोस्ती तो करनी ही पडेगी न । कल मेरे बेटे ने मुझसे अजीब सा स्वाल पूछा कि बंदर मामा और बिल्ली मौसी आपस में क्या हुए तो मैने कहा पता नहीं, नीलम आंटी से पूछ कर बताऊंगी । ये बच्चे भी न कभी अपने से बाहर निकलने दें तो सोच पाएं न कुछ , मै तो डर गई थी कि इतने सारे बच्चे अगर एक दूसरे को .......(लिखते हुए भी डर लगता है ) प..ट..ख...ने लगे तो...????? हे राम ! अभी तक सांस फ़ूल रही है सोच-सोच कर । चलो हमने नीलम जी का कहा मान लिया । हमारे पंजाबी में एक कहावत है .....
तुहाडा केहा सिर मत्थे
परनाला उत्थे दा उत्थे
अब प्लीज मुझे इसका मतलब समझाने को मत बोलिएगा , वर्ना मै कन्नड में कुछ लिख दूंगी । आजकल थोडी-बहुत सीखने का असफ़ल प्रयास कर रही हूं ::::)))))।
जो हुआ अच्छा हुआ , अब देखिए न बंदर बिल्ली के चक्कर में अभी-अभी दो कहानियां लिखीं । शुक्रिया ।
अब तो नयी कहानी बनेगी ,एक था बन्दर ,टोपी वाला बन्दर और बिल्लियाँ थी तीन ,एक बड़ी बिल्ली थी ,और वो दोनों उस बड़ी बिल्ली का कहना मानती थी .............कहानी को पूरा करने का जिम्मा है सीमा जी का इसको इतनी जोर की पटखनी दीजिये अपनी कहानी में कि या तो टोपी पहना भूल जाए ,या फिर इसकी टोपी उसके सर करना भूल जाए ,क्योँ शन्नो जी हमारा सुझाव कैसा लगा बताईयेगा जरूर
तुहाडा केहा सिर मत्थे
परनाला उत्थे दा उत्थे
अस्सी तो समझ गए सीमा जी आप कन्नड़ सीखिए पर तमिल में सुनिए
eppadi ir kinge ,
seri naan poit varen
jisse kannad seekh rahin hain unhe itni tamil pata hogi ,jitni hume aati hai hahahahahahahahahhaahahahahahahhahaha
तो सीमा जी, नीलम जी, त्वाडे की हाल हैं?
बहुत बढ़िया कहावत सुनाई आपने जी...'सागर में रहकर मगरमच्छ से दोस्ती'. नीलम जी तुसी सुन रहे हो ना? हम पहेलियों वाले मुंडा-मुंडी मगरमच्छ हैं जी. लेकिन एक बात बताओ जी कि अब यह तीन बिल्लियाँ कहाँ से आ गयीं जी? कहीं मेरी तरफ तो नहीं देखा जा रहा है? यह तो बहुत ही naughty गल हो जायेगी. और वह बंदर कित्थे गया? उससे कहना कि अपनी टोपी इत्थे से उत्थे करने की चालाकी ना करे. लगता है तमाशा देख रहा होगा कहीं छुपकर. जरा डरपोक हैं न इसलिये. तुसी चिंता ना करो.
(पंजाबी अच्छी तरह से नहीं आती और कन्नड़ में तो मामला कतई गोल है, मतलब 0. जो कुछ जानती हूँ उसी से काम चला रही हूँ)
उधर गुरु जी भी दोहे की कक्षा में पंजाबी और कन्नड़ आदि दोहों से परिचय करा रहे हैं. मुझे तो अब बुखार आने लगा है उन्हें देखकर (मेरा मतलब है दोहो को देखकर, गुरु जी को देख कर नहीं वह तो बहुत ही चंगे हैं जी). आप दोनों तो तमाम भाषाओं के बारे में ज्ञान रखती हैं. तो दोहे की कक्षा में तो बस कमाल ही हो जायेगा....अगर पंजाबी और मद्रासी दोसे.....अजी मेरा मतलब दोहे से है जी. उनसे छोला-भटूरा और दोसे दोनों का ही मज़ा आ जायेगा कक्षा में. कोई गलत तो नहीं कहा जी मैंने? अपना तो यह बस एक सुझाव है जी.
और सीमा जी, आप बन्दर मामा और बिल्ली मौसी की कहानी लिख रही हैं तो जानकर दिल बाग़-बाग़ हो गया. तुसी एक कहना मानोगे? बन्दर मामा को आप टोपी जरूर पहनाना.
नीलम जी,
कहानी का त्वाडा आईडिया तो बहुत ही चंगा है जी. लेकिन उसमे बिल्लियाँ हिंदी और केवल हलकी -फुलकी पंजाबी में ही बात करें तो मैनू को चंगा लगेगा. वर्ना मैनू तो मैं मुंह ताकती रह जायेगी.
समझने में प्रॉब्लम हो जायेगी जी.
:-)
neelam ji , tamila gothila , salfaa-salfaa kannadaa gothi .
aur shanno ji , tusi te badi changi punjabi jaande ho | mai neelam ji vaali kahaanni likh layee hai par uh bandar nahi miliyaa jo neelam ji ne dasiyaa si . haa tuhaadaa keha man ke TOPI jaroor pahnaa ditti hai , te neelam jee de kahe mutaabik us noo PATAK ( DAR LAGDA HAI IS SHABD TO , FIR VI ) vi ditaa hai . lagda hai neelam ji noo patakan-patkaaoon vich jayaadaa majaa aaoodaa hai taa fir hun ik KUSHATI di pratiyogita vi shuru kar deni chaahidi hai taa ki nanhe-munne bachche patkan-patkaaoon sun ke dar naa jaan .
Neelam ji mujhe pata hai aapko kahaani jaroor pasand aayegi , topi aap khud pahna denaa kyonki yah kaarya mere bas kaa nahi hai , keval aap hi kar sakte ho .
mainuu sab pata hai ,tussi puraane dost ho uus topi waale bandar ki is karke ,koi gall nahi ,ye kaaj to mainuu karn de ,assi bhi dekhangi kinna badda sayaana banna chaaiyda hai ,twadaa ye topi wala dost ,(itti si punjaabi aandi hai mainuu je kuch galat likh gaya ho to
apni is badi bahan noo maaf kar dena)
सीमा जी,नीलम जी,
आप दोनों ने तो पंजाबी और कन्नड़ में ना जाने क्या-क्या कह डाला मुझे और मैं मुंह खोले पढ़ते रही. अच्छा है कि नन्हे-मुन्ने बच्चे छुट्टी पर होंगें और बाल-उद्यान पर हुई कुश्ती के बारे में जान नहीं पाये होंगे. और शुक्र है कि कुश्ती का माहौल अब ठंडा भी पड़ने लगा है.
ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति....
नीलम जी आपने ठीक कहा उस बन्दर को आप लोग जानते हैं. कभी-कभी सामने होते भी हमें वह वस्तु नहीं दिखती है. इस पहेली पर मिलकर गौर कीजिये और वह बन्दर दिख जायेगा. एक clue देती हूँ......वह बन्दर पेंटिंग भी करना जानता है और कार्टून बहुत अच्छे बनाता है. अब भी न समझ में आये तो फिर बैठ कर ताको एक दूसरे की तरफ.
:-)
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