मेरी माँ सिर्फ़ अच्छी है, सबसे अच्छी नहीं
आज मेरा स्कूल में पहला दिन था। टीचर बनना मेरा सपना था। आज वो सपना जब पूरा हुआ तो उत्साह की जगह एक अजीब सा डर लग रहा था। न जाने बच्चे कैसा व्यवहार करेंगे। मैं ठीक से पढ़ा पाऊँगी या नहीं, इसी तरह के बहुत से सवाल लिए मैंने क्लास में प्रवेश किया। मुझ को क्लास २ पढ़ाने के दी गई थी। इस क्लास में २० बच्चे थे। फूलों से मासूम बच्चे। इनको देख के तो मैं अपना सारा डर भूल गई। सभी बच्चों ने अपने नाम बताये। और अपनी जगह पर बैठ गए। तभी एक बच्ची ने उठ के कहा "मिस आप ने अपना नाम नहीं बताया"।
"अरे हाँ बच्चो, मैं अपना नाम बताना तो भूल ही गई। मेरा नाम सोनिया है।"
"बेटा आप अपना नाम फिर से बताइए"
''अन्वी" उसने कहा
"थैंक्स अन्वी कि आपने मेरा नाम पूछा"।
एक प्यारी से मुस्कान देकर वो बैठ गई। धीरे-धीरे सारे बच्चों से मेरी दोस्ती हो गई। उनकी प्यारी-प्यारी छोटी सी शैतानियाँ, मासूम सी परेशानियँ मेरा दिल मोह लेतीं। इतने दिनों में मैं सभी बच्चों के बारे में जान गई थी। सभी की पसंद-नापसंद। एक दिन मैं इंग्लिश पढ़ा रही थी। जब पढ़ा चुकी तो इरिक मेरे पास आया बोला "मिस अन्वी कहती है आप बहुत अच्छी नहीं है"
मैं अभी इरिक की बात सुन ही रही थी की अन्वी मेरे पास आई बोली "मिस आप अच्छी हैं पर बहुत अच्छी नहीं"
मैंने देखा अन्वी थोड़ा दुखी थी आगे ज्यादा पूछना मैंने उचित नही समझा।
"अन्वी कोई बात नही आप जा के अपना काम कीजिये"
अभी एक हफ्ते ही बीतें थे कि मदर्स-डे आ गया। मैंने सभी बच्चों से कहा "बच्चो, जैसाकि आप सभी जानतें हैं कि आज मदर्स दे है तो हम आज अपनी-अपनी माँ के बारे में बात करेंगे. आप सभी अपनी माँ की अच्छाई बतायेंगें"
सभी बच्चे बहुत खुश हुए। एक-एक कर के उन्होंने माँ के बारे में बताना शुरू किया। अन्वी की बारी आई उस ने भी सभी की तरह अपनी माँ की प्रशंशा की।
"तो अन्वी तुम्हारी माँ बहुत अच्छी है?"
"नहीं, मेरी माँ सिर्फ़ अच्छी है बहुत अच्छी नहीं"
मुझको पिछली घटना याद आ गई। लगा कुछ तो है पर अन्वी से पूछना आज भी ठीक नहीं लगा, कुछ दिनों बाद पेरन्ट्स-टीचर मीटिंग है, तब अन्वी की माँ से बात करूँगी। आज सुबह से ही सभी बच्चों के माता-पिता अपने-अपने समय पर आ रहे थे। उन सभी से मिल के बहुत अच्छा लगा। २ बजा और अन्वी की माँ ने कमरे में प्रवेश किया।
"आइये नीना जी कैसी हैं?"
"अच्छी हूँ।"
"आप बताइए"।
"ठीक हूँ। ये है अन्वी की आज तक की रिपोर्ट। सब कुछ बहुत अच्छा है।"
"आप को क्या लगता है क्या किसी विषय में मुझे उस पर अधिक ध्यान देना है"
नहीं, बिल्कुल नहीं सब बहुत अच्छा है बस एक बात आप से पूछना चाहती हूँ" और मैंने उनको सारी बात बता दी।
"ये बहुत अच्छा कहने पर अपसेट क्यों हो जाती है?"
ऐसा हुआ कि ये अपने दादी से बहुत लगाव रखती थी। जब उनकी मृत्यु हुई तो ये बहुत परेशान थी। मैंने उसको कहा कि जो लोग बहुत अच्छे होते हैं उनको भगवान अपने पास बुला लेता है। उनको भी कुछ अच्छे लोगों की जरूरत होती है न इसलिए ..अभी कुछ दिन पहले इस की मौसी भी एक बीमारी के कारण हम को छोड़ गई। वो भी इस को बहुत ही प्यारी थी, तभी से बहुत अच्छे कहने पर दुखी हो जाती है। हमेशा कहती है माँ तुम कभी भी बहुत अच्छी न होना नहीं तो भगवान तुम को भी अपने पास बुला लेंगे। आप से भी ये बहुत प्यार करती है इसीलिए आप को भी बहुत अच्छा नहीं कहती है।"
अन्वी की माँ के जाने के बाद न जाने कितनी देर मैं यूँ ही बैठी रही सोचा अन्वी के इस डर को हटाना होगा पर थोड़े समय बीतने के बाद।
----रचना श्रीवास्तव
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8 पाठकों का कहना है :
रचना जी आपकी मैं बहुत प्रसंशा करती हूँ, आपकी रचना पड़ते हुए मेरा गला भर आया....की जो लोग बहुत अच्छे होते है भगवान् उन्हें अपने पास बुला लेता है...कोमल मन को समझाने के लिए हम यही तो कहते है न...अच्छा लिखतीं हैं आप,बहुत-२ बधाई!
आपका ..... इस बच्चों की गली में तशरीफ़ लाने का बहुत बहुत शुक्रिया,,,,आप भी अच्छी हैं,,,,,,,,,,,,
बहुत अच्छी नहीं .............
यहाँ पर अपने बेशकीमती समय से कुछ न कुछा पल निकाल कर जरूर लिखियेगा...
रचना जी...कुछ कहने को नहीं है...
ये कहानी केवल बच्चों तक सीमित नहीं...सभी को सीख दे जाती है...
आप लिखती रहें... बाल-उद्यान आपको पाकर प्रसन्न है... मनु जी की बात पर ध्यान दीजियेगा...
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद .एक बात यहाँ कहना चाहूंगी ये कहानी एक प्यारी से बिटिया की वजह से लिखी है उस की कही एक लाइन ने मुझे रुला दिया .और तभी मैने ये कहानी लिखी .तो बिटिया ये कहानी तेरी है .
तू सदा खुश रहे ये रचना आंटी की दुआ है
रचना
रचना जी बाल-उद्यान पर आपका स्वागत है , सबसे पहले तो मुझे ही आपका वैल-कम करना चाहिए था लेकिन देरी हो गई |
आप अपना यह क्रम जारी रखिएगा और देखना हर तरह के तनाव की दवा है यहां वो भी बिल्कुल मुफ्त में :) | एक पाठक के नाते तो आप
बाल-उद्यान को खूब पढती हैं लेकिन एक रचनाकार के तौर पर कितनी मानसिक संतुष्टि मिलती है यह अनुभव बहुत सुखद होगा आपके लिए |
बच्चों के लिए लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं , हर तरह से बच्चों के मानसिक स्तर , उनकी सोच , बदलते युग के साथ उनकी जरूरतें , नैतिक शिक्षा
रोचकता, सरलता , स्पष्टता..... हर तरह से परखना पड्ता है और स्वयं को बच्चा समझे बिना हम यह कार्य नहीं कर सकते |लेकिन आपकी लेखनी तो मैं
जानती हूँ कहीं भी आपकी कोई रचना प्रकाशित होती है तो टिप्पणी भले ही न कर पाऊँ लेकिन उसके लिए समय अवश्य निकालती हूँ |आपके आने से बाल-उद्यान
के स्तर को निश्चय ही बढावा मिलेगा | चलते चलते आपकी कहानी के बारे में बस यही कहुँगी कि इससे हम बडों को सीख लेनी चाहिए कि कोई भी ऐसा जवाब बच्चों को न दें जिससे
उनके नन्हे मन पर बोझ पडे |धन्यवाद
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रचना जी बहुत ही अच्छी कहानी है मन को छू गई. बच्चों को समझाते समझाते हम उनके कोमल मन का ख्याल ही नहीं रखते. अमिता
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