परोपकार
परहित जैसा धरम न कोई,
सब करते गुणगान ।
सब धर्मों में सार छिपा है,
सेवा यही महान ।
जिसने भी इसको अपनाया
चला ईश की राह ।
सत्य, अहिंसा, दया भावना,
इसी राह की चाह ।
धन वैभव का मोल नही कुछ,
किया न पर उपकार ।
ज्ञान, ध्यान की क्या है कीमत
किया न कुछ उपकार ।
जग में जीवन सफल उसी का
करता जो उपकार ।
मिलता प्रेम, प्रसिद्धि उसी को
जग करता सत्कार ।
मानवता है इसका गहना
क्षमा, न्याय आधार ।
सत्कर्मों की बहती धारा
प्रेमपूर्ण व्यवहार ।
कवि कुलवंत सिंह
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4 पाठकों का कहना है :
कुलवंत जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
परहित जैसा धरम न कोई,
सब करते गुणगान ।
सब धर्मों में सार छिपा है,
सेवा यही महान ।
परहित सरस धरम नाही भाई पर पीरा सम नहिं अधमाई
तुलसी दास जी की पंक्तियाँ याद आ गई | बधाई
जग में जीवन सफल उसी का
करता जो उपकार ।
मिलता प्रेम, प्रसिद्धि उसी को
जग करता सत्कार ।
सीमा जी ने जो लिखा है वही में भी सोच रही थी .
आप की कविता में सच्ची बात कही गई है और सुंदर तरीके से भी
सादर
रचना
वह शक्ति हमे दो दयनिधे
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें
पर सेवा पर उपकार में हम
निज जीवन सफल बना जावें
छल-दम्भ द्वेष पाखंड झूठ
अन्याय से निशि-दिन दूर रहें
जीवन हो शुद्ध सरल अपना
सुचि-प्रेम सुधारस बरसावें...
स्कूल के वक्त की प्रार्थना याद दिला दी इस सुन्दर कविता ने कुलवंत जी..
बहुत हितोपदेशी व सुन्दर कविता हैं
बधाई
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