Thursday, July 26, 2007

ढेला और पत्ती

कभी पढी थी एक कहानी ।वही मासूम -सी कहानी सुनाती हूं बच्चों को ।एक मासूम ,भोली दोस्ती की ।एक छोटी- सी कोशिश की।
एक थी आम की पत्ती और एक मिट्टी का ढेला ।दोनो निश्चिन्त थे ।तभी आकाश में बादल घिरने लगे ।पत्ती बोली--बरसात आयेगी तो मैं तुम्हे ढंक लून्गी ।हलकी बयार भी चलने लगी ।यह देख ढेला पत्ती से बोला -"आन्धी आयेगी तो मै तुम पर बैठ जाऊन्गा "तभी ज़ोर की आन्धी आयी और बादलों की गडगडाहट के साथ तेज़ बारिश होने लगी ।
तेज़ बारिश में ढेला घुल गया और आन्धी में पत्ती उड गयी ।कहानी धीरे से बच्चों के कान में घुस गयी ।और नन्हे-मुन्ने गहरी नीन्द में सो गये ।
:)


Wednesday, July 4, 2007

बच्चे की भाषा


बच्चों के लिए भाषा क्या है ? बच्चों के लिए भाषा क्या कर सकती है ?ऐसे सवालों का जवाब् खोजते हुए कई बाल मनोवैज्ञानिको और शिक्षाविदों की कलम चली है और कई प्रयोग किए गये है ।एन सी ई आर टी के वर्तमान निदेशक श्री कृष्ण कुमार,जो हमारे गुरु भी रहे हैं, की पुस्तक बच्चे की भाषा और अध्यापक इस दृष्टिकोण से एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है और बहुत सराही भी गयी है।वे कहते है कि हम मे से कई लोग यह मानने के आदि हैं कि भाषा सम्प्रेषण का साधन है जबकि सोचने ,महसूस करने और चीज़ों से जुडने के साधन के रूप में भाषा की उपयोगिता को अक्सर भूल जाते हैं ।बच्चा भाषा द्वारा रचे गये वातावरण मे जीता और बडा होता है और भाषा का जितना लचीलेपन से वह प्रयोग करता है उतना ही जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने की उसकी क्षमता बढती है ।
*****
----सो , बच्चा शब्दों से खेलता है ,अपने अनुभवों को प्रस्तुत करता है ,पडताल और तर्क करता है।
पैदाहोने के साथ ही भाषा से उसका परिचय होता है ।शुरु शुरु मे बोली जाने वाली जितनी भी ध्वनियाँ और शब्द होते है ;उनका अर्थ भले ही वह न जाने पर धीरे धीरे उसके लिए वे महत्वपूर्ण हो जाते है ।और अनुभावों के साथ साथ उसका भाषा का दायरा भी बढता है और लचीलापन भी आता है ।वह भाषा के मामले में प्रयोगशील होता है । आप उसे कविता सिखाएँगे ---
Papa darling ,mamma darling ,
I love u
See your baby dancing
Just for you…
-वह अगली बार उसमे खुद से जोड देगा
papa darling, mamma darling,maasi darling , anupam darling ,nani darling
I love you…..
तो जितने भी सम्बन्ध उसे प्रिय हैं वह उन सब को लाएगा कविता के बीच ।यह जुडाव है ,अभिव्यक्ति है ,भावनात्मकता है । पापा का चश्मा गोल गोल की जगह जब मैने एक बच्चे को पापा का चश्मा रेक्टैंगल [पिता का चश्मा वाकई आयताकर लेंस वाला था ] कहते सुना तो समझ आया कि भाषा उसके लिए तर्क भी है । वह रेक्टैंगल शब्द से परिचित न होता तो यह तर्क नही कर सकता था ।
तुतलाने वाले बच्चे के लिए भी भाषा और ध्वनियाँ तक भी खेलने खुश होने का साधन है ।वे अपने मन से कुछ भी अटपटा गाते कहते हैं ।ऐसे ही बच्चे जो अभी भाषा और अर्थ नही जानते ,बस ध्वनि से हुलसते है ,के लिए एक कबीलाई लोकगीत प्रस्तुत है जिसका अर्थ उनके लिए महत्वपूर्ण नही । यह उनके खेलने और खिलखिलाने का गीत है जैसे – अक्क्ड बक्कड बम्बे बो ,.......सौ मे लगा ताला चोर निकल के भागा।*********

टुईयाँ गुईयाँ
ढेम्पूला की चुईयाँ
बेंगी पुंगी चिक्कुल भाकी
नक थुन धाकी भुईयाँ

अब दुन भेला ठुन् ठुन केला
बीन भनक्कम पुईयाँ

हगनू पटला झपड तो बटला
शुकमत टमटम ठुईयाँ

गझगन चिम्बू छुकछुन लिम्बू
झलबुल टोला दुईयाँ
टुईयाँ गुईयाँ
किंचुल गोला मुईयाँ ।



[हेमंत देवलेकर
द्वारा प्रस्तुत
नया ज्ञानोदय
अक्तूबर 2006]


Tuesday, July 3, 2007

Chewing Gum and Lolly Pop


Chewing Gum Chewing Gum
You are like Mom
I Chew you
and Sweet do come

Lolly Pop Lolly Pop
You are like Pop
I Love you and You Love me
I Hold you and You Kiss me
as I eat
Chop Chop Chop

*** Rajeev Ranjan Prasad