Friday, June 22, 2007

हरे भरे पेड़ो ने पहना



हरे भरे पेड़ो ने पहना पत्तों का लिबास
हर पेड़ लगता है देखो इनसे कितना ख़ास

केला, बरगद, अनार, इमली अपनी अदा दिखलाते
कई आकार,प्रकार के पत्तो से यह पेड़ सज़ जाते

इन्हे छू कर अपना हाथ इनसे मिलाओ तुम
और प्यार से गले लगा के अपना दोस्त बनाओ तुम

हवा के संग संग जब यह डोले .......
तो इनके साथ गुनगुनाओ तुम

मोटे पीपल के पत्ते से चित्रो का संसार सजाओ तुम
सूखे पत्ते से भी अपनी कलाकारी दिखाओ तुम

पैर कनेर से पत्तो से, और इमली से नाक बनाओ तुम
हरी घास की लंबी छोटी से इसकी मुंछ सजाओ तुम

हरे भरे पत्तो से ही तो होता है सुंदर धरती का आभास
इसी से सजता चिड़ियों का घर
हर पत्ता है अपने पेड़ के सिर का ताज़....


नये मेहमान

Milly, Nevah and Kingston

रिन्की, बबली जल्दी आओ
खाली प्लाट में दीवार के पीछे
घनी झाडी के पत्तों के नीचे
गली की काली कुतिया के
छोटे-छोटे,प्यारे-प्यारे बच्चे देखें

दो काले हैं, दो चितकबरे
नर्म रूई के फ़ोहे से है सब
आंख मींच कर कूं-कूं करते
भला ये आंखे खोलेंगे कब

बच्चे खडे हैं वहां लाईन लगा कर
कटीले कांटे पत्थर दूर हटा कर
पेड की टहनी और टाट लगा कर
सबने है इक छोटा घर बनाया

कोई ब्रेड तो कोई बिस्कुट लाया
काली ने लेकर उसे झट छुपाया
इधर उधर घूम रही है पूंछ हिलाती
जीभ से पिल्लों को सहलाती

बहस छिडी है उनके नामों को लेकर
मिन्टू बडी देर से खडा सोच रहा है
कैसे एक को घर उठा ले जाऊं मै
इन बाकी सब को चकमा दे कर


Thursday, June 21, 2007

तितली उड़ी

आसमान में उड़ा परिंदा
अपने पंख फैलाए
काश मुझे भी मिल जाते पंख तो
मेरे हाथ भी आते फिर
बादलों के साए

कभी उड़ते हम तितली बन के
कभी बदल बन उड़ जाते
उँचे उड़ कर हम भी
चंदा मामा को छू आते

खेलते कभी सितारो के आँचल से
कभी हवा से हम लहराते!!

- रंजना भाटिया