नये मेहमान
रिन्की, बबली जल्दी आओ
खाली प्लाट में दीवार के पीछे
घनी झाडी के पत्तों के नीचे
गली की काली कुतिया के
छोटे-छोटे,प्यारे-प्यारे बच्चे देखें
दो काले हैं, दो चितकबरे
नर्म रूई के फ़ोहे से है सब
आंख मींच कर कूं-कूं करते
भला ये आंखे खोलेंगे कब
बच्चे खडे हैं वहां लाईन लगा कर
कटीले कांटे पत्थर दूर हटा कर
पेड की टहनी और टाट लगा कर
सबने है इक छोटा घर बनाया
कोई ब्रेड तो कोई बिस्कुट लाया
काली ने लेकर उसे झट छुपाया
इधर उधर घूम रही है पूंछ हिलाती
जीभ से पिल्लों को सहलाती
बहस छिडी है उनके नामों को लेकर
मिन्टू बडी देर से खडा सोच रहा है
कैसे एक को घर उठा ले जाऊं मै
इन बाकी सब को चकमा दे कर
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पाठक का कहना है :
मोहिन्दर जी
बड़ी प्यारी कविता लिखी है । आप बाल मनोविग्यान से खूभ परिचित हैं ।
सस्नेह
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