तितली उड़ी
आसमान में उड़ा परिंदा
अपने पंख फैलाए
काश मुझे भी मिल जाते पंख तो
मेरे हाथ भी आते फिर
बादलों के साए
कभी उड़ते हम तितली बन के
कभी बदल बन उड़ जाते
उँचे उड़ कर हम भी
चंदा मामा को छू आते
खेलते कभी सितारो के आँचल से
कभी हवा से हम लहराते!!
- रंजना भाटिया
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