Thursday, June 21, 2007

तितली उड़ी

आसमान में उड़ा परिंदा
अपने पंख फैलाए
काश मुझे भी मिल जाते पंख तो
मेरे हाथ भी आते फिर
बादलों के साए

कभी उड़ते हम तितली बन के
कभी बदल बन उड़ जाते
उँचे उड़ कर हम भी
चंदा मामा को छू आते

खेलते कभी सितारो के आँचल से
कभी हवा से हम लहराते!!

- रंजना भाटिया