बगुले और मछलियाँ

बगुलों ने ऊपर से देखा
नीचे फैला छिछला पानी
उस पानी में कई मछलियाँ
तिरती-फिरती थी मनमानी
सातों अपने पर फडकाते
उस पानी पर उतर पड़े
अपनी लम्बी -लम्बी टांगों
पर सातों हो गए खड़े
खड़े हो गए सातों बगुले
पानी बीच लगाकर ध्यान
कौन खड़ा है घात लगाए
नहीं मछलियां पायीं जान
तिरती -फिरती हुई मछलियां
ज्यों ही पहुंची उनके पास ,
उन सातों ने सात मछलियां
अपनी चोंचों में ली फाँस
पर फड़काकर ऊपर उठकर
उड़े बनाते एक लकीर
सातों बगुले ऐसे जैसे
आसमान में छूटा तीर
हरिवंशराय बच्चन
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