Tuesday, July 29, 2008

दीदी की पाती वर्ग पहली कैसे बनी ?

नमस्ते है सबको | जब आप सब पढ़ाई से बोर हो जाते हैं तो क्या खेलते हैं ? या क्या करते हैं ? कुछ लोग कोई खेल खेलते होंगे कुछ नई नई कहानी की किताब पढ़ते होंगे और कुछ लोग सुलझाते होंगे वर्ग पहेली ..| आप जानते हैं वर्ग पहली कैसे बनी ? पहले वर्ग पहेली कविताओं या प्रश्न उत्तर में होती थी पर आज सबसे ज्यादा जो लोक प्रिय है वह है शब्द पहेली .सुडोक आदि इसी पहेली नया रूप हैं | वर्ग पहेली यानी क्रॉस वर्ड का इतिहास ज्यादा पुराना नही है | खेलों में एक खेल शतरंज होता है | उस में खाने बने होते हैं ,जिस में बादशाह .वजीर फिट करने होते हैं | वर्ग पहेली में कुछ वर्ग होते हैं | इन में अक्षर लिख कर दायें बाएँ ऊपर नीचे से शब्द बनाने होते हैं | इस के लिए कुछ हिंट भी दिए जाते हैं |

आज तो हर भाषा के पत्र पत्रिकाओं में वर्ग पहेली बनी होती है पर सबसे पहले जानते हैं यह कहाँ शुरू हुई ? यह सबसे पहले सन १९१३ में न्यूयार्क वर्ल्ड के रविवारीय अंक में प्रकाशित की गई | सबसे पहले वर्ग पहेली को आथर विन ने बनाया था |

सन १९२४ तक यह कई अखबारों का जरुरी हिस्सा बन गई और फ़िर इस पर पूरी एक किताब छापी गई |

आज तो यह एक क्रेज बन चुका है |बहुत से ऐसे पाठक हैं जो अखबार आने पर सबसे पहले वर्ग पहेली देखते हैं और वर्ग पहेली पूरा करके ही अखबार पढ़ते हैं |वहीँ कुछ लोग इसको समय की बर्बादी भी मानते हैं | पर मेरे ख्याल से यह शब्द ज्ञान और नए शब्दों की जानकारी का एक मजेदार खेल है ..जिस से अपनी शब्द शक्ति को बढाया जा सकता है | आप क्या कहते हैं | चलिए आप इस वर्ग पहेली को की कहानी को पढ़े और जल्दी से कोई वर्ग पहेली को सुलझाएं तब तक मैं आपके लिए नई जानकारी तलाश करती हूँ

अपना ध्यान रखे

आपकी दीदी

रंजू


Friday, July 25, 2008

मानव

अजब शक्ति मानव ने पायी,
भू पर अपनी धाक जमायी ।
जब जी चाहे व्योम विचरता,
जल को बाँध, बाँध में रखता ।

नित्य नए प्रयोग यह करता,
चाँद पे जाकर पैर रखता ।
यान ग्रहों पर अपने भेजे,
छुपे रहस्य सृष्टि के खोजे ।

विपदा कोई न राह रोके,
संकट कोई न चाह रोके ।
उद्यम से शूल मिटाता है,
प्रस्तर को भी पिघलाता है ।

पर्वत पर धाक जमाता है,
धरा में खान बनाता है ।
मंथन कर सागर का सीना,
खनिज तेल पा जीवन जीना ।

विघ्न भले ही कितने आएँ,
काँटे राहों में बिछ जाएँ ।
विचलित होता कभी नही यह,
धीरज खोता कभी नही यह ।

धरती को सिमटाया इसने,
घर घर में पहुंचाया इसने ।
प्रखर बुद्धि मानव ने पायी
अजब शक्ति मानव ने पायी ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, July 24, 2008

लोमड़ी और कौआ


जंगल में इक लोमड़ी रहती
मीठी-मीठी बातें कहती
बातों से सबको मोह लेती
मीठी बनकर ही ठग लेती
देखती रहती ऐसा मौका
जब दे सके दूसरो को धोखा
बातों में सारे आ जाते
बाद में खुद को मूर्ख पाते
इक दिन तो लोमड़ी ने देखा
कौआ इक टहनी पर बैठा
रोटी उसने मुँह में दबाई
देख के लोमडी भी ललचाई
किसी तरह से लेगी रोटी
थी लोमड़ी की नियत खोटी
जाकर बोली कौए भैया
बैठूँगी मैं वृक्ष की छैया
गरमी में मिलेगी राहत
पर मेरे मन में इक चाहत
सुनाओगे तुम जो मीठा गाना
होगा यह मौसम भी सुहाना
गरमी में मीठा संगीत
सुना दो मुझे जान के मीत
लोमड़ी ने तो की चतुराई
पर कौए को समझ में आई
लेना चाहती है वो रोटी
है लोमड़ी की नियत खोटी
यह तो है लोमड़ी की चाल
नहीं है उसे गाने का ख्याल
कौआ धोखा न खाएगा
चालाकी से समझाएगा
रोटी उसने पैर में दबाई
काँ-काँ की आवाज़ सुनाई
बहुत से कौए आ गए सुनकर
काँ-काँ करने लगे सब मिलकर
लगे वो लोमड़ी पर मँडराने
इधर-उधर से उसे सताने
दुम दबा के लोमड़ी भागी
और सबको ही समझ में आ गई
............................
मीठी बातों में नहीं आना
किसी के हाथों न खुद को लुटाना
..........................
बच्चो तुम भी बात समझना
किसी के धोखे में न आना


तुम्हारी सीमा सचदेव


Friday, July 18, 2008

जीवन का है खेल निराला

जीवन का है खेल निराला
तुम देखो और मैं देखूँ,
जैसे बुना मकड़ी का जाला
तुम देखो और मैं देखूँ ।

रंग बिरंगे लोग हैं जैसे
रंग बिरंगे फूल सभी,
खुशबू न देखे गोरा काला
तुम देखो और मैं देखूँ ।

कान्हा का जब नाम मिला तो
मीठे बन गये कड़वे बोल,
जहां बना अमृत का प्याला
तुम देखो और मैं देखूँ,

यां जाने यह माता यशोदा
यां जाने यह नंद बाबा,
दोनों ने कैसे कान्हा पाला
तुम देखो और मैं देखूँ ।

कवि कुलवंत सिंह

टिप्पणी - श्री भगवान दास पहलवानी जी ने अपने आशिर्वाद स्वरूप यह कविता मुझे भेंट की है। उनको नमन करते हुए कविता प्रस्तुत है ।


Thursday, July 17, 2008

आओ सुनाऊँ एक कहानी

बचपन में सुनते थे कहानी,
कभी सुनाते दादा-दादी,
कभी सुनाते नाना-नानी
होती थी कुछ यही कहानी
एक था राजा, एक थी रानी
दोनों मर गये ख़त्म कहानी
आज सुनो तुम मेरी ज़ुबानी
न कोई राजा, न कोई रानी
एक है भाई, एक है बहना
दोनों का मिलजुल कर रहना
भाई तो है छोटा बच्चा
और अभी है अकल में कच्चा
बहना भी है गुड़िया रानी
पर वो तो है बड़ी सयानी
माँ की ममता मिली नहीं है
बाप के पास भी वक़्त नहीं है
घर में सारी ऐशो-इशरत
आगे-पीछे नौकर-चाकर
दोनों प्यारे-प्यारे बच्चे
नन्हे से पर दिल के सच्चे
दोनों ही बस प्यार से रहते
सुख-दुख इक दूजे से कहते
इक दिन भाई बोला-बहना!
सुनो ध्यान से मेरा कहना
आज अगर अपनी माँ होती
हमें घुमाने को ले जाती
चलो कहीं पर घूम के आएँ
हम भी अपना दिल बहलाएँ
गुड़िया रानी बड़ी सयानी
समझ गई वह सारी कहानी
बोली तुम न जा पायोगे
चलते-चलते थक जायोगे
ऊपर से तो धूप भी होगी
चलोगे कैसे गर्मी होगी?
सुन कर भाई निराश हो गया
और जाकर चुपचाप सो गया
गुड़िया ने तरकीब लगाई
जिससे खुश हो जाए भाई
उनकी थी एक खिलौना गाड़ी
करते थे वो जिसपे सवारी
क्यों न उस पर भाई को बैठाए
और घुमाने को ले जाए
उस पर एक लगाया छाता
गुड़िया को तो सब कुछ आता
भाई को उसने जा के जगाया
और गाड़ी पर उसे बैठाया
निकल पड़ी वो लेकर गाड़ी
गुड़िया रानी नहीं अनाड़ी
भाई को पूरा शहर घुमाया
बहन ने माँ का दर्जा पाया
ख़त्म हो गई मेरी कहानी
ऐसी है वो गुड़िया रानी।

-सीमा सचदेव


Tuesday, July 15, 2008

दीदी की पाती...दुनिया के अजूबे

नमस्कार ,

यह दुनिया अजब गजब चीजों से भरी पड़ी है ,.जैसे पिरामिड ,ताजमहल ,आदि |पर यह तो सब इंसान ने बनाए हैं| कुछ चीजे हैरान कर देती है ,जो कुदरत बनाती है |.आप कहोगे वो कौन सी चीजे हैं |.हर साल अगस्त महीने में श्रीनगर के पास अमरनाथ में बर्फ की गुफा का शिवलिंग बनना या सर्दी के मौसम में बंगाल की खाडी में गंगा सागर द्वीप का निकलना कुदरत के अजूबो में से हैं |

कुदरत का एक सबसे हैरान कर देने वाला अजूबा अमरीका में है इसको ग्रैंड केन्यन का जादू भी बोलते हैं अमरीका के एरिजोना प्रान्त में ग्रेंड केन्यन में रंग बिरंगी चट्टाने हैं ,और भव्य नजारे हैं जो इनको प्रमुख कुदरती अजूबो में शामिल करता है |अब आप पूछोगे की क्या है वहां पर ? वहां पर है, अलग अलग रंग के मन्दिर ,दुर्ग और मीनारे |इन्हे किसी मनुष्य ने नही बनाया है| यह सब अपने आप बने हैं कैसे ? यह बने हैं वहां की नदी कोलरेडो से | इस नदी की घाटी का निरंतर क्षरण होता रहता |है सदियों से हो रहे इस क्षरण के कारण कोलरेडो नदी की घाटी को यह रूप मिला है |कोलरेडो का पानी कई सदियों से इन चट्टानों को कांट छांट रहा है |पानी ने पत्थर को इस तरह से तराशा है कि , वहां यह दिलकश नजार बन गया है |थोडी दूर तक नही बलिक कई किलोमीटर में |.ग्रैंड केन्यन की लम्बाई लगभग ३४८ किलोमीटर है और चोडाई ६ से ४६ किलोमीटर तक है ,जो घटती बढती रहती है और इसकी गहराई कहीं कहीं दो किलोमीटर तक है |

यह नदी सदियों से धीरे धीरे एरिजोना प्रांत के उत्तरी पठारों को काटती रही है | और वर्तमान रूप देती रही है |हैरानी तो यह है की पानी ने ही पत्थर को किस किस रूप में ढाल दिया है .|.वह सच मुच हैरान कर देता है ..:)

था न रोचक यह जानना ..आपको कैसा लगा लिखे |

अभी चलती हूँ |

आपकी दीदी

रंजू


Friday, July 11, 2008

डा. जगदीश चंद्र बसु

तीस नवंबर सन अठावन
ढ़ाका जिले का गांव मेमन ।
एक सौ पचास बीते वर्ष
बसु परिवार में फैला हर्ष ।

बालक जन्मा था मेधावी
था महान वैज्ञानिक भावी ।
जगदीश चंद्र का नाम मिला
ग्राम पाठशाला फूल खिला ।

किसान, मछेरे दोस्त बनते
पेड़ पौधों की बात करते ।
कोलकता का सेंट जेवियर
कालेज में विज्ञान कैरियर ।

उच्च शिक्षा विज्ञान पायी
नई खोजों में रुचि बनायी ।
पूरी कर पढ़ाई इंग्लैंड
वह लौटे अपनी मदरलैंड ।

नियत हुए प्रोफेसर पद पर
प्रेसीडेंसी कालेज चुनकर ।
अंग्रेजों का देश में राज
नियम उन्ही के उनके नाज ।

अंग्रजों से आधा वेतन
ठान लिया मैं क्यों लूँ वेतन ।
स्वाभिमान के धनी बहुत थे
अपनी जिद पर अड़े रहे थे ।

तीन वर्ष तक लिया न वेतन
कठिनाई से बीता जीवन ।
झुकना पड़ा कालेज को तब
बसु ने पाया मान सहित सब ।

प्रथम विज्ञान यंत्र बनाया
गवर्नर को प्रयोग दिखाया ।
'रेडियो वेव' पार कराई
दूर रखी घंटी बजाई ।

विज्ञान बना उनका जीवन
मार्ग कर्म, धैर्य, साहस लगन ।
धातुओं पर की कई खोजें
पेड़ पौधों में प्राण खोजे ।

पौधों में विद्युत प्रवाह कर
कंपन, कष्ट, मृत्यु अंकित कर ।
हुए अचंभित सभी देखकर
बसु बने 'पूर्व के जादूगर' ।

वैज्ञानिक पहला भारत का
गूंजा विश्व में नाम उसका ।
बसु विज्ञान मंदिर बनाया
भाषा सरल ज्ञान फैलाया ।

कवि कुलवंत सिंह


Tuesday, July 8, 2008

दीदी की पाती सुनामी लहरे ....

कैसे हैं आप सब ? बारिश के मौसम का मजा ले रहे हैं ? आप लोग आज कल एक नाम सुनते होंगे सुनामी ..हम भारतीय लोग सुनाम प्राप्त करने के लिए सु कार्य करते हैं मतलब की अच्छा नाम हो ऐसे काम करते हैं ग़लत कम करने वाले की सुनामी नही बदनामी होती है लेकिन जब समुन्दर की लहरों के साथ सुनामी जुड़ जाए तो वह बदनामी से भी बुरी हो जाती है सुनामी लहरों से सभी डरते हैं क्यूंकि वह जन धन को बहुत नुकसान पहुंचाती है

जी हाँ सुनामी हिन्दी भाषा का शब्द नही है यह जापानी शब्द है इस में सु का अर्थ बंदरगाह और नामी का अर्थ लहर होता है इस को अंग्रेजी में हार्बर वेव कहा जाता है हिन्दी में तो इन्हे मौत की लहरें कहा जाना उचित है

दिसम्बर २००४ के आखरी सप्ताह में हिंद महासागर में सुनामो लहरे उठी थी और भारत ,श्रीलंका ,थाईलैंड और इंडोनेशिया में भारी तूफ़ान और तबाही ले कर आई थी ...हजारों लोगो की जान माल का नुकसान हुआ था यह लहरे समुन्दर में भूकंप आने एक कारण उठती है पर कई बार ऐसा नही भी होता है सुनामी आने के अन्य कारण भी है जैसे समुन्दर में हुए भूसख्लन ..उल्का पिंडो का प्रभाव या समुन्द्र में किसी जवालामुखी परिवर्तन के कारण भी सुनामी लहरे तबाही मचा देती हैं
समुन्द्र तट पर रहने वाले इन लहरों के तूफ़ान को अक्सर झेलते हैं दिसम्बर २००४ के भारी नुकसान के बाद २६ देशो का एक नेटवर्क बनया गया है जो समुंदरी दबाब में हो रहे किसी भी परिवर्तन और ज्वारीय तरंगो की सूचना एक दूसरे देश को देंगे ताकि इस से बचने के उपाय किए जा सके

तो कैसी लगी आपको यह जानकारी बाकी अगली पाती में

आपकी दीदी

रंजू


Friday, July 4, 2008

मैं हूँ बालक पक्का धुन का


मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
मन लगा कर पढता हूँ नित
नहीं दुखाता मैं दिल जन का।

मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
पढ़ना लिखना लगता प्रिय मुझको
ध्येय यही मेरे जीवन का।

मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का
आगे राहें और कठिन हैं
सरल करूंगा मैं पथ जीवन का
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।

रचनाकार- कमलप्रीत सिंह


Wednesday, July 2, 2008

पक्षी होता मैं नीलगगन का


पक्षी होता मैं नीलगगन का
मीठा फल खाता मैं चमन का
इधर-उधर उड़-उड़ कर जाता
सुंदर सा इक घर मैं बनाता

मेरे सुंदर पंख भी होते
कोमल-कोमल छोटे-छोटे
अपने सुंदर पंख फैलाता
दूर गगन में उड़ कर जाता


उड़ते-उड़ते जब तक जाता
नीचे धरती पर आ जाता
फल वाले उपवन में जाता
मीठे-मीठे फल मैं खाता

जहाँ से चाहता प्यास बुझाता
जहाँ भी चाहता वहीं पे रहता
बच्चों को मैं दोस्त बनाता
मीठे फल उनको भी खिलाता

दुनिया का चक्कर मैं लगाता
उड़ता रहता कभी न रुकता
तरह-तरह का खाना खाता
जो भी मिलता, जहाँ मैं जाता

बनाता एक मित्रों की टोली
हम भी खूब खेलते होली
रंग-बिरंगे पंखों वाले
हम भी लगते कितने प्यारे

खाने का नहीं लालच करता
जाल में तो कभी न फँसता
उड़ कर किसी तरह बच जाता
मानव के कभी हाथ न आता

खुली हवा में खुले गगन में
रहते हम भी अपनी लगन में
पूरी दुनिया मेरा घर होती
क्या नदिया क्या पर्वत चोटी

पर मुझको कुछ दुख भी होता
बच्चों के संग पढ़ नहीं सकता
न मैं कभी स्कूल को जाता
न कॉपी पेन्सिल ही उठाता

मम्मी न मुझको सुबह जगाती
न वो सुबह-सुबह नहलाती
न तो खाना प्यार से मिलता
न इतना सुंदर घर होता

सर्दी-गर्मी से न बचता
मानव से डरता ही रहता
न मैं हँसता न मैं बोलता
अपना दुख फिर किससे कहता

---सीमा सचदेव