Wednesday, March 31, 2010

अपनी आँखें खोलो ,

अपनी आँखें खोलो ,
और देखो जीवन की सच्चाइयाँ
समझो अपने कर्तव्य

अपनी आँखें खोलो ,
और देखो विस्तृत संसार
उसकी सुन्दरता भी ,

जिन्दगी यूँ बीते इन जंक (विषैले )खानों में
ही फैलाने सडक पर कचरे में ,
हम झूठ बोलें कभी ,
और साहस करें सच बोलने में सभी ,

अपने भारत का निर्माण करो
नव निर्माण करो
"प्रदूषण " रुपी राक्षस को ख़तम करो
हरियाली का सपना सच करो

मेरे साथियों (दोस्तों )एक हो जाओ
उठो ,खड़े हो और फिर से जाग जाओ
अपने देश के लि
जय हिंद
जय भारत
वन्देमातरम

रूपम चोपड़ा की " REAWAKEN "
(जिसे हिंदी में तुम सबके पास लाने की कोशिश की है तुम्हारी नीलम आंटी ने )


Sunday, March 28, 2010

श्रीमान आलू जी

मैं आलू हूँ भई, मैं आलू हूँ
सीधा - साधा गोल - मटोल
स्वाद में सबसे हूँ आला
अधिक ना होता मेरा मोल.

मुझको खायें सभी स्वाद से
राजा - रानी हों या हों फ़कीर
मैं सभी सब्जियों का हूँ राजा
छोटा - बड़ा है मेरा शरीर.

उगता हूँ जमीन के अन्दर
ले जाते सब मुझको तोल
हर गरीब का पेट भरूं मैं
ना कभी बड़े मैं बोलूँ बोल.

कुत्ता, बन्दर हो या इंसान
सभी को ही मैं भाता हूँ
डाल टमाटर मुझे पकाओ
तो सब्जी मैं बन जाता हूँ.

माँ दीदी हो या फिर पापा
बाबू , अफसर हों या लालू
उंगली सभी चाट जाते हैं
चटनी डालो बनूँ कचालू.

कभी पकौड़ा बन तल जाता
कभी भून भरता बन जाता
भर दो यदि लोई के अन्दर
तो आलू की पूरी कहलाता.

मेरे ही गुण - गान करें सब
चिप्स बने या बने समोसा
आलू की टिक्की में होता
या फिर भर के बनता दोसा.

हर दावत में धाक है मेरी
हर बच्चे की मैं चाहत हूँ
बिन मेरे है नीरस भोजन
मैं हर खाने में राहत हूँ.

चाट का ठेला ले आते हैं
हर दिन ही जब भैया कालू
सुनकर हाँक सभी फिर आयें
चाहें हो कोई कितना टालू.

-शन्नो अग्रवाल


Friday, March 19, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 9 (अंतिम भाग)

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 9

मोल नही कुछ मान मुकुट का,
मोल नही कुछ सिंहासन का .
जीवन अर्पित करने आया,
माटी कर्ज़ चुकाने आया .

याचक बन कर मांग रहा हूँ,
तेरा दुख पहचान रहा हूँ .
लाल जो खेला तेरी गोदी,
डाल दे भारत माँ की गोदी .

तेरा तो घर द्वार क्रांति का,
तू जननी है स्रोत क्रांति का .
कोख पे अपनी कर अभिमान,
पाऊँ शहादत, दे वरदान .

एक पूत का गम मत करना,
सब तरुणों को पूत समझना .
जग में तेरा सदा सम्म्मान,
युगों युगों तक रहेगा मान .

खानदान की रीत निभाई,
राह क्रांति की मैने पाई .
दादा, चाचा, पिता कदम पर,
खून खौलता दीन दमन पर .

माता कर दो अब विदा विदा,
हो जाऊँ वतन पर फ़िदा फ़िदा .
रहे अभागे जो सदा सदा,
खुशियाँ हों उनको अदा अदा .

हर तरफ ध्वनित आजाज हुई,
स्वर भगत कण्ठ हर साज हुई .
भगत सिंह घर घर में छाया,
ब्रिटिश राज भी था घबराया .

वायसराय से माफी मांगें,
भगत लिखित में माफी मांगें .
कमी सजा में हो सकती है,
उनको फाँसी रुक सकती है .

देश प्रेम में मर मिट जाना,
स्वीकार नही, क्षमा माँगना .
हमें मृत्यु भय नही दिखाना,
उसको तो है गले लगाना .

हर सपूत में चाह जगाना,
मर मिटने की राह दिखाना .
जब्ती को है तोड़ गिराना,
चिता साम्राज्यवाद जलाना .

जितने दिन भी जेल रहे थे,
जीत मृत्यु को खेल रहे थे .
पूरे जग को प्रेरित करते,
आजादी में जीवन भरते .

आजादी के वह दीवाने,
देश हेतु मर मिटने वाले .
नहीं किसी से डरने वाले,
अंगारों पर चलने वाले .

कल चक्र पहचान लिया था,
दाम मौत का जान लिया था .
हँस हँस जीवन वार दिया था,
आजादी विश्वास दिया था .

अंतिम इच्छा जब पूछी थी,
अनुरति भगत की बस यही थी . (अनुरति = चाहत)
’जन्म यहीं पर फिर हो मेरा,
सेवा - देश धर्म हो मेरा .’

’दिल से न निकलेगी कभी भी,
वतन की उल्फत मर कर भी .
मेरी मिट्टी से आयेगी,
सदा खुशबू-ए-वतन आयेगी .’

क्रांतिवीर से राज्य डरा था,
युग युग चेतन प्राण भरा था .
आंदोलन का खौफ भरा था,
पतन मार्ग पर अधो गिरा था .

चौबीस को जो तय थी फाँसी,
तेईस मार्च दे दी फाँसी .
संध्या साढ़े सात समय था,
बलिदानों का अमर समय था .

पुण्य पर्व बलिदान मनाया,
हँसते हँसते ताल मिलाया .
झूम रहे थे वह मस्ताने,
संघर्ष क्रांति के परवाने .

बारूद बना कर यौवन को,
अर्पित कर के भारत भू को .
फांसी फंदा गले लगाया,
शोलों को घर घर पहुँचाया .

क्रांति की वेदी पर तर्पण,
यौवन फूलॊं सा कर अर्पण .
हँसते हँसते न्यौछावर थे,
जय इंकलाब के नारे थे .

भारत माँ ने कर आलिंगन,
भाल सजाया रक्तिम चंदन .
कण कण में वह व्याप्त हो गया,
भारत उसका ऋणी हो गया .

गीत सोहले संध्या गाये,
मिलन गीत चंदा ने गाये .
तारे भर ले आये घड़ोली,
सजी चांदनी की रंगोली .

देव उठा कर लाये डोली,
बिखरा सुरभित चंदन रोली .
पुण्यात्मा का कर कर वंदन,
लोप परम सत्ता अभिनंदन .

प्रकृति चकित कर रही थी नाज़,
आकाश मगन बना हमराज .
भूला पवन था करना शोर,
सिंधु भी भूल गया था रोर .

लहरों में आज नही हिलोर,
गम में सूरज, नही है भोर .
देव नमन को भू पर आये,
आँधी तूफाँ शीश झुकाये .

अंग्रजों का मन डोल रहा था,
सर चढ़ कर डर बोल रहा था .
मृत शरीर के कर के टुकड़े,
उसी समय बोरों में भरके,

ले फिरोजपुर वहाँ जलाया,
कुछ लोगों को वहाँ जो पाया,
टुकड़े अधजले सतलज फेंक,
नौ दो ग्यारह हुए अंग्रेज .

देखा पास नजारा आकर,
हैरानी थी टुकड़े पाकर .
ग्रामीणों ने किया सत्कार,
विधिवत किया अंतिम संस्कार .

वीर भगत तुम हममें जिंदा,
वीर भगत तुम सबमें जिंदा .
हर देश भक्त में तुम रहोगे,
जिंदा हो ! जिंदा रहोगे !

स्वतंत्रता संग्राम इतिहास,
नाम भगत सिंह ध्रुव आकाश .
नाम अमर है, अमिट रहेगा,
स्वातंत्र्य वीर अक्षुण्ण रहेगा .

आविर्भाव भारत उत्थान,
आलोकित राष्ट्र भक्ति विहान .
भगत सिंह साश्वत योगदान,
भास्कर शौर्य बलिदान महान .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, March 18, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 8

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 8

चले मुकदमें भगत सिंह पर,
और अनेक क्रांतिवीरों पर .
सत्ता ने फाँसी ठानी थी,
मुकदमों को दी रवानी थी .

भगत सिंह का आक्रोश रोष,
क्रांतिवीर का जयनाद जोश .
इंकलाब जिंदाबाद घोष,
आजादी का बना उदघोष .

इतिहास दिवस लो आया था,
निर्णय कोर्ट का लाया था .
जिस दिन की थे बाट जोहते,
दिन दिन गिन कर राह देखते .

घड़ी सुहानी वह आई थी,
बासंती में रंग लाई थी .
सहमी सत्ता ने दी पुकार,
फाँसी की थी उसे दरकार .

कोर्ट फैसला तय था फाँसी,
चौबीस मार्च दे दो फाँसी .
सन एकतीस की यह थी बात
जग रहा भाग्य भारत प्रभात .

क्रांति गतिविधियों में लिप्त थे,
आभा से मुख शौर्य दीप्त थे .
’राजगुरू’, ’सुखदेव’, ’भगत सिंह’,
फांसी लेंगे यह भारत सिंह .

गीत मिलन के तीनों गाते,
हँस हँस कर थे मौत बुलाते .
चोले को बासंती रंग माँ,
देख पुकार रही भारत माँ .

भारत जकड़ा जंजीरों में,
कूद पड़े तब हवन कुण्ड में .
आन बचाने यह भारत सिंह,
राजगुरू, सुखदेव, भगत सिंह .

सभी जुबाँ पर एक कहानी,
क्रांति वीरता भरी जवानी .
फैला जन जन क्रांति ज्वार था,
स्वतंत्रता का ही विचार था .

अभीष्ट पूरा हुआ भगत सिंह,
गर्जन थी अब हर भारत सिंह .
पैदा कर दी हर दिल चाहत,
बिन आजादी मन है आहत .

मात पिता को जेल बुलाया,
बेटे ने संदेश सुनाया .
भगत देश पर होगा शहीद,
पूरी होगी मेरी मुरीद .

दुख का आँसू आँख न लाना,
समय है मेरा मुझको जाना .
पूत आपका हो बलिदानी,
अपने खूँ से लिखे कहानी .

जन्म दिया माँ तुमने मुझको,
शीश नवाऊँ शत शत तुमको .
माता धरती, पिता आकाश,
उनके चरणों स्वर्ग का वास .

माँ तेरा उपकार बड़ा है,
किंतु देश का फ़र्ज़ पड़ा है .
भारत माँ का कर्ज़ बड़ा है,
राष्ट्र बेड़ियों में जकड़ा है .

मचल रहे अरमाँ कुरबानी,
झड़ी लगा दे अपनी जबानी,
दे दे कर आशीष अनेकों,
घड़ी शहादत आयी देखो .

देख देख जग विस्मृत होगा,
पढ़ इतिहास चमत्कृत होगा .
मुझको इतिहास बदलना है,
अब यह साम्राज्य निगलना है .

मोल नही कुछ मान मुकुट का,
मोल नही कुछ सिंहासन का .
जीवन अर्पित करने आया,
माटी कर्ज़ चुकाने आया .

याचक बन कर मांग रहा हूँ,
तेरा दुख पहचान रहा हूँ .
लाल जो खेला तेरी गोदी,
डाल दे भारत माँ की गोदी .

तेरा तो घर द्वार क्रांति का,
तू जननी है स्रोत क्रांति का .
कोख पे अपनी कर अभिमान,
पाऊँ शहादत, दे वरदान .

एक पूत का गम मत करना,
सब तरुणों को पूत समझना .
जग में तेरा सदा सम्म्मान,
युगों युगों तक रहेगा मान .

खानदान की रीत निभाई,
राह क्रांति की मैने पाई .
दादा, चाचा, पिता कदम पर,
खून खौलता दीन दमन पर .

माता कर दो अब विदा विदा,
हो जाऊँ वतन पर फ़िदा फ़िदा .
रहे अभागे जो सदा सदा,
खुशियाँ हों उनको अदा अदा .

कवि कुलवंत सिंह


Wednesday, March 17, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 7

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 7

मुकदमें की जब चली कहानी,
खुद अपनी पैरवी की ठानी .
इंकलाब को देने रवानी,
जन जन क्रांति धूम मचानी .

सोच समझ कर चाल चली थी,
अंग्रेजों को खूब खली थी .
नवज्योति की ज्वाला जली थी,
घर घर में वह फैल चली थी .

भारत भू का कण कण दीपित,
पूर्ण राष्ट्र में क्रांति प्रज्ज्वलित .
भयभीत तिमिर था भाग रहा,
भाग्य भारती का जाग रहा .

अवसर आया सब कहने का,
अपनी बातें दोहराने का .
सकल विश्व को बात सुनाई,
अंग्रेजों की नींद उड़ाई .

भारत में चेतनता लायी,
ज्वालामुखी ने ली अंगड़ाई .
सकल विश्व को किया अचंभित,
सृष्टि देखती थी स्तंभित .

ले हथेली शीश था आया,
नेजे पर वह प्राण था लाया . (नेजे = भाला)
अभिमानी था, झुका नही था,
दृढ़ निश्चय था, रुका नही था .

लहौर जेल में कैदी थे,
क्रांतिकारी कई बंदी थे .
जेल की हालत बद बेहाल,
सुविधायें खाना बुरा हाल .

जेले में ठानी भूख हड़ताल,
बने सत्ता का जी जंजाल .
ऐतिहासिक वह भूख हड़ताल,
सबसे लंबी भूख हड़ताल .

चौंसठ दिन का वह अनशन था,
सरकार को झुकना पड़ा था .
अनशन में साथी को खोया,
जतिनदास पर जग था रोया .

पुण्य धरा पर अर्ध्य चढ़ाकर,
कुरबानी का रक्त चढ़ाकर .
अख्ण्ड रोष का नाद सुनाकर,
यौवन को भूचाल बनाकर .

देश भक्ति का रंग लगाकर,
प्रेम बीज से पेड़ उगाकर .
निज यौवन को लपट बनाकर,
जीवन को संग्राम बनाकर .

स्वतंत्र भू का स्वप्न सजाकर,
प्रचन्ड अग्नि तन मन लगाकर,
माटी खुशबू श्वास बसाकर,
प्राणों को रथ प्रलय बनाकर .

पीड़ा को आघात बना कर,
क्रूर काल को ग्रास बनाकर,
पराधीनता चिता सजाकर,
विजय पताका भू लहराकर .

घर घर में सिंह भगत समाया,
हर जुबां पर नाम वह आया .
सत्ता सहम गई थी डर से,
शासन उखड़ गया था जड़ से .

नाम भगत सिंह जब जब आता,
रोम रोम संचार वीरता .
सत्ता थर थर थी थर्राई,
भगत सिंह से थी घबराई .

भगत भाई कुलबीर सिंह थे,
भगत सिंह जब जेल बंद थे,
कुलबीर ने दिखाये रंगे थे,
गतिविधियां देख सभी दंग थे .

’नौजवान भारत सभा’ भार,
अपने कंधों पर लिया भार .
खूब निभाई जिम्मेदारी,
लोहा लेने की थी बारी .

गोरों का इक समारोह था,
किंगा जार्ज पर उत्सव था .
पूरे शहर की बिजली काटी,
समारोह को जगमग बाँटी .

कुलबीर का आक्रोश भड़का,
वह भाई भगत की राह चला .
उत्सव की बिजली को रोका,
दस वर्ष की जेल को भोगा .

कवि कुलवंत सिंह


Monday, March 15, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 6

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 6

नियति ने की थी घड़ी जो नियत,
कण कण जिसके लिये था सतत .
निशि दिन देखते कब से राह,
अरुण उदय होता नित ले चाह .

चंद्र किरण फिर, लगे चमकने,
नभ में तारे, लगें दमकने .
महक कब भरेगी फिर से पवन ?
आँचल फिर कब खिलेंगे चमन ?

उस क्षण को था बेचैन सागर
उस पल को था बेताब अंबर .
सुरभि मंजरी फिर से चाहे,
कल कल सरिता बहना चाहे .

भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने,
पूर्ण विश्व को जागृत करने .
सत्ता को झकझोर डालने,
सुप्त प्राणों में जान डालने .

युग युग का संदेश सुनाने,
जन जन को विश्वास दिलाने .
सूखे दीपों में घृत डालने,
हृदयों में अंगार बाँटने .

देश - भक्ति की धार बहाने,
नयी विभा की चमक जगाने .
जड़ता में चेतनता लाने,
किरणों को आलोक दिलाने .

नस नस में लावा दौड़ाने,
रोम रोम ज्वाला भड़काने .
अवनत भाल अभिमान दिलाने,
झुके गगन का शीश उठाने .

सेंट्रल असेंबली सभागार,
दो बम फोड़े लगातार .
मकसद तीनों काल हिलाना,
नहीं किसी की जान को लेना .

इंकलाब के नारे लगाये,
बिना अपनी पहचान छुपाये .
डटे रहे वह उसी जगह पर,
खुश थे अपनी गिरफ्तारी पर .

भारत भू ने किया अभिसार,
अंबर को फिर मिला विस्तार .
विभा गर्व से झूम रही थी,
दबी आग फिर मचल उठी थी .

जन जन में विश्वास था लौटा,
अभी अंत सत्ता का होगा .
सृष्टि कर रही अमर श्रृंगार
अखिल विश्व का बना सुकुमार .

भारत माँ का सच्चा सपूत,
हर माँ का वह बन गया पूत .
संदेश सुनाने ईश - दूत,
आया था बन कर वीर पूत .

सबकी आँखों का तारा था,
देश - भक्ति का वह नारा था .
जन जन के दिल को प्यारा था,
छटने लगा अब अंधियारा था .

गूँज उठा घर घर भगत सिंह,
राष्ट्र भक्ति प्रतीक भगत सिंह .
सागर का गर्जन भगत सिंह,
सृष्टि का श्रृंगार भगत सिंह .

जनता का विश्वास भगत सिंह,
वीरों का उल्लास भगत सिंह .
प्रलय का आधार भगत सिंह,
कण कण में साकार भगत सिंह .

मूकों की चिंघाड़ भगत सिंह,
युगयुग की हुंकार भगत सिंह .
रुदन का प्रतिकार भगत सिंह,
शक्ति का अवतार भगत सिंह .

अरुण का आलोक भगत सिंह,
किरणों का प्रकाश भगत सिंह .
अंगारों का ताप भगत सिंह,
भारत का सरताज भगत सिंह .

युवकों का आदर्श भगत सिंह,
हृदयों का सम्राट भगत सिंह .
हर कोख की चाहत भगत सिंह,
शहादत की मिसाल भगत सिंह .

कवि कुलवंत सिंह


Saturday, March 13, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 5

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 5

देश प्रेम का ज्वार भरा था,
रोम रोम अंगार भरा था .
मन में शोले भड़क रहे थे,
स्वतंत्रता को तड़प रहे थे .

प्रचण्ड शक्ति संचित कर भाल,
सत्ता को चुनौती विकराल .
पवन को भर कर अपनी श्वास,
पावक उगलने का विश्वास .

कड़क विहंसती विद्युत धारा,
टूट पड़ा अंबर घन सारा .
अंग अंग अभिमान तरंगें,
लहराये नगर नगर तिरंगे .

युग का गर्जन बन कर आया,
सिंधु प्रलय वह भीषण लाया .
राष्ट्र दर्प हुंकार लगाई,
ललाट लालिमा लहू सजाई .

काल कपाल कराल कामना,
सत्ता सिमटे सिंह सामना .
भीतर भभक भर भुजा भुजंग,
धधकाई धरती धड़क धड़ंग .

अंबर पर आग लगाने को,
कंपित धरती कर जाने को,
पीड़ा की आह मिटाने को,
जब्ती को तोड़ जगाने को .

झंझा झकझोर जमाने को,
लहरों पर नाव चलाने को,
तूफानों पर चढ़ जाने को,
प्रचण्ड विरोध दिखलाने को .

भीषण अंगार जलाने को,
जंजीरों को पिघलाने को,
वाणी देने मौन क्रोध को,
अपमानों के गरल घूँट को . (गरल = विष)

जुल्मों से लोहा लेने को,
सत्ता गोरी मटियाने को,
बन जुनून सर चढ़ जाने को,
भारत भर में छा जाने को .

देखो देखो वह आया है,
क्रांति भगत सिंह ले आया है .
सच्चा सपूत अब आया है,
क्षितिज शौर्य फिर फहराया है .

ध्वनित हुए फिर राग प्रभाती,
जन जन में थी आशा जागी .
सुप्त राष्ट्र में प्राण भर गये,
इंकलाब के गीत बस गये .

बन आँधी ललकार लगाई,
अंग्रेजों की नींद उड़ाई .
हर सपूत में ज्योत जलाई,
भारत माँ को आश जगाई .

बही हवा वो आँधी की जब,
धधकी ज्वाला नगर नगर तब .
चिनगारी बन तरुण हृदय हर,
क्रांति ज्योति की फैली घर घर .

मिली ज्योत से ज्योत अनेकों,
आँधी बन गई तूफाँ देखो .
गाँवों, नगरों, देहातों में,
विजय पताका सब हाथों में .

साइमन कमीशन जब आया,
विरोध सभी ने था जताया .
लाठी चार्ज जम कर कराई,
लाला जी ने जान गवाई .

ठान लिया था बदला लेना,
अधीक्षक सांडर्स को उड़ाना .
क्रांतिकारियों के संग मिलकर,
मारा उसे गोली चलाकर .

यौवन को अंगार बना कर,
मुकुट अभिमान देश सजाकर,
क्रांति में नई जान फूँक दी,
अखिल राष्ट्र टंकार छोड़ दी .

धुन के पक्के मतवाले जब,
चलते हैं तो फिर रुकते कब ?
पथ में काँटे, पग में छाले,
विजय प्राप्ति तक चलने वाले .

गठन ’नौजवान भारत सभा’,
भर राष्ट्र प्राण आलोक प्रभा .
नस नस में ज्वाला भभक रही,
ले अभय जवानी धधक रही .

विष जो सत्ता ने बोया था,
सिंह जहर उगलने आया था .
जो दारुण दर्द दबाया था,
वह दर्द मिटाने आया था .

बाँध कफन को निकला घर से,
सत्ता सहम गई थी डर से .
तैरा तूफाँ पर मरदाना,
चला सुनामी पर दीवाना.

कवि कुलवंत सिंह


शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 4

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 4

कदम जवानी धरा भगत ने,
दादा, दादी, माँ, चाची ने,
कहा सभी ने मिल इक स्वर में,
बाँधो इसको अब परिणय में .

घर में पहले बात छिड़ी थी,
गली गाँव फिर घूम चली थी .
यौवन में पग रखता जीवन,
मधुर उमंग से खिलता तन मन .

मंद पवन जब मधु रस भरता,
दर्पण यौवन रस निहारता .
तन मन कलियाँ मादक खिलतीं,
प्रेम लहर जब लह लह चलती .

शबनम जब आहें भरती है,
खुशबू भीनी सी उठती है .
लेते अरमाँ जब अंगड़ाई,
प्रीत वदन दिल में शहनाई .

फूल करें जब दिल मतवाला,
प्रेम सुधा का छलके प्याला .
गान बसंती हृदय सुनाता,
तन मन को आह्लादित करता .

झन झन कर झंकार हृदय में,
पायल सी खनकार हृदय में .
खन - खन खनकें चूड़ी कंगन,
तन मन में उपजे प्रीत अगन .

उद्दाम प्रेम की सहज राह,
सुवास कुसुम नैसर्गिक चाह .
रूप आलिंगन मधु उल्लास,
नव यौवना की बाँह विलास .

यौवन देखे बस सुंदरता,
जगती में बिखरी मादकता .
प्रेम पींग ले काम हिलोरें,
छोड़ें मनसिज बाण छिछोरे . (मनसिज = मदन)

बात भगत जब पड़ी कान में,
बांध रहे परिणय बंधन में .
खिन्न हुआ, यह कर्म नही है,
शादी मेरा धर्म नही है .

गुलाम देश है भारत मेरा,
कर्तव्य पुकार रहा मेरा .
माता मेरी जब बंदी हो,
न्याय व्यवस्था जब अंधी हो .

हथकड़ियाँ हों जब हाथों में,
बेड़ी जकड़ी जब पाँवों में .
बोल मुखर जब नही फूटते,
पथ सच्चों को नही सूझते .

बहनों का सम्मान न होता,
अपमान जहाँ पौरुष होता .
प्रतिकार शक्ति छीनी जाती,
सच्चाई धिक्कारी जाती .

आँसू भय से नही टपकते,
हाय दीन की नही समझते .
आलोक जहाँ छीना जाता,
अभिमान जहाँ रौंदा जाता .

सिंदूर जहाँ मिटाये जाते,
दीपक जहाँ बुझाये जाते .
दुर्दिन को जब देश झेलता,
बढ़ी दरिद्रता नित्य देखता .

प्रकृति संपदा भारत खोता,
दुर्भिक्ष के दिन रोज सहता .
आह, कराहें सुनी न जातीं,
पीड़ा, आँख से बह न पाती

पराधीनता श्राप बड़ा है,
दूजा कोई न पाप बड़ा है .
देश गुलामी में जकड़ा है,
जैसे गर्दन को पकड़ा है .

कर्तव्य सर्वप्रथम निभाना,
देश को आजादी दिलाना .
शादी की अब बात न करना,
परिणय का संवाद न करना .

देश गुलामी में जब तक है,
एक मृत्यु को मुझ पर हक है .
कोई नही बन सकती पत्नी,
मौत सिर्फ हो सकती पत्नी .

कवि कुलवंत सिंह


Friday, March 12, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 3

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 3

हृदय विदारक दारुण क्रंदन,
परम पिता ने कर आलिंगन,
परम वंद्य आत्मा आवाहन,
भारत भेजा अपना नंदन .

बंगा लायलपुर जनपद में,
किसन, विद्यावती के घर में,
ईशा सन उन्नीस सौ सात,
सितंबर सत्ताइस की रात .

जन्म पुण्य आत्मा ने पाया,
क्रांतिकारियों के घर आया .
स्वतंत्रता के चिर सेनानी,
कुटुंब की थी यही कहानी .

सूर्य एक दमका था जग में,
भारत माता के आंगन में .
भाग्यवान बन आया था सिंह,
दादी बोली नाम भगत सिंह .

दादा अर्जुन सिंह वरदानी,
तीन पूत, तीनों सेनानी .
कूट कूट वीरता भरी थी,
सत्ता भी सहमने लगी थी .

पिता किसन सिंह की लड़ाई,
’भारत - सोसायटी’ बनाई .
उन पर डाले कई मुकदमें,
काटे ढ़ाई वर्ष जेल में .

वर्ष और दो नजरबंद थे,
गतिविधियों में पर दबंग थे .
डर कर चाचा अजीत सिंह से,
रंगून जेल भेजा यहाँ से .

दूजे चाचा स्वर्ण सिंह थे,
लाहौर सेंट्रल जेल बंद थे,
सही यातना, पर किया न गम,
सहते सहते तोड़ दिया दम .

दिखे पूत के पाँव पालने,
घर संस्कृति और माहौल ने,
बीज किये तन मन में रोपित,
देश प्रेम से अंतस शोभित .

खेल खेल में टीम बनाते,
अंग्रेजों को मार भगाते .
बने सभी बच्चों के लीडर,
गाते गीत गदर के जी भर .

चाची जब यादों में रोती,
मै हूँ ! चाची तूँ क्यों रोती ?
गोरों को मार भगाऊँगा,
चाचा को वापिस लाऊँगा .

खेल खेलता बंदूकों के,
रोपे धरती घास के तिनके .
नंद किशोर मेहता आये,
पूछे बिना वह रह न पाये .

’बाल भगत! यह क्या करते हो ?
धरती तिनके क्यों बोते हो ?’
’धरती बंदूक उगाऊँगा,
क्रांतिकारियों को बाटूँगा .

राष्ट्र को स्वतंत्र कराऊँगा,
जन जन में प्राण जगाऊँगा .’
बात भगत की सुन दिल झूमा,
गले लगा कर माथा चूमा .

गोरों का युग निकृष्ट प्रहार,
जगती का क्रूरतम संहार .
नि:शस्त्र सभा जलियाँवाला
कई सहस्त्र को भून डाला .

बारह वर्ष की थी अवस्था,
सुना बगत का ठनका मत्था .
वह पैदल बारह मील चले,
जलियाँ वाला बाग में पहुँचे .

रक्त रंजित मिट्टी उठाकर,
चूमा उसको भाल लगाकर .
शीशी में संभाल सहेजना,
प्राण प्रतिज्ञा से अराधना .

कवि कुलवंत सिंह


शहीद - ए - आजम भगत सिंह -2

शहीद - ए - आजम भगत सिंह -2

धरती माँ धिक्कार रही थी,
रो रो कर चीत्कार रही थी .
वीर पुत्र कब पैदा होंगे ?
जंजीरों को कब तोड़ेंगे ?

’जन्मा राजा भरत यहीं क्या ?
नाम उसी से मिला मुझे क्या ?
धरा यही दधीच क्या बोलो ?
प्राण त्यागना अस्थि दान को ?

बोलो बोलो राम कहाँ है ?
मेरा खोया मान कहाँ है ?
इक सीता का हरण किया था,
पूर्ण वंश को नष्ट किया था !

बोलो बोलो कृष्ण कहाँ है ?
उसका बोला वचन कहाँ है ?
धर्म हानि जब भारत होगी,
जीत सत्य की फिर फिर होगी !

अर्जुन अब कब पैदा होगा,
भीम गदा धर कब लौटेगा ?
पुण्य भूमि बेहाल हुई क्या ?
वीरों से कंगाल हुई क्या ?

नृपति अशोक चंद्रगुप्त कहाँ ?
मर्यादा भारत लुप्त कहाँ ?
कहाँ है शान वैशाली की ?
मिथिला, मगध, पाटलिपुत्र की ?

गौतम हो गये बुद्ध महान,
इस धरती पर लिया था ज्ञान .
दिया कितने देशों को दान,
संदेश दबा वह कहाँ महान ?

इसी धरा पर राज किया था,
विक्रमादित्य पर नाज किया था .
जन्मा पृथ्वीराज यहीं क्या ?
कर्मभूमि छ्त्रपति यही क्या ?

चेतक पर घूमा करता था,
हर पत्ता, बूटा डरता था .
घास की रोटी वन में खाई,
पराधीनता उसे न भाई .

जुल्मों की तलवार काटने,
भारत संस्कृति रक्षा करने .
चौक चाँदनी शीश कटाया,
सरे - आम संदेश सुनाया .

चिड़ियों से था बाज लड़ाया,
अजब गुरू गोबिंद की माया .
धरा धन्य थी उसको पाकर,
देश बचाया वंश लुटाकर .

वही धरा अब पूछ रही थी,
रो रो कर अब सूख रही थी .
लौटा दो मेरा स्वाभिमान,
धरती चाहती फिर बलिदान .

पराधीन की कड़ियाँ तोड़ो,
नदियों की धारा को मोड़ो .
कोना कोना भारत जोड़ो,
हाथ उठे जो ध्वंश, मरोड़ो .

सिंह नाद सा गुंजन करने,
तूफानों में कश्ती खेने .
वह अमर वीर कब आयेगा ?
मुझको आजाद करायेगा !

हर बच्चा भारत बोल उठे,
सीने में ज्वाला खौल उठे .
हर दिल में आश जगाये जो,
भूमि निछावर हो जाये जो !

हर - हर बम बम जय घोष करो,
अग्नि क्रांति की हर हृदय भरो .
नर - नारी सब तरुण देख लें,
करना आहुति प्राण सीख लें !

बहुत हुआ अब मर मर जीना,
अनुसाल दासता की सहना . (अनुसाल = पीड़ा)
संभव वीर न भू पे लाना ?
ताण्डव शिव को याद दिलाना !’

कवि कुलवंत सिंह


शहीद - ए - आजम भगत सिंह 1

शहीद - ए - आजम भगत सिंह 1

भारत माता जब रोती थी,
जंजीरों में बंध सोती थी .
पराधीनता की कड़ियाँ थीं,
जकड़ी बदन पर बेड़ियाँ थीं .

देश आँसुओं में रोता था,
ईस्ट इंडिया को ढ़ोता था .
भारत का शोषण होता था,
नैसर्गिक संपत्ति खोता था .

दुर्दिन के दिन गिनता था,
हर साल अकाल को सहता था .
अंग प्रत्यंग जब जलता था,
घावों से मवाद रिसता था .

बंदी बन नतमस्तक माता,
देश की हालत बदतर खस्ता,
हर पल था अंधियारा छलता,
सहमी रहती थी जब जनता .

आँसू जलधर से बहते थे,
सहमे सहमे सब रहते थे .
यौवन पतझड़ सा सूखा था,
सावन भी रूखा रूखा था .

भारत भू का कण कण शोषित,
त्रास यातना से अपमानित .
’कल्याण - भूमि’ आतंकित थी,
निज स्वार्थ हेतु संचालित थी .

राष्ट्र हीनता से जकड़ा था,
दीन दासता ने पकड़ा था .
मृत्यु प्राय सी चेतनता थी,
स्तब्ध सिसकती मानवता थी .

अवसाद गरल बन बहता था,
स्वाभिमान आहत रहता था .
गौरव पद तल त्रासित रहता,
झुका हुआ था अंबर रहता .

निष्ठुर क्रीड़ा खेली जाती,
अनय अहिंसा झेली जाती .
धन संपत्ति को लूटा जाता,
ब्रिटिश राज को भेजा जाता .

हिम किरीट की सुप्त शान थी,
पुरा देश की लुप्त आन थी .
राष्ट्र खड़ा पर शिथिल जान थी,
सरगम वंचित अनिल तान थी .

विषाद द्रवित नही होता था,
वेदन में आँसू घुलता था .
आवेग प्रबल उत्पीड़न था,
विवश कसमसाता जीवन था .

कलरव जब कर्कश लगता था,
नत दिव्य भाल जब दिखता था .
आकाश झुका सा लगता था,
चिर ग्रहण भाग्य पर दिखता था,

युगों युगों से गौरव उन्नत,
हिम का आलय झुका था अवनत .
विषम समस्या से था ग्रासित,
विकल, दग्ध ज्वाला से त्रासित .

’पुण्य भूमि’ जब मलिन हुई थी,
पद के नीचे दलित हुई थी .
’तपोभूमि’ संताने व्याकुल,
व्याल घूमते डसने आकुल .

हीरे, पन्ने, मणियां लूटीं,
कलियाँ कितनी रौंदी टूटीं .
आन देश की नोच खसोटी,
कृषक स्वयं न पाये रोटी .

चीर हरण नारी के होते,
भारत निधियां हम थे खोते .
वैभव सारा लुटा देश का,
ध्वस्त हुआ सम्मान देश का .

बाट जोहते सब रहते थे,
तिमिर हटाओ सब कहते थे .
भाव हृदय में सदा मचलते,
मौन परंतु सब सहते रहते .

कवि कुलवंत सिंह


एक तिनका

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।

मै झिझक उठा ,हुआ बैचैन सा ,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूंठ देने लोग कपडे की लगे ,
ऐंठ बेचारी दबे पांवों भगी ।

जब किसी ढब से निकल गया तिनका ,
तब 'समझ ' ने यों मुझे ताने दिए ,
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए

ढब- तरीका
कवि
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध


नीचे के प्लेयर से यह कविता सुनिए-


Saturday, March 6, 2010

सबसे अच्छा कौन ????????????????

सबसे अच्छा कौन ??????????????

अकबर ने बीरबल की गैरमौजूदगी में दरबारियों से कुछ प्रश्न पूछे ,
फूल -किसका अच्छा
दूध- किसका अच्छा
मिठास -किसकी अच्छी
पत्ता -किसका अच्छा
राजा -कौन अच्छा

सभी दरबारियों ने अपनी -अपनी बुद्धि के हिसाब से उत्तर दिए ,किसी ने कमल ,किसकी ने गुलाब का फूल अच्छा बताया , किसी ने गाय व् बकरी के दूध को अच्छा बताया ,किसी ने केले बी नीम के पत्ते को उपयोगी बताया पर
राजा तो सबने एक स्वर में बादशाह सलामत को ही बताया ।
अकबर खुश तो हुए पर पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए ।
उन्होंने बीरबल से कहा कि वो भी इन सवालों के जवाब दे
बीरबल ने अपने उत्तर दिए ........
फूल -कपास का सबसे अच्छा होता है ,क्योंकि उससे कपडे बनते हैं ।
दूध -अपनी माता का सर्वश्रेष्ठ होता है ,इसी से बच्चे के शरीर को पूरा पोषण मिलता है ।
मिठास -वाणी की सबसे अच्छी होती है
पत्ता -पान का अच्छा होता है ,क्योंकि इसको देने से दुश्मन भी मित्र बन जाते हैं ।
राजा -इन्द्र सबसे अच्छा राजा होता है ,उनकी आज्ञा से बादल बारिश देते हैं ,जिससे पृथ्वी का जीवन चक्र चलता है ।
कहना न होगा कि सबसे अच्छे उत्तर बीरबल के थे जिन्हें बादशाह अकबर ने अपनी प्रसन्नता का इनाम दिया


Tuesday, March 2, 2010

जीव बचाओ अभियान - कथाकाव्य

एक घने जंगल में बच्चो
रहते जंगली जानवर
घने पेडों की ठण्डी छाया
ही था उनका घर
नदी तल या झील का जल
पी लेते और सुस्ताते
जो भी मिलता खा लेते
जंगल में समय बिताते
खुश सारे जानवर रहते
और नहीं किसी का डर
पर उनके प्यारे से घर को
लग गई बुरी नज़र
इक दिन एक शिकारी आया
देख के वो ललचाया
एक-एक कर उसने बाकी
साथियों को भी बुलाया
बोले स्वर्ग धरा पर यह तो
क्यों न लाभ उठाएं
मार के इन जीवों को
क्यों न पैसा खूब कमाएं
इन्हीं पेडों को काट-काट कर
क्यों न घर बनाएं
खाएं पिएं मौज करें
और जीवन सुख से बिताएं
एक-एक कर लगे काटने
हरे भरे सब पेड
चले एक के पीछे सारे
ज्यों चलती हैं भेड
जीवों को भी पकड-पकड कर
करने लगे शिकार
खाकर मजे से खाल को उनकी
देने लगे उपहार
न सोचा न जरा विचारा
बस जीवों को मारा
रहने का भी छीन लिया
मानव नें उनका सहारा
धीरे-धीरे कम होते गए
पेड और जानवर
और मानव नें बना लिए
महलों से सुन्दर घर
पूरी गंदगी से भर डाले
नदियां और तालाब
प्रदूषण फ़ैलाकर घूमें
गाडी में जनाब
रहने को भी जगह न छोडी
जानवर कहां पे जाएं
कहां घूमें क्या खाएं पिएं
कहां पे मौज मनाएं
तंग आ सबने सोच लिया
मानव बस्ती में जाएंगे
खाली करदो जंगल हम
अपना अधिकार जताएंगे
पर तब तक तो प्यारे बच्चो
हो गई बहुत ही देर
जीवन में जंगली जीवों के
छाने लगा अंधेर
जो पहले थे कई हजारों
अब बस कुछ गिनती के
जंगल भी तो बडे नहीं
बस छोटे हैं मिनती के
खत्म हो रही जीव जातियां
दिखते बहुत ही कम
सोच सोचकर हो जाती हैं
बच्चो आंखें नम
मानव की गलती से
मिट जाएगा नामो निशान
तस्वीरों में रह जाएगी
जीवों की पहचान
कभी देख न पाएंगे हम
उनको इस जीवन में
क्यों न एक शपथ लें हम सब
अपने अपने मन में
बहुत हो चुका जुल्म अभी
अब और न होने देंगे
कुदरत के उपहार को यूं
हम खत्म न होने देंगे
हम जीवों के साथ रहेंगे
बनेंगे उनके रक्षक
इंसानियत का धर्म निभाकर
नहीं बनेंगे भक्षक
आओ हम सब मिलजुल कर
इक जिम्मेदारी निभाएं
खत्म न हो कोई जीव-जाति
हम मिलकर उन्हें बचाएं

अपील - जीव - बचाओ अभियान में अपना योगदान दीजिए , आवाज उठाएं । आपकी आवाज अगर एक जन को भी प्रेरित करती है तो हमारा कर्म सार्थक है । तो आएं मेरे साथ-
आवाज उठाएं , जीव बचाएं


सीमा सचदेव