शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 9 (अंतिम भाग)
शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 9
मोल नही कुछ मान मुकुट का,
मोल नही कुछ सिंहासन का .
जीवन अर्पित करने आया,
माटी कर्ज़ चुकाने आया .
याचक बन कर मांग रहा हूँ,
तेरा दुख पहचान रहा हूँ .
लाल जो खेला तेरी गोदी,
डाल दे भारत माँ की गोदी .
तेरा तो घर द्वार क्रांति का,
तू जननी है स्रोत क्रांति का .
कोख पे अपनी कर अभिमान,
पाऊँ शहादत, दे वरदान .
एक पूत का गम मत करना,
सब तरुणों को पूत समझना .
जग में तेरा सदा सम्म्मान,
युगों युगों तक रहेगा मान .
खानदान की रीत निभाई,
राह क्रांति की मैने पाई .
दादा, चाचा, पिता कदम पर,
खून खौलता दीन दमन पर .
माता कर दो अब विदा विदा,
हो जाऊँ वतन पर फ़िदा फ़िदा .
रहे अभागे जो सदा सदा,
खुशियाँ हों उनको अदा अदा .
हर तरफ ध्वनित आजाज हुई,
स्वर भगत कण्ठ हर साज हुई .
भगत सिंह घर घर में छाया,
ब्रिटिश राज भी था घबराया .
वायसराय से माफी मांगें,
भगत लिखित में माफी मांगें .
कमी सजा में हो सकती है,
उनको फाँसी रुक सकती है .
देश प्रेम में मर मिट जाना,
स्वीकार नही, क्षमा माँगना .
हमें मृत्यु भय नही दिखाना,
उसको तो है गले लगाना .
हर सपूत में चाह जगाना,
मर मिटने की राह दिखाना .
जब्ती को है तोड़ गिराना,
चिता साम्राज्यवाद जलाना .
जितने दिन भी जेल रहे थे,
जीत मृत्यु को खेल रहे थे .
पूरे जग को प्रेरित करते,
आजादी में जीवन भरते .
आजादी के वह दीवाने,
देश हेतु मर मिटने वाले .
नहीं किसी से डरने वाले,
अंगारों पर चलने वाले .
कल चक्र पहचान लिया था,
दाम मौत का जान लिया था .
हँस हँस जीवन वार दिया था,
आजादी विश्वास दिया था .
अंतिम इच्छा जब पूछी थी,
अनुरति भगत की बस यही थी . (अनुरति = चाहत)
’जन्म यहीं पर फिर हो मेरा,
सेवा - देश धर्म हो मेरा .’
’दिल से न निकलेगी कभी भी,
वतन की उल्फत मर कर भी .
मेरी मिट्टी से आयेगी,
सदा खुशबू-ए-वतन आयेगी .’
क्रांतिवीर से राज्य डरा था,
युग युग चेतन प्राण भरा था .
आंदोलन का खौफ भरा था,
पतन मार्ग पर अधो गिरा था .
चौबीस को जो तय थी फाँसी,
तेईस मार्च दे दी फाँसी .
संध्या साढ़े सात समय था,
बलिदानों का अमर समय था .
पुण्य पर्व बलिदान मनाया,
हँसते हँसते ताल मिलाया .
झूम रहे थे वह मस्ताने,
संघर्ष क्रांति के परवाने .
बारूद बना कर यौवन को,
अर्पित कर के भारत भू को .
फांसी फंदा गले लगाया,
शोलों को घर घर पहुँचाया .
क्रांति की वेदी पर तर्पण,
यौवन फूलॊं सा कर अर्पण .
हँसते हँसते न्यौछावर थे,
जय इंकलाब के नारे थे .
भारत माँ ने कर आलिंगन,
भाल सजाया रक्तिम चंदन .
कण कण में वह व्याप्त हो गया,
भारत उसका ऋणी हो गया .
गीत सोहले संध्या गाये,
मिलन गीत चंदा ने गाये .
तारे भर ले आये घड़ोली,
सजी चांदनी की रंगोली .
देव उठा कर लाये डोली,
बिखरा सुरभित चंदन रोली .
पुण्यात्मा का कर कर वंदन,
लोप परम सत्ता अभिनंदन .
प्रकृति चकित कर रही थी नाज़,
आकाश मगन बना हमराज .
भूला पवन था करना शोर,
सिंधु भी भूल गया था रोर .
लहरों में आज नही हिलोर,
गम में सूरज, नही है भोर .
देव नमन को भू पर आये,
आँधी तूफाँ शीश झुकाये .
अंग्रजों का मन डोल रहा था,
सर चढ़ कर डर बोल रहा था .
मृत शरीर के कर के टुकड़े,
उसी समय बोरों में भरके,
ले फिरोजपुर वहाँ जलाया,
कुछ लोगों को वहाँ जो पाया,
टुकड़े अधजले सतलज फेंक,
नौ दो ग्यारह हुए अंग्रेज .
देखा पास नजारा आकर,
हैरानी थी टुकड़े पाकर .
ग्रामीणों ने किया सत्कार,
विधिवत किया अंतिम संस्कार .
वीर भगत तुम हममें जिंदा,
वीर भगत तुम सबमें जिंदा .
हर देश भक्त में तुम रहोगे,
जिंदा हो ! जिंदा रहोगे !
स्वतंत्रता संग्राम इतिहास,
नाम भगत सिंह ध्रुव आकाश .
नाम अमर है, अमिट रहेगा,
स्वातंत्र्य वीर अक्षुण्ण रहेगा .
आविर्भाव भारत उत्थान,
आलोकित राष्ट्र भक्ति विहान .
भगत सिंह साश्वत योगदान,
भास्कर शौर्य बलिदान महान .
कवि कुलवंत सिंह
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