Tuesday, March 2, 2010

जीव बचाओ अभियान - कथाकाव्य

एक घने जंगल में बच्चो
रहते जंगली जानवर
घने पेडों की ठण्डी छाया
ही था उनका घर
नदी तल या झील का जल
पी लेते और सुस्ताते
जो भी मिलता खा लेते
जंगल में समय बिताते
खुश सारे जानवर रहते
और नहीं किसी का डर
पर उनके प्यारे से घर को
लग गई बुरी नज़र
इक दिन एक शिकारी आया
देख के वो ललचाया
एक-एक कर उसने बाकी
साथियों को भी बुलाया
बोले स्वर्ग धरा पर यह तो
क्यों न लाभ उठाएं
मार के इन जीवों को
क्यों न पैसा खूब कमाएं
इन्हीं पेडों को काट-काट कर
क्यों न घर बनाएं
खाएं पिएं मौज करें
और जीवन सुख से बिताएं
एक-एक कर लगे काटने
हरे भरे सब पेड
चले एक के पीछे सारे
ज्यों चलती हैं भेड
जीवों को भी पकड-पकड कर
करने लगे शिकार
खाकर मजे से खाल को उनकी
देने लगे उपहार
न सोचा न जरा विचारा
बस जीवों को मारा
रहने का भी छीन लिया
मानव नें उनका सहारा
धीरे-धीरे कम होते गए
पेड और जानवर
और मानव नें बना लिए
महलों से सुन्दर घर
पूरी गंदगी से भर डाले
नदियां और तालाब
प्रदूषण फ़ैलाकर घूमें
गाडी में जनाब
रहने को भी जगह न छोडी
जानवर कहां पे जाएं
कहां घूमें क्या खाएं पिएं
कहां पे मौज मनाएं
तंग आ सबने सोच लिया
मानव बस्ती में जाएंगे
खाली करदो जंगल हम
अपना अधिकार जताएंगे
पर तब तक तो प्यारे बच्चो
हो गई बहुत ही देर
जीवन में जंगली जीवों के
छाने लगा अंधेर
जो पहले थे कई हजारों
अब बस कुछ गिनती के
जंगल भी तो बडे नहीं
बस छोटे हैं मिनती के
खत्म हो रही जीव जातियां
दिखते बहुत ही कम
सोच सोचकर हो जाती हैं
बच्चो आंखें नम
मानव की गलती से
मिट जाएगा नामो निशान
तस्वीरों में रह जाएगी
जीवों की पहचान
कभी देख न पाएंगे हम
उनको इस जीवन में
क्यों न एक शपथ लें हम सब
अपने अपने मन में
बहुत हो चुका जुल्म अभी
अब और न होने देंगे
कुदरत के उपहार को यूं
हम खत्म न होने देंगे
हम जीवों के साथ रहेंगे
बनेंगे उनके रक्षक
इंसानियत का धर्म निभाकर
नहीं बनेंगे भक्षक
आओ हम सब मिलजुल कर
इक जिम्मेदारी निभाएं
खत्म न हो कोई जीव-जाति
हम मिलकर उन्हें बचाएं

अपील - जीव - बचाओ अभियान में अपना योगदान दीजिए , आवाज उठाएं । आपकी आवाज अगर एक जन को भी प्रेरित करती है तो हमारा कर्म सार्थक है । तो आएं मेरे साथ-
आवाज उठाएं , जीव बचाएं


सीमा सचदेव


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2 पाठकों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

saarthak rachna ,
padhte padhte hi ise laghu naatak ke roop me dekha achcha manchan hone yogya ,aur sabhi ko sandesh dene yogya ek saarthak rachna ,aabhaar aapka is prastuti ke liye .

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

जीवन का मूल्य मनुष्य से बढ़िया कोई नही समझ सकता है जैसे मनुष्य के लिए जीना है वैसे ही और भी बहुत से जीव है जिनकी रक्षा करना हम मनुष्यों का परम धर्म है....वृक्ष और जीव जन्तु सबकी रक्षा करनी चाहिए...बढ़िया भाव..

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