एक तिनका
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।
मै झिझक उठा ,हुआ बैचैन सा ,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।
मूंठ देने लोग कपडे की लगे ,
ऐंठ बेचारी दबे पांवों भगी ।
जब किसी ढब से निकल गया तिनका ,
तब 'समझ ' ने यों मुझे ताने दिए ,
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए
ढब- तरीका
कवि
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
नीचे के प्लेयर से यह कविता सुनिए-
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9 पाठकों का कहना है :
नीलम जी ऐसी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद लेकिन बालमन की समझ से काफ़ी परे है ।
सीमा जी ,बिटिया की परीक्षा चल रही हैं,आज हिंदी की परीक्षा थी ,यह कविता उसी के पाठ्यक्रम से ली है ,और आवाज पाखी की ही है पाखी ७ वी कक्षा की छात्रा है ,तो बाल -उद्यान के लिए सार्थक
रचना है ,पर आप जिन छोटे बच्चों की बात कर रही हैं ,उन्हें तो हम हीबताएँगे कि उनके लिए क्या है औरक्या नहीं (पहले भी कई बार उल्लेख कर चुकी हूँ कि इसे थोडा विस्तार दिया है यह उद्यान ५साल से लेकर ८० साल तक के सभी बच्चों के लिएहै ) ,आशा है ,आप हमारा आशय समझ गयी होंगी धन्यवाद
neelam ji apna aashaya samjhaane ke liye dhanyavaad
बेहद अर्थपूर्ण कविता लेकर आई हैं आप नीलम जी, आज के समय के लिये बहुत ही सार्थक है .
अगर आप ना बताती तो पता ही नहीं चलता कि पाखी ने गाया है, पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कविता गाई है .
बहुत बढ़िया पाखी. ढेर से आशीर्वाद और शुभकामनाएं, हमेशा उन्नति करो .
so sweet voice,poem is nice .
jiasa ki aap jaante ho pakhi bahut achchi hai ,wiase hi uski kavita -paath ka dhang bhi achcha hai ,
good pakhi ,keep it up
mansi (your friend here)
very well recited , pakhi .
mishtoo [ ur friend]
very well recited , pakhi .
mishtoo [ ur friend]
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