मोर
तुमने मोर कभी देखा है
पंछी बड़ा रंगीला है ,
कहीं ,कहीं कत्थई ,बदन से
बाकी नीला -नीला है ।
उसके सिर पर कलगी होती
होती पूँछ घनी ,भारी ,
गोली फैला जिससे नाचने
की करता वह तैयारी
आसमान में बादल छाते
तब वह नाचा करता है ,
पंजों में जो तेजी होती
सांप भी उससे डरता है ।
मोर नहीं उड़ पाता ज्यादा
बैठा रहता पेड़ों पर ,
बोला करता बिल्ले जैसा
जोर -जोर से म्यांऊ कर
हरिवंश राय बच्चन
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