Tuesday, April 13, 2010

जादुई पतीली

 

एक गाँव में चम्पा मौसी हाथ में सदा रहती थी सड़सी दिन भर बस वह खाना पकाती बुला कर सबको खीर खिलाती ... चम्पा मौसी की बेटी छबीली नाम था उसका रामकली घर में थी एक अनोखी पतीली विरासत में थी उनको मिली ... जब-जब उनको भूख लगती मौसी उसे चूल्हे पे चढ़ाती और कहती ..... पतीली पतीली खाना पका भूख लगी है खीर पका खीर उबलने लगती घर आँगन महका जाती फ़िर मौसी कहती .... पतीली पतीली तू ठप हो जा भूख भागी तू ठप हो जा ... पतीली पकाना बंद कर देती खीर उबलनी बंद हो जाती दोनों मन से खीर खाते पतीली के बस गुण ही गाते ..... चम्पा मौसी और राम कली दोनों मन से बड़ी ही भोली रखकर अपने साथ पतीली फिर भी न थे दोनों गरबीली .. रामकली की सभी सहेली खीर खाने बड़ी उतावली वह भी सबको चाव से बुलाती रोज उन्हें खीर खिलाती मुन्नी आती गुड्डी आती सबको मीठी खीर खिलाती देखो देखो बच्चो... छोटी पतीली खीर पकाए सबकी कैसी भूख मिटाए ह्म्म्म......पर बच्चो चम्पा मौसी का था एक पड़ोसी करता था वह अक्सर बदमाशी वह था बड़ा लोभी हलवाई उसके मन में एक बात जो आयी सोचा..... चम्पा मौसी काम न करती फिर भी कैसे खीर खिलाती मौसी तो है सदा से अकेली आख़िर है ये कैसी पहेली जाकर कहा ..... चम्पा मौसी भूख लगी है खीर खिलाओ भूख लगी है खूब खीर मैं खा जाऊँ और मोटा जरा मैं हो जाऊँ मौसी थी बड़ी ही भोली चूल्हे पर रख दी पतीली और बोली... भूख लगी है खाना पका झट पट झट पट खीर पका .... पतीली ने जैसे ही खीर पकाई बात हलवाई के मन को भाई देख इसे वह चकराया पतीली चुराने अकड़ गया अगले दिन .... घूमने जब मौसी थी गई ले आया पतीली वह हलवाई पहुँच घर वह कहने लगा......... भूख लगी है खाना पका झट पट खीर पका खीर उबलकर छलकने लगी बहकर देखो फैलने लगी पूरे गाँव में फैलने लगी घर-आँगन में फैलने लगी हलवाई कहे अब बस भी करो खीर पकाना बंद करो पतीली तो बात न माने मौसी ही मन्त्र जो जाने ..... चम्पा मौसी खीर जो देखी हलवाई की चाल भी समझी हँसी जोर से हा हा हा हा हा हा हलवाई बड़ा शरमाया मौसी जी के पास जो आया कहा .. मौसी मौसी माफ़ कर दो खीर पकाना बंद करा दो फ़िर मौसी ने पतीली के कान में मन्त्र फूंका ..... पतीली पतीली तू ठप हो जा भूख भागी तू ठप हो जा खीर उबलनी बंद हो गयी बात उसकी समझ न आयी पतीली लेकर मौसी भी गयी फिर से सब को खीर खिलायी अब तो हलवाई के सपने में जब भी दिखती पतीली शर्म से उसकी आँखें हो जाती गीली गीली ....हा हा हा हा हा तो बच्चो.... मन में लोभ कभी न रखना दूसरों का धन न हड़पना जो सब की भलाई करते उनकी प्रशंसा सब ही करते .....

--सुनीता यादव
(बच्चो, सुनीता यादव ने लोककथाओं को कविता के रूप में अनूदित किया है। वो इन कविताओं को संगीतबद्ध भी कर रही हैं)।


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पाठक का कहना है :

neelam का कहना है कि -

मन में लोभ कभी न रखना
दूसरों का धन न हड़पना
जो सब की भलाई करते
उनकी प्रशंसा सब ही करते .....

वाकई अद्भत ..............

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