पक्षी होता मैं नीलगगन का

पक्षी होता मैं नीलगगन का
मीठा फल खाता मैं चमन का
इधर-उधर उड़-उड़ कर जाता
सुंदर सा इक घर मैं बनाता
मेरे सुंदर पंख भी होते
कोमल-कोमल छोटे-छोटे
अपने सुंदर पंख फैलाता
दूर गगन में उड़ कर जाता

उड़ते-उड़ते जब तक जाता
नीचे धरती पर आ जाता
फल वाले उपवन में जाता
मीठे-मीठे फल मैं खाता
जहाँ से चाहता प्यास बुझाता
जहाँ भी चाहता वहीं पे रहता
बच्चों को मैं दोस्त बनाता
मीठे फल उनको भी खिलाता
दुनिया का चक्कर मैं लगाता
उड़ता रहता कभी न रुकता
तरह-तरह का खाना खाता
जो भी मिलता, जहाँ मैं जाता
बनाता एक मित्रों की टोली
हम भी खूब खेलते होली
रंग-बिरंगे पंखों वाले
हम भी लगते कितने प्यारे
खाने का नहीं लालच करता
जाल में तो कभी न फँसता
उड़ कर किसी तरह बच जाता
मानव के कभी हाथ न आता
खुली हवा में खुले गगन में
रहते हम भी अपनी लगन में
पूरी दुनिया मेरा घर होती
क्या नदिया क्या पर्वत चोटी
पर मुझको कुछ दुख भी होता
बच्चों के संग पढ़ नहीं सकता
न मैं कभी स्कूल को जाता
न कॉपी पेन्सिल ही उठाता
मम्मी न मुझको सुबह जगाती
न वो सुबह-सुबह नहलाती
न तो खाना प्यार से मिलता
न इतना सुंदर घर होता
सर्दी-गर्मी से न बचता
मानव से डरता ही रहता
न मैं हँसता न मैं बोलता
अपना दुख फिर किससे कहता
---सीमा सचदेव

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5 पाठकों का कहना है :
बधाई हो सीमा जी एक पंक्षी के दर्द को आपने बखूबी बायाँ किया है
बहुत ही अच्छी कविता बहुत अच्छी
सीमा जी ,
बहुत ही खुबसुरत शब्दों में आपने पंछी की कहानी सुना दी ,सुख भी और दुःख भी बता दिए .बधाई
^^पूजा अनिल
सीमा जी आपके तो कहने ही क्या..
पक्षी होते पर तोता होते
पढने को फिर यूँ न रोते
तुमको फिर मैं खूब पढाता
ए बी सी डी सब रटवाता
घूमने जाते रोज शाम को
तुडवाता फिर मीठे आम को
खूब मज़े से फल में खाता
तुमको मिर्ची खूब खिलाता..
दिल खुश हो गया पढ़कर.
आलोक सिंह "साहिल"
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