Friday, August 8, 2008

वृक्ष - ईश

विष पी शिव ने जहाँ बचाया,
धर कण्ठ मृत्यु को भरमाया,
जग ने उनका मान बढ़ाया,
ईश बना कर हृदय बसाया ।

विष्णु मोहिनी रूप बनाया,
देवों को अमरित पिलवाया,
मोहित दैत्यों को भरमाया,
जगत ईश का दर्जा पाया ।

देवों से बढ़ वृक्ष हमारे,
विष इस जग का पीते सारे,
विष पी बनाते अमृत न्यारे,
जीवन यापन बने सहारे ।

वृक्ष हमारे जीवन दाता,
इनसे अपना गहरा नाता,
सुखी बनाते बनकर भ्राता,
जग उपकार बहुत से पाता ।

आओ वसुधा वृक्ष लगाएं,
वृक्ष लगा कर धरा सजाएं,
देव ईश सा मान दिलाएं,
जीवन अपना स्वर्ग बनाएं ।

कवि कुलवंत सिंह


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

6 पाठकों का कहना है :

admin का कहना है कि -

vrichhon ka achchha vardan hai.

समयचक्र का कहना है कि -

bahut sundar vichar abhivyakti . badhiya rachana . dhanyawad

seema gupta का कहना है कि -

" beautiful potery to read, thanks"
Regards

Kavi Kulwant का कहना है कि -

Thanks a lot dear friends!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कुलवंत जी,

बढ़िया है, बहुत बढ़िया

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छे कुलवंत जी.
आलोक सिंह "साहिल"

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)