Friday, August 1, 2008

राष्ट्र प्रहरी

राष्ट्र के प्रहरी सजग
सतत सीमा पर सजग
हाथ में हथियार है
वार को तैयार है ।

शत्रु पर आँखें टिकी
सांस आहट पर रुकी
सीमा न लांघ पाये
दुश्मन न भाग पाये ।

ठंड हो कितनी कड़क
झुलसती गरमी भड़क
परवाह न तूफान की
गोलियों से जान की ।

जान लेकर हाथ पर
खड़ा सीमा हर पहर
वीर बन पहरा सतत
राष्ट्र की रक्षा निरत ।

बस यही अरमान है
वार देनी जान है
चोट इक आये नही
आन अब जाये नही ।

बाढ़ हो तूफान हो
आपदा अनजान हो
वीर है तत्पर सदा
निसार जान को सदा ।

कवि कुलवंत सिंह


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3 पाठकों का कहना है :

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

नमन वीर तुमको नमन राष्ट्र प्रहरी तुमको नमन
आपने एक सुंदर कविता सरल भावों में लिखी है
बहुत बहुत बधाई

Kavi Kulwant का कहना है कि -

Thank you tripathy ji..
Its my pleasure..

Anonymous का कहना है कि -

बेहतरीन रचना.बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"

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