राष्ट्र प्रहरी
राष्ट्र के प्रहरी सजग
सतत सीमा पर सजग
हाथ में हथियार है
वार को तैयार है ।
शत्रु पर आँखें टिकी
सांस आहट पर रुकी
सीमा न लांघ पाये
दुश्मन न भाग पाये ।
ठंड हो कितनी कड़क
झुलसती गरमी भड़क
परवाह न तूफान की
गोलियों से जान की ।
जान लेकर हाथ पर
खड़ा सीमा हर पहर
वीर बन पहरा सतत
राष्ट्र की रक्षा निरत ।
बस यही अरमान है
वार देनी जान है
चोट इक आये नही
आन अब जाये नही ।
बाढ़ हो तूफान हो
आपदा अनजान हो
वीर है तत्पर सदा
निसार जान को सदा ।
कवि कुलवंत सिंह
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3 पाठकों का कहना है :
नमन वीर तुमको नमन राष्ट्र प्रहरी तुमको नमन
आपने एक सुंदर कविता सरल भावों में लिखी है
बहुत बहुत बधाई
Thank you tripathy ji..
Its my pleasure..
बेहतरीन रचना.बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"
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