कृष्ण-सुदामा
नमस्कार!
प्यारे बच्चो,
आज मैत्री दिवस के अवसर पर हम फिर हाजिर है, विश्व की अनूठी मित्रता की मिसाल पेश करती "श्री कृष्ण-सुदामा की कहानी' लेकर|
कृष्ण-सुदामा
आओ बच्चो सुनो कहानी
कहती थी यह मेरी नानी
कृष्ण-सुदामा दोस्त गहरे
बचपन में गुरु आश्रम ठहरे
दोनो ही सँग-सँग में पढ़ते
गुरु-आज्ञा का पालन करते
इक दिन बोले गुरु संदीपन
दोनों मिलकर जाओ वन
वहाँ से लकड़ी चुनकर लाओ
गुरु माता का हाथ बँटाओ
गुरुमाता ने दिया कुछ दाना
भूख लगे तो मिलकर खाना
दोनों ही जंगल में आए
गड्ढे लकड़ी के बनाए
पर ऊपर से हुई बरसात
दिन में भी हुई काली रात
जल से वो जंगल गया भर
चढ़ गए दोनों ही तरु पर
पर दामा को भूख सताए
चोरी से सब दाने खाए
भूखा कृष्ण जब वापिस आया
सब कुछ गुरु माता को बताया
हँसने लगे वो सारे सुनकर
शर्मिन्दा दामा था खुद पर
शिक्षा जब हो गई समाप्त
बिछुड़ गए दोनों ही दोस्त
बीत गए कितने ही साल
और दामा हो गया कंगाल
उधर कृष्ण बन गया था राजा
झुकती उसके सम्मुख परजा
इक दिन दामा की बोली पत्नी
दोस्ती याद करो तुम अपनी
कृष्ण से जाकर तुम मिल आओ
उनको अपना हाल सुनाओ
दिए सुशीला ने कुछ दाने
बोली यह कान्हा को खिलाने
चल पड़ा दामा कृष्ण के पास
पर मन में था जरा उदास
क्योंकि उसका नंगा है तन
न ही उसके पास में है धन
कृष्ण तो कितना बडा है राजा
वह मुझको क्यों पहचानेगा
कृष्ण का कितना बड़ा दरबार
सोचते-सोचते पहुँचा द्वार
सुना कृष्ण ने दामा का नाम
भूल गया वो सारे काम
नंगे पाँव ही दौड़ के आया
और दामा को गले लगाया
दाने उसने प्यार से खाए
जो सुशीला ने भिजवाए
उसके घर को महल बनाया
पर दामा को नहीं जताया
ऐसे उसने दोस्ती निभाई
मित्र-प्रेम की मिसाल बनाई
सच्चे मित्र दामा औ कृष्ण
दोनों ही का पावन मन
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बच्चो, तुम भी सीखना पढ़कर
रहना सच्चे दोस्त बनकर
दोस्ती सच्चे मन से निभाना
अच्छे-अच्छे दोस्त बनाना
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मैत्री दिवस की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बहुत-बहुत बधाई|
-सीमा सचदेव
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4 पाठकों का कहना है :
सरल भाषा में लिखी एक अच्छी कविता
So nice poem seema 'sach'dev ji!
krishna sudama ke bahane dosti ka chchha vardan hai.
वाह सीमा जी,वाह! बहुत ही प्यारी प्रस्तुति.बधाई
आलोक सिंह साहिल"
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