Friday, August 29, 2008

होते वीर अमर

जब से हमने ठान लिया है,
सबने हमको मान लिया है,
भारत माँ की रक्षा को हम
सदा रहें तत्पर ।
होते वीर अमर ॥

नन्हे बालक हम दिखते हैं,
लेकिन साहस हम रखते हैं,
कोई टिके न, जब चलते हम
वीरता की डगर ।
होते वीर अमर ॥

भले देश पर मर मिट जाएँ,
सीने पर ही गोली खाएँ,
दुश्मन भले ही सामने हो
चलते रहें निडर ।
होते वीर अमर ॥

देश भक्ति है अपना नारा,
जिसने भी हमको ललकारा,
उसको धूल चटा देंगे हम
एक एक गिनकर ।
होते वीर अमर ॥

तूफानों में हम घिर जाएँ,
काल प्रलय बन आ जाए,
मिट जाए हमसे टकरा कर
खड़े रहें डटकर ।
होते वीर अमर ॥

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, August 28, 2008

6वीं क्लास की छात्रा द्वारा रचित कविता



पाखी मिश्रा 6वीं कक्षा की छात्रा हैं ,कविता-लिखना इनका शौक है , मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखना पसंद करती है, मगर हिन्द-युग्म से जुड़ने की इच्छा से हिन्दी में भी लिखने को प्रोत्साहित हुई हैं, बाल भारती की छात्रा है, विद्यालय की पत्रिका में भी इनके कविताएँ व आलेख छपते रहते हैं|

अन्धकार

यह आता सबके जीवन में ,
सबको बहुत बैर है इससे ,
जिसकी जिन्दगी में आया ,
समझो दुःख उसके लिए लाया ,
पर क्यों ? क्यों हम सब डरते है,
पर गज़ब है , देखकर कहती हूँ मै
अगर आज अन्धकार है तो कल ,
होगा उजाला भी,
जो हमें देगा बहुत से फल.................................!!!!!!!


Sunday, August 24, 2008

कृष्ण जन्म की कहानी एक कविता के माध्यम से

जय श्री कृष्ण
प्यारे बच्चो ,
आज श्री कृष्ण जन्म दिवस है |सर्व-प्रथम तो आप सब को श्री कृष्ण
जन्माष्टमी की बधाई और ढेरो शुभकामनाएँ | आज मै आपके लिए
लेकर आई हूँ श्री कृष्ण जन्म की कहानी एक कविता के माध्यम से |
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आओ बच्चो मेरे पास
भर कर मन मे अटल विश्वास
श्री कृष्ण के जन्मदिवस पर
आज सुनो कुछ बाते खास
कन्स देवकी का था भाई
बजा रहा उसकी शहनाई
वासुदेव सन्ग ब्याह रचाया
मन ही मन मे बहुत मुस्काया
बहन को खुशी से दी विदाई
इतने मे आवाज इक आई
जिसके लिए प्रसन्न तुम आज
उसका सुत तेरा होगा काल
सुन कर कन्स के उड गए होश
भर गया था तम मन मे जोश
तान ली बहना पर तलवार
जैसे ही करने लगा वो वार
वासुदेव ने पकडे पैर
दो इसके प्राणो की खैर
ले लेना इसकी सन्तान
किन्तु बख्श दो इसकी जान
दोनो को ही दे दी जेल
देखो कुदरत का यह खेल
सात सुतो की ले ली जान
कन्स के सिर बोले अभिमान
आठवाँ सुत श्री कृष्ण हुआ जब
खुली जेल और सो गए सब
अन्धियारी काली थी रात
ऊपर से हो रही बरसात
सूप मे कान्हा को लेकर
वासुदेव रुका गोकुल जाकर
नन्द की कन्या को ले आया
कान्हा जसुदा को दे आया
हुई न जरा सी भी हलचल
कान्हा अब जसुमति के आँचल
गोकुल मे ही बीता बचपन
मोह लेता था वो सबका मन
माखन दधि चुरा कर खाता
ब्रज गोपियो को बहुत चिढाता
बन्सी बजा गायो को बुलाता
यमुना तट पर रास रचाता
कन्स ने जान लिया यह राज
कान्हा ही है उसका काल
कान्हा को मथुरा बुलवाया
कन्स ने यज्ञ करवाया
बुला लिया अपना ही काल
देखो कुदरत का कमाल
युद्ध हुआ वहाँ पर घमासान
ले लिए जिसने कन्स के प्राण
मथुरा का राजा बना कृष्ण
खुश हुआ मधुपुरी का हर जन
....................
...................
बच्चो तुमने सुनी कहानी
कथा कृष्ण की जानी मानी
करते जो झूठा अभिमान
बखशे नही उसको भग्वान
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श्री कृष्ण जन्म-दिवस की सब को हार्दिक बधाई |

--सीमा सचदेव


Saturday, August 23, 2008

नन्हे मुन्नों के लिए कुछ नन्ही-नन्ही कविताएँ (आओ गाएँ)

१.
आओ बच्चो, खेलें खेल
बिन इंजन के चलती रेल
इक दूजे के पीछे आओ
लम्बी पंक्ति एक बनाओ
जगह एक हाथ की छोड़ो
इक दूजे के कंधे पकड़ो
बन जाएगी ऐसे फिर चेन
देखो कितनी प्यारी ट्रेन

२.

लाला जी ने केला खाकर
तोंद बढाकर मुँह बिचकाकर
छिलका बीच सड़क के गिराया
फिर लाला ने कदम बढ़ाया
छिलके पर रख दिया कदम
गिर गए बीच सड़क में धम्म

३.

गली में आया बन्दर मामा
लाला जी का लिया पजामा
उनकी टोपी भी उठाई
पहन के बन्दर ले अँगड़ाई

४.

टर-टर टर-टर मेढक बोला
जब उसने अपना मुँह खोला
घिर-घिर गए अम्बर मे बादल
बरसा धरती पर वर्षा जल

५.

झूम-झूम के नाचे मोर
जब छाएँ बादल घनघोर
अपने सुन्दर पन्ख फैलाता
देख के उसको आनन्द आता

६॰

कुहु-कुहु करके बोले कोयल
मीठे गीत से मोह लेती दिल
बैठे जब अम्बुआ की डाली
कितनी प्यारी कोयल काली

७.
चँदा मामा खिले गगन में
रँग बिरँगे फूल चमन में
टिम-टिमाते नभ में तारे
लगते मुझको प्यारे-प्यारे

८.

रंग-बिरंगी तितली आई
नन्हे-मुन्ने के मन भाई
छेड़ के मुन्ने को उड़ जाए
उसको अपने पीछे भगाए

९.
रंग-बिरंगे खिले हैं फूल
सुन्दर से तालाब के कूल
पीले लाल गुलाबी नीले
सुन्दर-सुन्दर रंग रंगीले

१०.

ट्रिन-ट्रिन ट्रिन-ट्रिन फोन की घण्टी
सुनकर दौड के आया बण्टी
फोन उठा कर बोला हैलो
आओ मेरे संग में खेलो

रचयिता- सीमा सचदेव


Monday, August 18, 2008

साढ़े तीन साल की लड़की द्वारा रचित एक बाल-कविता

3.5 वर्षीय मन मिश्रा की कविता 'एक चूहा'

आज हमें एक बाल-कविता प्राप्त हुई जिसे ३ साल ६ महीने की एक लड़की मन मिश्रा ने रचा है। ५ जनवरी २००५ को जन्मी मन ने अभी कुछ महीनों पहले ही रियॉन इंटरनेशनल स्कूल, शाहजहाँपुर (यूपी) में नर्सरी कक्षा में प्रवेश लिया है। Mann Mishraकृपया पढ़ें और मन को प्रोत्साहित करें।

एक चूहा था ,
पानी में रहता था
बाहर निकल कर आया,
मम्मी से पूछा
टोय्स (खिलोने ) फैला लें,
मम्मी ने कहा ..........................नहीं।


--मन मिश्रा

प्रेषक- नीलम मिश्रा


Friday, August 15, 2008

स्‍वाधीनता दिवस

बच्चों आज के शुभ दिन पर मै पहली बार बाल उद्यान में अपके सम्मुख अपनी बात रख रहा हूँ। देखो कितना अच्छा दिन है आज, आज के ही दिन को पाने के लिये हमारे देश के वीर सपूतों ने अपने प्राणों को बलिदान कर दिया। आज से करीब 61 वर्ष पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कुशल नेतृत्व में हमने अपने देश से अंग्रेजो का भगा दिया। 


कितना अच्छा शब्द लगता है स्वतंत्रता या स्वाधीनता। आज इसी स्वाधीनता के कारण हम आजाद भारत में जी रहे है। आजादी का मतलब होता है किसी के नियंत्रण में न रहना, अपनी सरकार, अपनी राजव्यवस्था तथा अपने देश में कहीं भी आने जाने के स्वंतत्रता। 15 अगस्त 1947 से पहले ऐसा नही था, हमारे उपर अंग्रेज राज करते है, बापू के जन्म दिवस के बजाय, अंग्रेजो की महारानी का जन्म दिवस मनाया जाता था। 

स्‍वाधीनता का उल्टा होता है पराधीनता, हमारे देश में कहा जाता है कि पराधीन सपनेहु सुख नही अर्थात पराधीन होने पर सपने में भी सुख नही मिलता है। आज हम देश की आजादी की 61वीं वर्षगाठ मना रहे है। इन 61 सालों में हम अपने महापुरूषों के आदर्शो को भुलाते आये, हमें ऐसा नही करना चाहिये। जो व्यक्ति अपने महापुरूषो और संस्कृति को भूल जाता है उसका कहीं सम्मान नही होता है। 

बच्चों एक बात याद रखों कि आजादी ही जीवन का सबसे बड़ा सुख है, अब हम इसे गवायेगे नही। हम प्राण करेंगे कि आजादी के लिये हम अपना तन-मन-धन सब अर्पण कर देगे। 

आप सभी को स्वाधीनता दिवस की बहुत बहुत बधाई। 


आज़ादी की पहचान तिरंगा

एक कविता के माध्यम से तिरंगा की महत्ता



आज़ादी की पहचान तिरंगा

जय हिन्द जय भारत माता
इनसे अपना गहरा नाता
तिरंगा अपनी है पहचान
भारत की ऊँची है शान
तीन रंग इसको सजाते
सब अपना मतलब समझाते
रंग केसरी बलिदानी का
और वीरों की कुर्बानी का
शान्ति का प्रतीक सफेद
नहीं किसी से कोई भेद
हरा रंग लाए हरियाली
भारत मे छाए खुशहाली
आज़ादी के तीनो रंग
जय हिन्द मिलकर बोलो संग
जय भारत सब मिलकर गाएँ
आओ आज़ादी दिवस मनाएँ

आज़ादी दिवस की सभी हिन्दवासियो को हार्दिक बधाई जय हिन्द

रचनाकार- सीमा सचदेव


Thursday, August 14, 2008

प्रतिज्ञा


तीन रंग का अपना झंडा
सबसे ऊँचा फहराएँगे,
हो भारत जग में अग्रिम सदा
कर्म देश हित कर जाएँगे ।

भेदभाव से दूर रहें हम
विश्व बंधु का अपना नारा,
प्रेम जगाएँ हर मानस में
बन फूल खिले हर जन प्यारा ।

हर विपदा से लोहा लेकर
हर बाधा को पार करेंगे,
घर घर में हम दीप जलाकर
अंधकार को दूर करेंगे ।

सत्कर्मों के पुष्प खिलाकर
सुमन सुरभि हम बिखराएँगे,
देशभक्ति के सच्चे राही
नाम देश का कर जाएँगे ।

निज गौरव, निज मान हेतु हम
जान निछावर कर जाएँगे,
स्वाभिमान के धनी बहुत हैं
देश हेतु खुद मिट जाएँगे ।

ज्ञान, विज्ञान नया सीखकर
कीर्ति ध्वजा हम फहराएँगे,
उजियारा हर जीवन फैले
ज्ञान ज्योति से भर जाएँगे ।

प्रगति पथ विश्वास से बढ़कर
हर क्षेत्र क्रांति कर जाएँगे,
खुशियां हर जीवन में छाएँ
कर्म देश हित कर जाएँगे ।

कवि कुलवंत सिंह


Friday, August 8, 2008

वृक्ष - ईश

विष पी शिव ने जहाँ बचाया,
धर कण्ठ मृत्यु को भरमाया,
जग ने उनका मान बढ़ाया,
ईश बना कर हृदय बसाया ।

विष्णु मोहिनी रूप बनाया,
देवों को अमरित पिलवाया,
मोहित दैत्यों को भरमाया,
जगत ईश का दर्जा पाया ।

देवों से बढ़ वृक्ष हमारे,
विष इस जग का पीते सारे,
विष पी बनाते अमृत न्यारे,
जीवन यापन बने सहारे ।

वृक्ष हमारे जीवन दाता,
इनसे अपना गहरा नाता,
सुखी बनाते बनकर भ्राता,
जग उपकार बहुत से पाता ।

आओ वसुधा वृक्ष लगाएं,
वृक्ष लगा कर धरा सजाएं,
देव ईश सा मान दिलाएं,
जीवन अपना स्वर्ग बनाएं ।

कवि कुलवंत सिंह


Sunday, August 3, 2008

कृष्ण-सुदामा


नमस्कार!
प्यारे बच्चो,
आज मैत्री दिवस के अवसर पर हम फिर हाजिर है, विश्व की अनूठी मित्रता की मिसाल पेश करती "श्री कृष्ण-सुदामा की कहानी' लेकर|


कृष्ण-सुदामा

आओ बच्चो सुनो कहानी
कहती थी यह मेरी नानी
कृष्ण-सुदामा दोस्त गहरे
बचपन में गुरु आश्रम ठहरे
दोनो ही सँग-सँग में पढ़ते
गुरु-आज्ञा का पालन करते
इक दिन बोले गुरु संदीपन
दोनों मिलकर जाओ वन
वहाँ से लकड़ी चुनकर लाओ
गुरु माता का हाथ बँटाओ
गुरुमाता ने दिया कुछ दाना
भूख लगे तो मिलकर खाना
दोनों ही जंगल में आए
गड्ढे लकड़ी के बनाए
पर ऊपर से हुई बरसात
दिन में भी हुई काली रात
जल से वो जंगल गया भर
चढ़ गए दोनों ही तरु पर
पर दामा को भूख सताए
चोरी से सब दाने खाए
भूखा कृष्ण जब वापिस आया
सब कुछ गुरु माता को बताया
हँसने लगे वो सारे सुनकर
शर्मिन्दा दामा था खुद पर
शिक्षा जब हो गई समाप्त
बिछुड़ गए दोनों ही दोस्त
बीत गए कितने ही साल
और दामा हो गया कंगाल
उधर कृष्ण बन गया था राजा
झुकती उसके सम्मुख परजा
इक दिन दामा की बोली पत्नी
दोस्ती याद करो तुम अपनी
कृष्ण से जाकर तुम मिल आओ
उनको अपना हाल सुनाओ
दिए सुशीला ने कुछ दाने
बोली यह कान्हा को खिलाने
चल पड़ा दामा कृष्ण के पास
पर मन में था जरा उदास
क्योंकि उसका नंगा है तन
न ही उसके पास में है धन
कृष्ण तो कितना बडा है राजा
वह मुझको क्यों पहचानेगा
कृष्ण का कितना बड़ा दरबार
सोचते-सोचते पहुँचा द्वार
सुना कृष्ण ने दामा का नाम
भूल गया वो सारे काम
नंगे पाँव ही दौड़ के आया
और दामा को गले लगाया
दाने उसने प्यार से खाए
जो सुशीला ने भिजवाए
उसके घर को महल बनाया
पर दामा को नहीं जताया
ऐसे उसने दोस्ती निभाई
मित्र-प्रेम की मिसाल बनाई
सच्चे मित्र दामा औ कृष्ण
दोनों ही का पावन मन
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बच्चो, तुम भी सीखना पढ़कर
रहना सच्चे दोस्त बनकर
दोस्ती सच्चे मन से निभाना
अच्छे-अच्छे दोस्त बनाना

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मैत्री दिवस की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बहुत-बहुत बधाई|

-सीमा सचदेव


Friday, August 1, 2008

राष्ट्र प्रहरी

राष्ट्र के प्रहरी सजग
सतत सीमा पर सजग
हाथ में हथियार है
वार को तैयार है ।

शत्रु पर आँखें टिकी
सांस आहट पर रुकी
सीमा न लांघ पाये
दुश्मन न भाग पाये ।

ठंड हो कितनी कड़क
झुलसती गरमी भड़क
परवाह न तूफान की
गोलियों से जान की ।

जान लेकर हाथ पर
खड़ा सीमा हर पहर
वीर बन पहरा सतत
राष्ट्र की रक्षा निरत ।

बस यही अरमान है
वार देनी जान है
चोट इक आये नही
आन अब जाये नही ।

बाढ़ हो तूफान हो
आपदा अनजान हो
वीर है तत्पर सदा
निसार जान को सदा ।

कवि कुलवंत सिंह