बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 14
तेरहवें भाग से आगे....
14. आ दुकान पर गरजा शेर
बोला लाओ न जरा भी देर
जंगल में चुनाव का मौसम
डर लगता है मुझको हर दम
दe दो जो मुझको तुम वोट
बदले में ले लेना नोट
जीतूँगा जंगल का राज
सजेगा मेरे सिर पर ताज
तब तुम मेरे पास में आना
खोलूँगा जंगल का खजाना
जितना चाहो धन ले आना
मजे से अपनी दुकान चलाना
दुविधा में बंदर अब आया
खोल दुकान बड़ा पछताया।
14. शेर बंदर की दुकान पर आकर गरजने लगा और बोला:- जंगल में चुनाव का मौसम है, मुझे हर पल हार जाने का डर लगा रहता है। जो तुम मुझे वोट मोल दे दो तो मैं जीत जाऊँगा और जंगल का राजा बन जाऊँगा। फिर तुम मेरे पास आना तो मैं जंगल का सारा खजाना तुम्हारे लिए खोल दूँगा, तुम जितना चाहो धन ले लेना और मजे से अपनी दुकानदारी चलाना।
अब तो बंदर दुविधा में फँस गया। क्या करे क्या न करे? बेचारा बंदर दुकान खोल कर पछताने लगा।
पंद्रहवाँ (अंतिम) भाग

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12. बोली लोमड़ी बंदर भाई
11. भागता आया एक खरगोश
10. भाग के आया वहां सियार
9. टें टें करता आया गधा
7. टर्र टर्र करता मेंढक आया
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पसीना हमारे शरीर से निकलने वाला एक खारा द्रव है। इसमें लगभग 99% हिस्सा पानी और एक प्रतिशत हिस्सा नमक होता है। पसीना हमारे शरीर से हर समय निकलता रहता है लेकिन हमें दिखाई नहीं देता। पसीने के रूप में हमारे खून और शरीर के बहुत से हानिकारक पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं। अगर ये बाहर न निकले तो हमारा शरीर तरह-तरह के रोगों का घर ही बन जाए। हर एक मनुष्य के शरीर में लगभग २३००,००० पसीने की ग्रंथियाँ होती हैं। हर ग्रंथि की लम्बाई १/१५ इंच होती है। अगर जोड़े तो कुल ग्रंथियों की लम्बाई लगभग ढाई मील हो जाती है।





बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-