बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) -9
आठवें भाग से आगे....
9. टें टें करता आया गधा
बोला तुम खुश रहो सदा
कर लो जो तुम मुझ संग यारी
चलेगी अपनी शॉप न्यारी
धोबी घाट में मैं जाऊँगा
कपड़े चुराकर ले आऊँगा
बेच के पैसे तुम ले लेना
बदले में मुझे चारा देना
बोला बंदर कर दो माफ़
कपडे वो तो होंगे साफ़
खेला जो चोरी का खेल
हो जाएगी हमको जेल
फिर तुम ऐसी बात न करना
पुलिस बुला लूँगा अब वरना ।
दौडा गधा सुन उल्टे पैर
सोचा मेरी होगी न खैर ।
9 . अब बंदर की दुकान पर आया गधा और बंदर को खुश रहने का आशीर्वाद देकर बोला:-
बंदर भाई, बंदर भाई अगर तुम मेरे साथ हाथ मिला लो तो अपनी यह दुकान खूब चलेगी।
हाँ, हाँ गधे भाई! पर कैसे? ( बंदर बोला )
देखो, मैं रोज धोबी घाट पर जाऊँगा और कपड़े चुराकर ले आया करुँगा। तुम उन कपड़ों को बेचकर पैसे कमा लेना और बदले में मुझे खाने के लिए चारा दे देना।
बंदर तो गधे की बात सुनकर डर गया और बोला- गधे भाई तुम मुझे तो माफ़ ही करो। अगर चोरी पकड़ी गई तो हम दोनों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। मेरे सामने फिर कभी ऐसी बात की तो मैं पुलिस बुला लूँगा। पुलिस का नाम सुनते ही गधा वहां से ऐसा रफ़ू-चक्कर हुआ कि फिर पीछे मुडकर भी नहीं देखा।
दसवाँ भाग

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2 पाठकों का कहना है :
टें टें करता आया गधा
बोला तुम खुश रहो सदा
कर लो जो तुम मुझ संग यारी
चलेगी अपनी शॉप न्यारी
धोबी घाट में मैं जाऊँगा
कपड़े चुराकर ले आऊँगा
बेच के पैसे तुम ले लेना
बदले में मुझे चारा देना
बोला बंदर कर दो माफ़
कपडे वो तो होंगे साफ़
खेला जो चोरी का खेल
हो जाएगी हमको जेल
फिर तुम ऐसी बात न करना
पुलिस बुला लूँगा अब वरना ।
दौडा गधा सुन उल्टे पैर
सोचा मेरी होगी न खैर ।
गधे भी पुलिस से डरते हैं. हा हा अह . सीमा जी बधाई. एक सुन्दर रचना के लिए.
Sandesh mila.Chori nahi karne ka.Badhayi.
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