सच्ची शान्ति
एक राजा ने शान्ति पर सर्वोत्तम चित्र बनाने वाले कलाकार को पुरस्कार देने की घोषणा की .अनेक कलाकारों ने प्रयास किया .राजा ने सबके चित्रों को देखा परन्तु उसे केवल दो ही चित्र पसंद आए और उसे उनमे से एक को चुनना था ।
एक चित्र था शांत झील का .चारों ओर के शांत ऊंचे पर्वतों के लिए वह झील एक दर्पण के सामान थी .ऊपर आकाश में श्वेत कोमल बादलों के पुंज थे .जिन्होंने भी इस चित्र को देखा उन्हें लगा कि यह शान्ति का सर्वोत्तम चित्रण है ।
दूसरे चित्र में भी पर्वत थे परन्तु ये उबड़ -खाबड़ एवं वृक्ष रहित थे .ऊपर रूद्र आकाश था जिससे वृष्टिपात हो रहा था और बिजली कड़क रही थी .पर्वत के निचले भाग से फेन उठाता हुआ जलप्रपात प्रवाहित हो रहा था ,यह सर्वथा
शान्ति का चित्र नही था ।
परन्तु जब राजा ने ध्यान से देखा ,तो पाया कि जलप्रपात के पीछे की चट्टान की दरार में एक छोटी सी झाड़ी उगी हुई है .झाडी पर एक मादा पक्षी ने अपना घोसला बनाया हुआ था .वहाँ ,प्रचंड गति से बहते पानी के बीच भी वह मादा पक्षी अपने घोसले पर बैठी थी -पूर्णतया शांत अवस्था में !
राजा ने दूसरे चित्र को चुना .उसने स्पष्ट किया ,शान्ति का अभिप्राय किसी ऐसे स्थान पर होना नही है ,जहाँ कोई
कोलाहल ,संकट या परिश्रम न हो ,शान्ति का अर्थ है इन सब के मध्य रहते हुए भी ह्रदय शांत रखना ।
शान्ति का सच्चा अर्थ यही है
योग मंजरी से साभार
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 पाठकों का कहना है :
नीलम जी,
बहुत ही अच्छी और समझदारी की बात कही गयी है इस कहानी में. जीवन में संघर्षों व कष्टों की कमी नहीं होती लेकिन शांति को पाने के लिए अपने मन को उन सभी कष्ट की अनुभूतिओं से अलग करके शांत करके ही शांति प्राप्त हो सकती है.
"इस बोधकथा के माध्यम से
शांति को बहुत अच्छे ढंग से
समझाया गया है!"
--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
bahur khoob shnti ko kya sahi samjhaya hai .achchha laga padh ke .
shanno ji ne sahi kaha hai
rachana
shanno ji balle -balle ,tussi aa gaye ji ,lohdi ki badhaai aapko bhi .ek sukhad ahsaas hai aapki tippni .
raavendra ji aapko bhi shukriya ,aap hain kahaan aajkal ,kabhi ghar (spn)jaana nahi ha kya aapka ?
हाँ नीलम जी, मैं आ गयी हूँ सही-सलामत और आपके प्यारे बाल-उद्यान को देखे बिना चैन नहीं पड़ा. और आपकी शिक्षा-प्रद कहानी पढ़कर तो दिल बाग़-बाग़ हो गया. फिर बिना कमेन्ट दिये हुये अपना खाना नहीं पचा. और आपने भी हमको तुरंत ही सूंघ लिया बाल-उद्यान में आते ही, इसका भी बहुत धन्यबाद जी.
और रचना जी, हमारे कमेन्ट को पसंद करने का आपका भी बहुत आभार. जीवन की सचाई ही यही है की इसमें सुख-दुःख के अनुभव भरे हैं और चित्त को शांत करके ही शांति पायी जा सकती है. हाँ यह बात और है की कहना आसान होता है पर करने में समय लगता है इंसान को. नीलम जी वैसे चीज़ें बहुत ही अच्छी प्रस्तुत करती हैं बाल-उद्यान पर.
अरे हाँ नीलम जी, लोहड़ी की आपको व सभी हिन्दयुग्म के साथियों को भी मेरी तरफ से अनेक बधाइयाँ. सबको HAPPY LOHDI!! जी.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)