स्वेटर पर स्वेटर पहनाती है माँ
स्वेटर पर स्वेटर पहनाती है माँ
उस पर भी जैकेट लदवाती है माँ
मै कपड़ों का गठर नज़र आता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
गरम दूध बौर्नवीटा के संग भर देती है
आइसक्रीम कुल्फी सब बंद कर देती है
मै दूर से देख उनको लार टपकाता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
माँ सुबह सुबह नहलाती है
हम पर कितना जुल्म ढाती है
अब तो पानी देख के घबराता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
खेल प्रारंभ करते ही ख़त्म होजाता है
सूरज भी ठण्ड में जल्दी ही सो जाता है
घर में बैठा बैठा बोर हो जाता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
जेब से हाथ निकलते ही ठंडा हो जाता है
ठन्डे हाथों से पेन भी कहाँ पकड़ा जाता है
बहुत मुश्किल से थोडा ही लिख पाता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
टीचर इतना होमवर्क देती है
सोचती नहीं की उम्र हमारी छोटी है
न हो पूरा काम तो मार खाता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
जड़े की छुट्टी और लम्बी होनी चाहिए
हम को भी आज़ादी मिलनी चाहिए
सब को यही बात सुनाता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ
--रचना श्रीवास्तव
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6 पाठकों का कहना है :
बहुत ही सुन्दर कविता...
"स्वेटर पर स्वेटर पहनाती है माँ,
उन पर भी जैकेट लदवाती है माँ!
मैं कपड़ों का गट्ठर नज़र आता हूँ
ठण्ड में जब भी स्कूल जाता हूँ!"
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बहुत सुंदर और ताज़ा लगीं - ये पंक्तियाँ!
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस
simply Beautiful!!
aap sabhi ka kavita pasand karne ka bahut bahut dhnyavad
rachana
रचना जी,
इतनी प्यारी और सुन्दर रचना लिखने के लिये आप बधाई का पात्र हैं. बहुत, बहुत, बहुत बढ़िया लगी मुझे यह. आपको बधाई और गणतंत्र दिवस पर आपको व सभी को शुभकामनायें.
aap ko bhi bahut bahut badhai ho .
kavita pasand karne ke liye dhnyavad.
kahan rah gain thi aap thodi der kar di aane me.
saader
rachana
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