अमर उजाला में बाल-उद्यान की चर्चा
६ नवम्बर २००८ के अमर उजाला (हिन्दी दैनिक) में रंजना भाटिया द्वारा बाल-उद्यान पर ५ नवम्बर २००८ को प्रकाशित दीदी की पाती शृंखला की 'पॉपकॉर्न की कहानी' के कुछ अंश प्रकाशित हुए हैं। इससे पहले सीमा सचदेव की कविताएँ और रंजना भाटिया की 'दीदी की पातियाँ' राजस्थान-पत्रिका समूह की बाल-पत्रिका 'छोटू-मोटू' में भी प्रकाशित होते रहे हैं। यह इस बात का संकेत है कि लोग अब यह मानने लगे हैं कि सजाल पर भी अच्छा बाल-साहित्य आने लगा है।

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
सर्दी का मौसम शुरू होने वाला है। इस मौसम में हम क्या भूत भी ठिठुरने लगते हैं।
क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम के बारे में रोचक बातें जानना चाहेंगे? बहुत आसान है। क्लिक कीजिए।
तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
आपने बंदर और मगरमच्छ की कहानी सुनी होगी? क्या बोला! आपकी मम्मी ने नहीं सुनाई। कोई प्रॉब्लम नहीं। सीमा आंटी सुना रही हैं, वो भी कविता के रूप में।
एक बार क्या हुआ कि जंगल में एक बंदर ने दुकान खोली। क्या सोच रहे हैं? यही ना कि बंदर ने क्या-क्या बेचा होगा, कैसे-कैसे ग्राहक आये होंगे! हम भी यही सोच रहे हैं।
पहेलियों के साथ दिमागी कसरत करने का मन है? अरे वाह! आप तो बहुत बहुत बहादुर बच्चे निकले। ठीक है फिर बूझिए हमारी पहेलियाँ।
बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
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7 पाठकों का कहना है :
Ranju ji bahut-bahut BADHAAII . Shaayad kabhi BAAL-SAAHITAYKARO ko bi sammanit kiya jaayega.....:)
shaayad kabhi yunikavi ki bhaanti hindyugm dvaara BAAL-UDYAAN par bhi nazar daudaaii jayegi aur baal-saahitaykaaro ko bhi purskaar se navaaza jaayega
रन्जना जी हार्दिक बधाई स्वीकारे ,आपकी जानकारी वास्तव मे लाजवाब होती है.....सीमा सचदेव
रंजना जी बधाई स्वीकारें...
आप लोग बच्चों के लिये जो कर रहे हैं वो आगे बहुत काम आयेगा... क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले वर्षों में इंटेरनेट का प्रयोग बढ़ने वाला है और अगर स्कूलों में "बाल-उद्यान’ पढ़ाया जाने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा...
बहुत बहुत बधाई रंजू जी..
आपके पॉपकार्न की खुशबू
हमको भी खींच लायी
चलती रहे यह कलम बालहिती
पुनश्च बहुत बहुत बधाई
WOW!yah bahut hi khushi ki bat hai,khaskar ranjana ji,aapki mehnat rang layi.badhai swikar karein.
ALOK SINGH "SAHIL"
अनाम जी,
आपका विचार बहुत बढ़िया है। हिन्द-युग्म इस पर विचार भी कर रहा है। जल्द ही आप देखेंगे कि हम बाल-साहित्य-सृजन के लिए भी सम्मान और पुरस्कार बाँटेंगे। और देखिए ना, आप हमारे बाल-रचानाओं को पढ़ते हैं, अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें देते हैं, यह अपने-आप में यह बहुत बड़ा पुरस्कार है किसी रचनाकार के लिए।
पिछले वर्ष बाल-दिवस पर हमने रौनक पारेख को बाल-उद्यान सम्मान दिया भी था। अब जल्द ही कुछ नया करने की फ़िराक में हैं हमलोग।
आपका पुनः धन्यवाद।
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