चाणक्य और उसकी माता
चाणक्य और उसकी माता
( वज्र सा कठोर ,फूल सा कोमल )
चाणक्य अपने समय का लौहपुरुष था राज द्रोहियों का दमन करने में उसे दया नहीं आती थी शासन में वह वज्र की तरह कठोर और हृदयहीन होकर भी अपने व्यक्तिगत जीवन में फूल की तरह कोमल ,सरस ,एवं सुहृदय था | चाणक्य दिमाग का ही नहीं दिल का भी बड़ा था इस सम्बन्ध में उसके जीवन की एक घटना उल्लेखनीय है ,चाणक्य जब बड़ा हुआ तो एक दिन उसकी माँ उसका मुहँ देखकर रोने लगी बेटे ने इसका कारण पूछा तो वह बोली -बेटा ,तुम्हारे भाग्य में राज्य छत्र धारण करना लिखा है ; तुम थोडा ही प्रयत्न करके किसी बड़े राज्य के स्वामी बन जाओगे -इसी को सोचकर रो रही हूँ ! चाणक्य ने हंसते हुए कहा -माँ इसमें रोने वाली क्या बात है ,तम्हारे लिए वह बड़े हर्ष की बात होनी चाहिए सच -सच बताओ ,तुम क्यों रोती हो !माँ ने कहा -बेटा ,मै अपने दुर्भाग्य पर रो रही हूँ अधिकार पाकर लोग अपने सगे सम्बन्धियों तक की उपेक्षा करने लगते हैं ,तुम भी राजा होते ही भूल जाओगे ,"राजा जोगी काके मीत "उस समय तुम मेरे प्रेम को ठुकरा दोगे ,मुझे पूछोगे भी नहीं ,मेरा लाल मेरे हाथों से निकल जाएगा यही सोचकर रोती हूँ , चाणक्य ने फिर पूछा -माँ ,तुमने कैसे जाना कि मेरे भाग्य में राजा होना लिखा है ? माता ने कहा -बेटा तुम्हारे सामने के दोनों दांतों से पता चलता है कि तुम राज वैभव का भोग करोगे सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ऐसे दांतों वाला मनुष्य राजा होता है चाणक्य ने उसी समय एक पत्थर से अपने दोनों दांतों को तोड़ डाला और उन्हें फेंककर कहा -माँ ,अब तुम निश्चिंत हो जाओ ;अब मै राजा नहीं बन सकता ; इसलिए सदा तम्हारे पास ही रहूंगा बेटे का यह अद्भत कर्म देखकर माँ चकित हो गयी वह आँचल से रक्त पोंछते हुए बोली -चाणक्य यह तूने क्या किया ?चाणक्य ने सहज भाव से कहा -माँ ,तुम्हारी ममता के आगे मै संसार की बड़ी से बड़ी वस्तु को भी तुच्छ मानता हूँ मेरी दृष्टि में वह इन दांतों से और राज्य से कहीं अधिक मूल्यवान है माता ने प्रेम से गदगद होकर पुत्र को गले लगा लिया उस दिन से चाणक्य खंडदंत नाम से प्रसिद्ध हो गया
संकलन
नीलम मिश्रा

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10 पाठकों का कहना है :
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने .......अतिउत्तम
नीलम जी आपने माँ और बेटे के प्यार को बहुत ही अच्छे उदाहरण से प्रस्तुत किया है.
एक कमी मुझे नजर आ रही है वो एह कि आपने चाणक्य को था से संबोधित किया है.
बहुत ही अच्छी कहानी है माता और पुत्र के प्रेम को दर्शाती है
धन्यवाद
इस प्रेरक प्रसंग से परिचित कराने के लिए आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
माँ के प्रेम के सामने सच में सब तुच्छ लगता है क्या कहानी बताई है धन्यवाद नीलम जी
रचना
shaayad isi liye wo raajaa n bane..
yoon n jane kitne hi raajaaon ko taiyaar kar sakte the..
आपने माँ और बेटे के रिश्ते पे एक अच्छा प्रेरक प्रसंग पढ़वाया. इसी रिश्ते पे लिखी मुनव्वर राना साहब की एक ग़ज़ल याद आ रही है मुझे
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैदान छोड़ देने से मैं बच तो जाऊँगा
लेकिन जो यह ख़बर मेरी माँ तक पहुँच गई
‘मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमीं अच्छी नहीं होती
प्रेरणा देने वाली कहानी...ऐसे कहानिया आज कल के बच्चो को जरूर सुनानी चाहिए
प्रेरणा देने वाली कहानी...ऐसी कहानिया आज कल के बच्चो को जरूर सुनानी चाहिए
प्रेरणा देने वाली कहानी है
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