नादान कौन ?
नादान कौन ?
रोहन ने कबूतर को उड़ाने के लिए रेत उछाली तो वह दीपेश के बालों में जा गिरी. दीपेश ने रोहन को धक्का दिया तो वह लडखडा कर गिर गया. रोहन का घुटना छिल गया. शाम को रोहन के पिता दीपेश के घर जाकर उसके पिता से लड़ पड़े. हाथापाई, हंगामा किसी ने थाने फोन कर दिया, पुलिस आई और दोनों को पकड़ ले गई. आस पड़ोस वाले गए और बीच बचाव कर दोनों को छुड़ा लाये.दुसरे दिन छुट्टी के समय दीपेश और रोहन गोल गोल घूम रहे थे, ज्यादा घूमने से चक्कर आये तो खिलखिला कर एक दुसरे से लिपट गए। बच्चो को लेने आई, दोनों की मम्मियों ने स्कूल के दरवाजे पर खड़े हो यह दृष्य देखा. दोनों मम्मियों की नज़रे मिली और मुंह फेर लिया
विनय के जोशी

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
सर्दी का मौसम शुरू होने वाला है। इस मौसम में हम क्या भूत भी ठिठुरने लगते हैं।
क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम के बारे में रोचक बातें जानना चाहेंगे? बहुत आसान है। क्लिक कीजिए।
तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
आपने बंदर और मगरमच्छ की कहानी सुनी होगी? क्या बोला! आपकी मम्मी ने नहीं सुनाई। कोई प्रॉब्लम नहीं। सीमा आंटी सुना रही हैं, वो भी कविता के रूप में।
एक बार क्या हुआ कि जंगल में एक बंदर ने दुकान खोली। क्या सोच रहे हैं? यही ना कि बंदर ने क्या-क्या बेचा होगा, कैसे-कैसे ग्राहक आये होंगे! हम भी यही सोच रहे हैं।
पहेलियों के साथ दिमागी कसरत करने का मन है? अरे वाह! आप तो बहुत बहुत बहादुर बच्चे निकले। ठीक है फिर बूझिए हमारी पहेलियाँ।
बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
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3 पाठकों का कहना है :
छोटी सी कहानी और कितनी बडी बात । इसीलिए तो बच्चे बच्चे होते हैं और बचपन प्यारा होता है जिसमें न कोई वैर-विरोध न दुनियादारी की परवाह ।
न कोई चिन्ता न फ़िक्र
न ही कुछ खोने का डर
न दुनियादारी न झंझट
कितना प्यारा है बचपन
sumit says
very nice.
विनय जी" देर आयद दुरुस्त आयद " शायद सभी माता -पिता की जिन्दगी में ये वक़्त आता है ,की उन्हें बच्चों से सीखना पड़ता है कि जो भी हो बच्चों के मामलों में बड़ों की दखलंदाजी हरगिज नहीं चलती .
ऐसी ही अच्छी प्रस्तुति का आगे भी इन्तजार रहेगा हमारे बाल -उद्यान को
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