बाल किसानों के लिये रसगुल्ले की उन्नत किस्म ..
बडा सलौना नजुक प्यारा सुन्दर सा मन
भोला भाला नटखट सा होता है बचपन
एक बार मांमां जी मेरे घर पर आये
मेरी फ़ेवरेट मिठाई, रसगुल्ले लाये
मैंने सोचा रसगुल्ले जब खायेंगे सब
सारे के सारे ही फ़िनिश हो जायेंगे तब
सोचा बच्चू ऐसी कोई युक्ति लडाऐं
ताकि ये रसगुल्ले खत्म ना होने पायें
छुपकर ले गया दो रसगुल्ले नज़र बचाकर
बगिया मे बो दिये मैंने पिछवाडे जाकर
कई दिनो तक रोज देखता सुबह शाम मैं
मन ही नहीं लगता था मेरा किसी काम में
रोज सोचता आज उगा होगा रसगुल्ला
मगर दिनों तक धरती से ना फ़ूटा कुल्ला
माली काका को हमने जब बात बताई
हुई शिकायत घर पर और फिर खूब धुनाई
दिल के अरमां आंसुओं में बह गये सारे
अक्ल बडी या भैंस मालुम तभी हुआ रे ..
अक्ल बडी या भैंस मालुम तभी हुआ रे ..
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4 पाठकों का कहना है :
क्या आईडिया है राघव जी रस्सगुल्ले की खेती...... ।काश ऐसा हो सकता तो आज हमें चीनी का भाव नहीं खलता । पढकर मजा आया ।
badhiya hai.
are wah kya baat hai .sunder kavita
kash ke paudhe nikalte aur unme lagte rasgulle
bahut khoob
saader
rachana
चलिए कोई बात नहीं ,हम उन को उनके हाल पर छोड़ देते हैं जो बच्चों की नादानियों पर बच्चों की धुनाई कर देते हैं ,आप रसगुल्ले खाइए और खिलाईये ,बेहद अच्छी किस्म की फसल थी अगर हो जाती सोचिये चींटियों की तो मौज ही आ जाती और रसगुल्लों की पहली मालिक तो वही हो जाती ,और बेचारे बच्चे मन मसोस कर दूर से ही रसगुल्लों को निहारते रहते हा हा हा हा
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