Wednesday, February 3, 2010

हितोपदेश 19 - मूर्ख गधा

इक धोबी के पास गधा
करता रहता काम सदा
कपड़े सारे उसके उठाता
और नदी पर छोड़ के जाता
लेता धोबी बहुत सा काम
गधे को न मिलता आराम
न मिलता खाना भर पेट
भूखे पेट ही जाता लेट
हो गया गधा बहुत कमजोर
नहीं रहा था उसमें जोर
पहुँच गया वह मरण किनारे
और अब धोबी मन में विचारे
जो इसका नहीं पेट भरेगा
तो यह भूखा ही मरेगा
आया उसको एक ख्याल
ओढ़ा दी उसे बाघ की खाल
छोड़ दिया उसको आज़ाद
खेतों में फसलों के पास
मिलता उसको पेट भर खाना
मिला हो जैसे कोई खजाना
सारा दिन वह फसलें चरता
भरता पेट और मस्ती करता
कुछ ही दिन में आ गया जोश
सँभल गए गधे के होश
इक दिन खेत का मालिक आया
देख के गधे को वो भरमाया
समझ लिया गधे को बाघ
दूर से देख गया वो भाग
दूजे दिन मालिक फिर आया
साथ मे धनुष-वाण भी लाया
पहने उसने कपड़े काले
ताकि बाघ को भ्रम में डाले
गधा समझ कर बाघ आ जाए
और वो उसको मार गिराए
बैठा छुप कर वृक्ष की डाली
समझा गधे ने है गधी काली
खुश हो देख के भाग के आया
टै-टै करके वो चिल्लाया
जैसे ही गधे की सुनी आवाज़
समझ गया मालिक सब राज
ओढ़ी गधे ने बाघ की खाल
चली किसी ने मुझ संग चाल
आसानी से उसको मारा
मर गया था अब गधा बेचारा


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2 पाठकों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत सुन्दर सीमा जी कहानियों से बहुत अच्छी कविता बुन लेती हैं बधाई उन्हें

Unknown का कहना है कि -

kavita acchi lagi.....

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