बिन सोचे नहीं कीजिए , कटु वचन का वार तो को तो कुछ शब्द हैं , वाकु पर प्रहार वाकु पर प्रहार , चुभे ज्यों कोई शूल चुभता है हर पल , फ़िर चाहे फ़ैंको फ़ूल ऊपर से मुस्काएं , पर मन में तो खिन्न खटकत हैं वो शब्द , कहे जो सोचे बिन ।
आपकी यह कुडंलिया छंद में रचना बंधी है। इसमें जिन शब्दों से रचना प्रारंभ की जाती है उसी से उसका अंत होता है। इस छंद में आपकी रचना का एक शुद्ध रूप यह भी हो सकता है। यथा- बिन सोचे करिए नहीं, कटु वचनों के वार । तुमको तो कुछ शब्द हैं, उसको वाक प्रहार ॥ उसको वाक प्रहार, चुभे नित जैसे काँटा । मन के बीचो बीच, नहीं वह जाय निपाटा ॥ "सीमा" रही बताय, हृदय जो कभी खरोंचे । कभी न करिए आप, बात ऐसी बिन सोचे ॥
छांदिक रचना लिखने के लिए बधाई! सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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2 पाठकों का कहना है :
अच्छी बातें !!
आपकी यह कुडंलिया छंद में रचना बंधी है। इसमें जिन शब्दों से रचना प्रारंभ की जाती है उसी से उसका अंत होता है। इस छंद में आपकी
रचना का एक शुद्ध रूप यह भी हो सकता है।
यथा-
बिन सोचे करिए नहीं, कटु वचनों के वार ।
तुमको तो कुछ शब्द हैं, उसको वाक प्रहार ॥
उसको वाक प्रहार, चुभे नित जैसे काँटा ।
मन के बीचो बीच, नहीं वह जाय निपाटा ॥
"सीमा" रही बताय, हृदय जो कभी खरोंचे ।
कभी न करिए आप, बात ऐसी बिन सोचे ॥
छांदिक रचना लिखने के लिए बधाई!
सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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