Tuesday, December 30, 2008

चूहों के घर बिल्ली आई

चूहों के घर बिल्ली आई
नये साल के तोहफे लाई
चूहों की इक सभा बुलाई
आ के अपनी बात बताई

नये साल का नियम बनाया
आज से मैंने यह अपनाया
अब मैं तुमको नहीं खाऊँगी
तुम सब के संग मिल के रहूँगी

मेरा तुम से पक्का वादा
मेरे मन में नेक इरादा
तुम भी मौसी को अपना लो
मुझको अपने घर में जगह दो

सुन कर चूहे भी खुश हो गये
सब को अच्छे तोहफे मिल गये
मौसी को सत्कार दे रहे
और वापिस उपहार दे रहे

बिल्ली सोच रही मन ही मन
पाल रहे हैं घर में दुश्मन
पर चूहों के बच्चे छोटे
नन्हे थे, नहीं अकल के मोटे

समझ गये बिल्ली की चाल
आया उनको एक ख्याल
बोले मौसी यहाँ पे आओ
हमें अपनी गोदी में सुलाओ

खुश हो गई बिल्ली सुन कर
आई थी वह यही सोच कर
कि वह सबके पास में जाए
चोरी से बच्चों को खाए

सारे बिल्ली के पास आ गये
और कुछ उसकी पीठ पे चढ़ गये
पकड़ा बिल्ली ने इक बच्चा
खाने लगी थी उसको कच्चा

लगे वे बिल्ली के बाल नोचने
और दाँतों से उसे काटने
देख के बिल्ली भी घबराई
सोचा वहाँ से ले विदाई

सारे तोहफे छोड़ के भागी
चूहों को भी समझ आ गई
दुश्मन पे न करो एतबार
धोखे से वह करता वार

छोड़े बिल्ली बुरे ख्याल
अभी नहीं आया वो साल

आप सबको नव-वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं।
नव-वर्ष सबके लिए मंगलमय हो....सीमा सचदेव


Monday, December 29, 2008

हितोपदेश-10 बातूनी कछुआ

इक जंगल में एक तलाब
कछुआ उसमें एक जनाब
बगुले वहाँ पे आते अकसर
बैठते आकर वो तरु पर
कछुआ भी बाहर आ जाता
और फिर उनसे खूब बतियाता
बन गए दोस्त बगुले दो
अकसर वहाँ पे आते जो
तीनों मिलकर बातें करते
इधर-उधर में मस्ती करते
एक बार गर्मी का मौसम
गला सूखता था हरदम
ऊपर से न हुई बरसात
बिन पानी कैसे हो बात
सूख गया तालाब का पानी
खतरे में सबकी जिंदगानी
कछुआ बोला बगुले भैया
पार लगाओ मेरी नैया
यहाँ पे अब न रह पाऊँगा
बिन पानी के मर जाऊँगा
मौत के मुँह से मुझे बचाओ
किसी जगह पे और ले जाओ
पड़े सोच में बगुले बेचारे
कैसे ले जाएँ, मन में विचारे
सोच के इक तरकीब लगाई
बगुलों ने लकड़ी उठाई
लकड़ी को उन्होंने मुँह में दबाया
फिर कछुए को कह सुनाया
देखो इसको बीच में पकड़ो
अच्छी तरह दाँतों में जकड़ो
उड़ेंगे हम तुम्हें ऐसे लेकर
छोड़ेंगे नई जगह पे जाकर
पर इक बात का रखना ध्यान
नहीं खोलना अपनी जुबान
जरा सा भी जो मुँह खोलोगे
तो तुम जाकर नीचे गिरोगे
कछुए ने लकड़ी मुँह में दबाई
बगुलो ने उड़ान लगाई
पहुँचे जब ऊँचे आसमान
आया कछुए को एक ध्यान
बगुलों की नसीहत भूला
कहने को कुछ अपना मुँह खोला
गिर गया आकर धरती पर
गिरते ही कछुआ गया मर
अब कछुए को कौन समझाए
बातों ही में प्राण गँवाए
जो वो बातूनी न होता
तो वो ऐसे ही न मरता
********************************
चित्रकार- मनु बेतख्खल्लुस


Saturday, December 27, 2008

क्रिस्मस पर रोहिणी, दिल्ली में हुई चित्रकला प्रतियोगिता

२५ दिसम्बर २००८ को हिन्द-युग्म के बाल-मंच बाल-उद्यान ने एक चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें कक्षा १ से लेकर कक्षा ७ तक के अनेकों छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कक्षा ५, ६ और ७ के छात्रों के चित्रों में से हर्षिता के चित्र को प्रथम, कक्षा ३ के चित्रकारों के चित्रों में से प्राची की चित्र को प्रथम और कक्षा १ के अक्षत के चित्र को प्रथम पुरस्कार के लिए चुना गया। यह आयोजन बाल-उद्यान की संपादक नीलम मिश्रा के नेतृत्व में किया गया।

आप भी देखें विजेताओं की पेंटिंग और कुछ सराहनीय पेंटिंग। इन बाल-चित्रकारों को अपना प्रोत्साहन अवश्य दें।


हर्षिता द्वारा बना चित्र


प्राची द्वारा बना चित्र


अक्षत द्वारा बना चित्र


पाखी द्वारा बना चित्र


प्रकृति द्वारा बना चित्र


मानसी द्वारा बना चित्र


गगन द्वारा बना चित्र


केशव द्वारा बना चित्र


अदिति द्वारा बना चित्र


Friday, December 26, 2008

हिंद - देश

दुनिया में है सबसे प्यारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

धरती पर है देश निराला,
जग को राह दिखाने वाला,
कोटि नमन करते इस भू को
ले गोदी सबको है पाला ,

योग अहिंसा, ज्ञान, ध्यान की
बहती पावन निर्मल धारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

भांत भांत के फूल खिले हैं,
इस धरती के रंग में ढ़ले हैं,
गोरे, काले यां हों श्यामल
दिल के लगते सभी भले हैं,

जप तप पूजा धर्म न्याय की
दिलों में बहती अमृत धारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

मिलन अनोखा संस्कृति का है,
भाषा, वाणी, बोली का है,
सबको दिल में बसाता देश
ऋषियों, मुनियों, वेदों का है,

सत्कर्मों से, सदभावों से,
मानवता का बना सहारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

देवों की है महिमा गाता,
हर जन मंदिर मस्जिद जाता,
इस धर्म धरा पर कर्मों से
पुण्य प्रगति की अलख जगाता,

पर्वत, नदियों घाटी ने मिल,
इस भू को है खूब संवारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, December 25, 2008

किस्मस ट्री की पेंटिंग

किस्मस दिवस पर बाल-उद्यान के दैनिक बाल पाठक और रचनाकार प्रणव गौड़ (कुश) ने किस्मस-ट्री का चित्र बनाकर भेजा है। आप भी देखें और बतायें कि कैसा है?



कुश की अपनी तस्वीर-


Wednesday, December 24, 2008

क्रिस्मस की पूर्व संध्या पर विशेष-हैपी क्रिस्मस

हैपी क्रिस्मस
प्यारे बच्चो
कल क्रिस्मस का त्योहार है जिसे विश्व भर मे पूरे उत्साह से मनाया जाता है उपहार बाँटे जाते है और क्रिस्मस ट्री को भी सजाया जाता है
यह त्योहार मुख्य रूप से ईसाई धर्म से सम्बन्धित है ,परन्तु आज इसे सभी धर्मो द्वारा प्रेम और सदभावना का सन्देश देने हेतु खुशी-खुशी मनाया जाता है वैसे भी त्योहार हमारे जीवन मे रँग और उमँग भरते है फिर चाहे वो किसी भी धर्म से सम्बन्धित क्यो न हों पर क्या आपको पता है यह त्योहार क्यों मनाया जाता है चलो मै आपको बताती हूँ ,इससे सम्बन्धित कहानी :-
बच्चो! यह त्योहार इसाई धर्म के मसीहा ईसा-मसीह के जन्मोत्सव के रूप मे मनाया जाता है उनका जन्म इसराईल मे बेथलेहम नगर मे माँ मेरी की कोख से हुआ यह त्योहार हर वर्ष २५ दिसम्बर को मनाया जाता है आप को पता है ईसा-मसीह बच्चों से बहुत प्यार करते थे
उनके के जन्म के साथ ई. सन का प्रारम्भ भी हुआ जिसका प्रयोग आज हम आधुनिक केलैण्डर के रूप मे भी करते है
उनके जन्म के पूर्व की तिथी को ईसा पूर्व ( ईसा से पहले ) कहा जाता है ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र कहा जाता है जिसे हिन्दु लोग अवतार कहते है इस दिन आपसी प्रेम-प्यार बाँटने हे तु एक दूसरे को उपहार भेंट किए जाते है और इस को सांत क्लॉज़ से भी जोडा जाता है जो गरीबो को उपहार बाँटते हैं
इस दिन क्रिस्मस ट्री को भी सजाया जाता है -पर पता है क्यों ....? यह भी अपने आप मे एक जीवन का सन्देश देता है यह एक ऐसा वृक्ष है जो सदा-बहार रहता है और जब क्रिस्मस होता है (दिसम्बर माह मे ) तब पूरी सर्दी होती है और सभी पेड-पौद्धे ठण्डी से सूखने लगते है उसमे भी यह वृक्ष हरा-भरा रह कर जियो और जीने दो का सन्देश देता है और पता है आपको इस पर उपहार भी टांगे जाते है और उन्हे ईश्वर का दिया हुआ उपहार माना जाता है
ईसा मसीह ने सब को प्यार से रहने और क्षमा कर देने का संदेश दिया
आपको पता है अपने जीवन मे उन्होंने बहुत सारी विपदाओं का सामना किया
लेकिन सदैव संघर्षरत रहे उनके विरोधिओं द्वारा उन्हें जब शूली पर टांगा जा रहा था
तब भी उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा था- कि हे ईश्वर ,ये नादान लोग हैं ,
नही जानते कि ये क्या कर रहे हैं इस लिए इनको क्षमा कर देना इस तरह उन्होंने क्षमा
और प्यार को उत्तम माना

आया क्रिस्मस का त्योहार
बँटेंगे ढेरों ही उपहार
क्रिस्मस ट्री सजाया जाएगा
दोस्तों को बुलाया जाएगा
सांता क्लॉज आएंगे
उपहार हमें दे जाएंगे
सबके लिए शुभ-कामनाएं
ढेरों खुशियां घर में आएं


बस आज के लिए इतनी ही जानकारी आओ हम सब मिलकर त्योहार मनाएँ , प्रेम का सन्देश फैलाएँ
क्रिस्मस की आप सब को हार्दिक बधाई....सीमा सचदेव


हिन्द देश के निवासी सभी जन एक है (वीडियो)

शिक्षा प्रौद्योगिकी केन्द्र की ओर से बना 'एक चिड़िया' का वीडियो आपमें से बहुत से लोगों ने देख रखा होगा।
देखिए शायद आपकी कुछ यादें फिर से ताज़ी हो जायें।
अपने भाई-बहनों को दिखाएँ।
अभिभावक अपने बच्चों को दिखाएँ।
अध्यापकगण अपने विद्यार्थियों को दिखाएँ



प्रस्तुति- नीलम मिश्रा


Tuesday, December 23, 2008

यीशु का जन्म


आज से दो हजार वर्ष पूर्व येरुसलम के बेथे गांव में यह यीशु का जन्म हुआ यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने कई दुखी असहाय लोगों की मदद की ..वह जो शिक्षाएं देते ,जो बातें कहते वह बहुत कम लोग समझ पाते पर उनकी बातें सुन कर हैरान बहुत होते ..वह उन्हें उस वक्त तक मसीहा नही समझते थे ..कई लोग उनसे जलते थे और उनको मारने का हर वक्त कोई न कोई प्लान बनाते रहते किंतु यीशु उनके हाथ न आते ..पर उनके ही के शिष्य ने सिर्फ़ तीस चांदी के सिक्के ले कर यीशु को पकडवा दिया ..यीशु इस बात को जानते थे .फ़िर भी चुप रहे ..उन्हें तब के राजा हेरोवेश और फिलातुल के दरबार में बंदी बना कर पेश किया गया ..

छानबीन में कुछ साबित नहीं हुआ .फ़िर भी लोग नही माने ....उनको क्रूस पर चढा दिया गया और उनके शरीर पर बड़ी बड़ी [मेखे] कीले थोक दी गयीं ..तीन घंटो तक उन्हें इसी तरह से लटकाए रखा ..और जब उनके प्राण निकले तो प्रकति भी जैसे रो पड़ी कहते हैं ,तब चारों तरफ़ अँधेरा छा गया चट्टानें टूट कर गिरने लगीं .. भूकंप आए ...यीशु को दफना दिया गया .उन पर भारी पत्थर रखे गए ..राजा ने उनकी कब्र पर पहरा भी लगवा दिया ..क्यों की यीशू ने तीन दिन बाद अपने जिन्दा होने की भविष्यवाणी पहले ही कर रखी थी ...

कहते हैं तीसरे दिन यीशू जी उठे और सुबह होते ही पत्थर एक और गिर पड़े वह कब्र से बाहर निकल गए ..जब माँ मरियम अपने बेटे की देह पर सुंगधित द्रव्य डालने आयीं तो वह देख कर हैरान रह गयीं ....तभी स्वर्ग से दूतों ने कहा कि --"माता तेरा पुत्र यीशू मसीह अपने वहां के अनुसार जीवित हो कर जा चुका है .".वह रविवार का दिन था .यीशू के अनुयाइयों ने मोमबत्ती जला कर खुशियाँ मनाई ...



Monday, December 22, 2008

मोर

मोर
जब छाएँ बादल घनघोर
देखो रँग-बिरँगा मोर
अपने सुन्दर पँख फैलाकर
नाचे यह कैँ-कैँ-कैँ गाकर
लम्बी पूँछ यह जब फैलाए
चाँद सा इक आकार बनाए
पूँछ पे इसकी सुन्दर सितारे
लगते कितने प्यारे-प्यारे
सुन्दर सी कलगी है सिर पर
नाचे जब यह पँख फैलाकर
देख के बच्चे खुश हो जाएँ
आओ मिलकर नाचेँ-गाएँ

*******************************


Saturday, December 20, 2008

अनाथालय में कहानी-कथन की प्रतियोगिता



दिनांक 06-12-2008, दोपहर ४ बजे से ६ बजे तक 'शोभना शिक्षण संस्था' में कहानी कथन की प्रतियोगिता आयोजित की गई. इस प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को बाल उद्यान की तरफ़ से पुरस्कार प्रदान किए गए . उनकी तस्वीर आप देख सकते हैं ..
1.स्वप्निल तनपुरे
2.संजय मोकले
3.सागर ससाने


स्वप्निल तनपुरे


संजय मोकले


सागर ससाने



Friday, December 19, 2008

हितोपदेश- 9. दोस्ती मगर सोच समझ कर

प्यारे बच्चो ,
आपने हितोपदेश की बहुत सी कहानियाँ पढी हैं न अब पढिए और देखियें इसे नए रूप में आपके मनु अंकल ने इस कहानी पर कार्टून भी बनाए है आपको बहुत अच्छे लगते हैं न कार्टून कार्टून के साथ कहानी का तो मजा ही कुछ और है सुन्दर चित्रों के साथ मजेदार कहानी आपके लिए हम मनु अंकल से अनुरोध करेंगे कि वो आगे से सभी कहानियों पर चित्र बनाएं बताना जरूर ,नहीं तो आपके अंकल जी नाराज़ हो जाएँगे और फिर हमें अच्छे-अच्छे कार्टून नहीं बना कर देंगे -

दोस्ती मगर सोच समझ कर
एक बार इक मृग और कौआ
पक्के मित्र थे दोनों भैया
दोनों ही मिलजुल कर रहते
सुख-दुख इक दूजे से कहते
एक बार वहाँ भेड़िया आया
मृग को देख के वो ललचाया
दिखने में है कितना प्यारा
खाकर इसको आए नजारा
सोचा उसने एक उपाय
क्यों न उसको दोस्त बनाए
पहले जाए उसके पास
बनाए पूरा ही विश्वास
फिर जब कोई मौका पाए
तो धोखे से उसको खाए
सोच के गया वो मृग के पास
बँधाने लगा उसे विश्वास
मीठी बातों से रिझाने
लगा वो मृग को अपना बनाने
बोला यहाँ पे मैं अकेला
न कोई गुरु न कोई चेला
नहीं मेरा कोई परिवार
छूट गया सारा घर-बार
कोई न करे मेरे संग बात
रहता हूँ चुपचाप दिन-रात
न मेरे कोई पास में आता
न कोई सुख-दुख बँटाता
बोलो यूँ कब तक रह जाऊँ
अकेले कैसे जीवन बिताऊँ


सोचा तुमको दोस्त बनाऊँ
हो सके तो कुछ काम भी आऊँ
जो हो मैत्री स्वीकार
बाँटेगे हम मिलकर प्यार
मृग उसकी बातों में आया
उसको अपना दोस्त बनाया
इतने में कौआ वहाँ आया
भेड़िये को मृग के घर पाया
पूछा मृग से उसका नाम
आया वो यहाँ किस काम
मृग ने भेड़िए से मिलवाया
और आने का कारण बताया
लुट गई इसकी दुनिया सारी
करना चाहता है मुझसे यारी
समझ गया सब कौआ स्याना
डाल रहा यह मृग को दाना
जैसे ही इसको मिलेगा मौका
मृग को यह दे देगा धोखा
मृग से फिर यूँ बोला कौआ
सुनो ध्यान से बात यह भैया
भेड़िया कितना ताकतवर
बिन मतलब न जाए किसी दर
नहीं जानो तुम इसके बारे
दोस्ती न करना बिना विचारे
उस पे न करना एतबार
जिसका न जानो घर-बार
भागा वहाँ से भेड़िया सुनकर
समझा मृग यह सब अब जाकर
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बच्चो समझना बातें सारी
सोच समझ कर करना यारी

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इन लाजवाब चित्रों के लिए मनु जी को हार्दिक धन्यवाद......सीमा सचदेव

चित्रकार- मनु बे-तखल्लुस


Wednesday, December 17, 2008

जीव बचाओ अभियान

नमस्कार बच्चो ,
कैसे हैं आप सब लोग ? पिछली बार मैने आपसे पूछा कि आपको सरकस मे जाकर कैसा लगा और क्यों ?
वैसे मै अपने मन की बात बताऊँ ,मुझे सरकस देख कर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा मनोरंजन
के लिए बेजुबान जानवरों को बंधक बनाया जाता है हमें केवल यह खेल तमाशा दिखता है जिसे देख कर
हम हँसते है ,खुश होते है लेकिन उसके लिए जानवरों पर कितना जुल्म होता है वो हम नहीं देख पाते
आज़ादी सबको प्रिय है हम भी हर वर्ष आज़ादी दिवस कितनी धूमधाम से मनाते हैं और पता है यह आज़ादी
हासिल करने के लिए न जाने कितने ही देश-भक्त वीरों ने अपनी कुर्बानी दी है जब हम आज़ाद रहना चाहते है
तो उन जानवरों को गुलाम क्यों बनाया जाता है जो इस धरा का उपहार हैं क्या अपने मनोरंजन के लिए जानवरों
पर जुल्म उचित है ? नही...! आपका भी यही उत्तर होगा न तो चलो हमारे साथ

"जीव बचाओ अभियान" मे

जीव बचाओ अभियान

आओ इक अभियान चलाएँ
बेजुबान जीवों को बचाएँ
मनोरंजन के हेतु केवल
क्यों दिखाएँ निर्दोषों पे बल
आज़ादी है सबको प्यारी
तरसे इसको दुनिया सारी
जो हैं धरती पर उपहार
करो उन जीवों से प्यार
आज़ादी उनकी न छीने
चैन से उनको भी दें जीने
ईश्वर की वो भी संतान
केवल न उनको पशु जान
वो भी धरती पर उपहार
जीने का उनको भी अधिकार
हम उनके अधिकार बचाएँ
आओ इक अभियान चलाएँ

आप भी आएँगे न मेरे साथ इस "जीव बचाओ अभियान" में


Tuesday, December 16, 2008

जब मराठी बोलने वाले लोकमान्य जी ने हिन्दी में बोला

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है ..इसको व्यवहारिक दर्जा मिले ,इसके लिए राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में यह मांग उठी सन १९२९ में ...इसी विषय पर लगातार चर्चा चलती रही ..इस सम्मेलन की अध्यक्षता लोकमान्य तिलक कर रहे थे ..उनको अपनी भाषा मराठी थी ....वह अंग्रेजी तो खूब अच्छे से बोल लेते थे पर हिन्दी उन्हें बहुत कम आती थी

महात्मा गांधी को अध्यक्ष की यह बात अच्छी नहीं लग रही थी .अध्यक्ष अंगेरजी में बोलंगे तो यह बात अच्छी नही होगी और इस से जो वह कार्यक्रम करना चाहते हैं उसकी मूल भावना को धक्का लगेगा ...उन्होंने कहा कि भले को अध्यक्ष हिन्दी नही बोल सकते पर उन्हें अंग्रेजी में भी नही बोलना है यह विदेशी भाषा है ..उनसे अनुरोध है कि चाहे तो मराठी में बोले ...कम से कम यह भारतीय भाषा तो है ....

गांधी जी के इस अनुरोध का सबने बहुत दिल से स्वागत किया

जब लोकमान्य तिलक बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने कहा ..".भाइयों और बहनों ! आज मैं पहली बार अपने भारत की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में बोलने की कोशिश कर रहा हूँ ....यदि मुझसे भाषा बोलने में कोई गलती हो जाए तो मुझे माफ़ कर दें!"

लोकमान्य के हिन्दी के यह वाक्य सुन कर सब हैरान रह गए ..महात्मा गान्धी ,सरोजनी नायडू .देश भर से आए नेता ..श्रोता सबने खूब ताली बजा कर स्वागत किया ...उनके हिन्दी भाषण का भी और उनके हिन्दी प्रेम का भी ...बहुत देर तक तालियाँ बजती रही ...इसके बाद पूरा भाषण हिन्दी में दिया लोकमान्य जी ने और सबने एक एक शब्द सुना ...हिन्दी हमारी भाषा है इससे प्रेम करना सीखो ....


Monday, December 15, 2008

सरकस का खेल

प्यारे बच्चो ,

मैने पिछली बार आपसे कहा था कि मै आपको घुमाने ले जाऊँगी और उससे पहले वर्णमाला सिखाते हुए यह भी कहा था कि मै आपका टेस्ट भी लूँगी तो चलिए आज पहले आपको ले चलती हूँ सरकस दिखाने और फिर आपको देना होगा मेरे एक प्रश्न का उत्तर ,वो भी पूरी ईमानदारी से तो चलें सरकस देखने :-

सरकस का खेल

आओ बच्चो तुम्हे दिखाऊँ
इक सरकस का खेल
जिसे देखकर बढ जाता है
इक दूजे से मेल
झूल-झूल कर झूला झूले
भालू बड़ी शान से
गाड़ी बन्दर मामा चलाएँ


हाथी खेले कमान से
करतब करती नाच दिखाती
ऊँचे झूले पर चढ जाती
कूद के लडकियाँ खेल दिखाएँ
देख के सारे ताली बजाएँ


अब देखो वह जोकर आया
इक पहिए की साइकिल लाया
तरह्-तरह के मुँह बनाकर
उसने सबको खूब हँसाया
गेंद लिए फिर हाथी आया
भालू ने मोटर-साइकिल चलाया
अब आए पिंजरों मे शेर
खडे है उनको सारे घेर
जब शेरो के पिंजरे खोले
शेर तो दो पैरो पे डोले
लम्बी एक बनाकर रेल
खत्म हुआ सरकस का खेल

****************************

तो अब देखिए

प्रश्न :-आपको सरकस देखकर कैसा लगा ?

अच्छा या बुरा और क्यों ?

नक्ल नहीं करना ,बस अपने विचार बताना आपके पास समय है - एक दिन । लेट एन्ट्री स्वीकार नही की जाएगी और न ही उसका परिणाम घोषित किया जाएगा । आप अपना जवाब लिखिए ,हम चलते है और कल फिर आएँगे ,आपके परिणाम-पत्रों के साथ ।बाय-बाय।


Saturday, December 13, 2008

बाल उद्यान ने दी शहीदों को श्रद्धांजलि....



आतंकवादियों के हमले से कई निर्दोष लोग, अधिकारिओं तथा जाँबाजों को देश ने खो दिया है। इन शहीदों की कुर्बानी हम कभी भूल नहीं पाएँगे।

दिनांक ५ दिसम्बर २००८ को हाथों में मोमबत्तियां लिए एन.३ स्पोर्ट्स अकेडमी, औरंगाबाद. के बच्चों ने मारे गए निर्दोष जनता, सजीले सैनिक व वीर अधिकारियों को मौन श्रद्धांजलि दी। एन-३ स्पोर्ट्स अकेडमी के संचालक श्री संदीप जगताप, प्रशिक्षक श्री बी.एम॰ अंबे, पंकज परदेसी, उदय डोंगरे व श्री निवास मोतियेले ने भी मोम बत्ती जलाकर शहीदों के प्रति संवेदना प्रकट की।
इस अवसर पर बाल-उद्यान की गतिविधि प्रमुख श्रीमती सुनीता यादव ने मुम्बई हमले की निंदा करते हुए, शहीदों को अंतर्मन से नमन करते हुए उपस्थित भावी नागरिकों को सच्चाई के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। मैथली शरण गुप्त की 'मनुष्यता' कविता का सार 'जीवन की सार्थकता दूसरों की सहायता करने में है' समझाते हुए भारतीयता को बनाये रखने की बात कही।

कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ-








Friday, December 12, 2008

हितोपदेश -8 लालची ब्राह्मण और चीता

प्यारे बच्चो
इससे पहले मैंने आपको हितोपदेश की कुछ कहानियाँ सुनाई, जिनको आपने कभी मन से तो कभी बुझे मन से पढ़ा। शायद उपदेश सुनना अच्छा नहीं लगता न इसी लिए। तो हमने इसे काव्य-शैली मे लिखा कि आप उपदेश भी आसानी से सुन सको। इन को अगर आप अच्छे से पढ़ोगे तो हर कहानी में अपने हित में छुपा हुआ संदेश मिलेगा, जिसे हम अपने जीवन मे अपना कर बहुत सारी दुविधाओं और मुश्किलों से बच सकते हैं। इसी लिए तो इसका नाम ही हित+उपदेश ( हितोपदेश ) है। यह कहानी पढ़ के जरूर बताना कि आप को कैसी लगी फिर मैं आपको घुमाने भी ले जाऊँगी। तो आप सब तैयार हैं न मेरे साथ घूमने के लिए तो अगली बार चलते है, अब सुनो हितोपदेश का कथा-काव्य-


लालची ब्राह्मण और चीता

एक बार था एक ब्राह्मण
घूमने-फिरने को हुआ मन
हाथ मे पकड़ लिया एक थैला
चल पड़ा वो घर से अकेला
मार्ग में आया घना वन
डर गया ब्राह्मण मन ही मन
पर फिर खुद को ही समझाया
मन पक्का कर कदम बढ़ाया
पहुँचा अभी थोड़ी ही दूर
देखा चीता एक क्रूर
बैठा था तालाब के कूल
खिले वहाँ पर थे कुछ फूल
चीते ने ब्राह्मण को बुलाया
और अपना सब हाल सुनाया
देखो मैं हूँ बूढ़ा चीता
घास और पत्तों पे जीता
दाँत नहीं हैं मेरे पास
नहीं खा सकता हूँ अब मास
खोया मैंने सब परिवार
छूट गया सारा घर-बार
किए है मैंने बहुत ही पाप
शायद वही बन गए शाप
अब न रही है मुझमें शक्ति
करता हूँ बस प्रभु की भक्ति
करता रहता हूँ पुन्न-दान
ताकि मेरा हो कल्याण
मेरे पास सोने का कंगन
और तुम दिखते हो ब्राह्मण
करो जो तुम इसको स्वीकार
तो मेरा होगा उद्धार
कहकर कङ्गन भी दिखाया
और ब्राह्मण का मन ललचाया
लेने को आगे हाथ बढ़ाया
पर चीते ने फिर फरमाया
देखो तुम ब्राह्मण हो ज्ञानी
बात है सच्ची जानी-मानी
किया नहीं है तुमने स्नान
ले सकते हो कैसे दान
देखो इस तालाब का जल
पहले हो जाओ तुम निर्मल
आया ब्राह्मण को ध्यान
बोला करेगा वो स्नान
कहकर यह तालाब में उतरा
आया अब प्राणों पे खतरा
बातों में ब्राह्मण गया फँस
गया वो अब कीचड़ में धँस
अब चीते को मिल गया मौका
और ब्राह्मण को दे दिया धोखा
पकड़ के उसको मार गिराया
और फिर बड़े मजे से खाया
..............................
..............................
बच्चो तुम सबको समझाना
लालच में कभी न आना
****************************************************


हिंद - देश

दुनिया में है सबसे प्यारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

धरती पर है देश निराला,
जग को राह दिखाने वाला,
कोटि नमन करते इस भू को
ले गोदी सबको है पाला ,

योग अहिंसा, ज्ञान, ध्यान की
बहती पावन निर्मल धारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

भांत भांत के फूल खिले हैं,
इस धरती के रंग में ढ़ले हैं,
गोरे, काले यां हों श्यामल
दिल के लगते सभी भले हैं,

जप तप पूजा धर्म न्याय की
दिलों में बहती अमृत धारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

मिलन अनोखा संस्कृति का है,
भाषा, वाणी, बोली का है,
सबको दिल में बसाता देश
ऋषियों, मुनियों, वेदों का है,

सत्कर्मों से, सदभावों से,
मानवता का बना सहारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

देवों की है महिमा गाता,
हर जन मंदिर मस्जिद जाता,
इस धर्म धरा पर कर्मों से
पुण्य प्रगति की अलख जगाता,

पर्वत, नदियों घाटी ने मिल,
इस भू को है खूब संवारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, December 11, 2008

वर्णमाला-व्यंजन पाठ ६,७,८

प्यारे बच्चो ,
अभी तक आपने सीखा स्वर और व्यंजन में क-वर्ग ,च-वर्ग ,ट-वर्ग ,त-वर्ग अब सीखते है इससे आगे पाठ ६ , ७ और ८ प-वर्ग ,अन्तस्थ और ऊष्म तो आओ मेरे साथ........

पाठ ६


प पक्षी और से फल
खाओ फल आएगा बल



ब बन्दर और भ से भालु
आओ बच्चो तुम्हे दिखा लूँ



म मछली है जल के अन्दर
बच्चों इसको कहते प-वर्ग


पाठ 7


य युवक और र से रथ
बच्चो काभी न लाना स्वार्थ



ल लैम्प और व से वस्त्र
बच्चो सीख लो यह अक्षर


पाठ 8.


शेर और ष षटकोण
बच्चो क्यो बैठे हो मौन



सेब और ह से हाथ
बच्चो सब मिल रहना साथ

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Wednesday, December 10, 2008

29 नवम्बर 2008 को एस.बी.ओ. ए. स्कूल में आयोजित प्रदर्शनी की कुछ झाँकियाँ

मुख्याधापिका श्रीमती सुरेखा माने, अर्चना फडके के मार्गदर्शन से आयोजित इस प्रदर्शनी के बारे में ये कहना उचित होगा कि प्री-प्राईमरी स्तर पर बच्चों को जो भी सिखाया जाता है उसी के आधार पर बच्चों द्वारा बनायी गई/रंगाई गई चीजों का प्रदर्शन किया जाता है। जितनी भी गतिविधियाँ होती हैं उन्हें शिक्षिकाएँ विभिन्न आकार देकर आकर्षक बनाती हैं। हिन्द-युग्म की सुनीता यादव इस स्कूल में अध्यापिका है और इस प्रदर्शनी की कुछ झलकियाँ हमें भेजी हैं।

प्रस्तुत है प्रदर्शनी की कुछ झाँकियाँ...