Friday, November 28, 2008

नेक बनें इंसान

इक दूजे से प्यार ।
कभी न हो तकरार ।

ले हाथों में हाथ ।
कदम बढें इक साथ ।

इक आंगन के फूल ।
करें न कोई भूल ।

कभी न दो संताप ।
बढ़ता खूब प्रताप ।

पथ प्रगति हो धाम ।
करें देश का नाम ।

रखें सद्व्यवहार ।
अपना हो संसार ।

दूर रहे अभिमान ।
करें बड़ों का मान ।

सीख ज्ञान विज्ञान ।
कर्म करें महान ।

सत्य न्याय की धार ।
यही बनें हथियार ।

देश भक्ति हो राह ।
मर मिटने की चाह ।

ईश्वर दो वरदान ।
नेक बनें इंसान ।


Thursday, November 27, 2008

हितोपदेश-7 चील और बिल्ली

इक जंगलमें झील किनारे
रहते पक्षी प्यारे -प्यारे
गहरी छाया मे तरु पर
रहते पक्षी सब मिलकर
तने मे इक था बड़ा सा खड्डा
बन गया एक चील का अड्डा

खो दी थी उसने अपनी नज़र
गिर गए थे सब उसके पर
उड़ने से तो थी लाचार
रहने लगी थी वो बीमार
दया सब पक्षी उस पर करते
खाना खिलाकर पेट भी भरते
छाया मे वह बैठी रहती
देखभाल बच्चो की करती
खुश थे उससे पक्षी सारे
उड़ जाते सब बिना विचारे
बच्चे रहते चील के पास
था पक्षियोँ को बहुत विश्वास

इक दिन वहाँ इक बिल्ली आई
बच्चो को देख के वो ललचाई
चील ने उसकी सुनी आवाज़
बोली कौन आया यहाँ आज ?
समझी बिल्ली बात यह खास
नज़र नही है चील के पास
न तो इसके काम के पर
न चढ सकती है तरु पर
देख लिया बिल्ली ने मौका
आसानी से देगी धोखा
बोली बिल्ली मै यहाँ आई
दी यह सुन्दर जगह दिखाई
सोचा कुछ दिन यही बिताऊँ
क्यो न मै तेरे घर आऊँ ?
नही , नही यह बोली चील
जाती तुम पक्षियोँ को लील
यहाँ पे तुम फिर कभी न आना
न सुन्दर बच्चो को खाना
सुनकर बिल्ली बोली बहन
अब मेरा है पावन मन
खाती हूँ पत्ते और फल
पी लेती हूँ ठण्डा जल
छोड दिए मैने सब पाप
करती हूँ बस प्रभु का जाप
रहती हूँ भक्ति मे रत
लिया है मैने अब यह व्रत
किसी जीव को न खाऊँगी
सीधा स्वर्ग मे जाऊँगी
घर मे कोई आया मेहमान
होता ईश्वर के समान
जो मै कुछ दिन यहाँ रहूँगी
शान्त महौल मे भक्ति करूँगी
तेरे लिए खाना लाऊँगी
खुद मै भूखी रह जाऊँगी
की कुछ मीठी बाते ऐसी
सत्य की देवी के जैसी
हो गया चील को अब विश्वास
रख लिया उसको अपने पास
चुपके से बिल्ली ऊपर जाती
चुपके से बच्चे को मार के खाती
हड्डियाँ चील के घर मे छुपाती
पानी पीती और सो जाती
पक्षी सारे मन मे विचारे
कहाँ है उनके बच्चे प्यारे
बच्चा रोज गायब हो जाता
कोई भी इसको समझ न पाता
इक दिन कौआ एक सयाना
चोँच मे भर कर लाया खाना

सोचा चील को देकर आए
उसकी भी कुछ भूख मिटाए
चील के घर मे हड्डियोँ को पाया
उसने सब पक्षियोँ को बुलाया
भागी बिल्ली मौका पाकर
टूटे पक्षी चील पे आकर
इसी ने सब बच्चो को खाया
मिलकर चील को मार गिराया
....................
....................
करो जो दुष्टो पर एतबार
तो झेलना पड़ता है वार
करे जो मीठी-मीठी बात
समझो देगा वो आघात


Wednesday, November 26, 2008

रेल


छुक-छुक करती-चलती रेल.
कभी न थकती-चुकती रेल.
पर्वत-घाटी, वन-उपवन-
खेले आंख-मिचौली खेल...
कालू कुत्ता दौड़ लगाता,
लेकिन कभी जीत न पाता
गर्मी, ठण्ड, धूप, बरसात-
सबको जाती हँसकर झेल...
पैसे लाओ-टिकट कटाओ,
चाहो जहाँ वहां तुम जाओ.
व्यर्थ लड़ाई, करो न झगड़ा.
सबसे हँसकर रखना मेल...
पटरी साथ-साथ हैं चलतीं,
कभी नहीं आपस में मिलती.
सिग्नल कहता रुक जाओ,
डिब्बों में है ठेलमठेल...
कलकल बहे 'सलिल' शीतल,
थकन भुलाये जगती-तल.
चलते रहना है जीवन,
अगर रुके जग-जीवन जेल...

--आचार्य संजीव सलिल


Tuesday, November 25, 2008

जब बिना टिकट के नेहरू जी को एक स्वयं सेविका ने प्रदर्शनी में नही जाने दिया .



यह बात तब की है जब नेहरू जी एक खादी की प्रदशनी देखने गए ..यह घटना काकीनाडा के कांग्रेस अधिवेशन की है ..बहुत बड़े बड़े नेता इस प्रदशनी को देखने के लिए पहुंचे ..

वहां गेट पर एक लड़की खड़ी थी ..वह हर आने जाने वाले का टिकट चेक कर रही थी ..

जब नेहरू जी आए तो उसने नेहरू जी से भी टिकट माँगा

नेहरू जी ने कहा की मेरे पास तो टिकट नही हैं ..और न ही पैसे अब क्या करूँ ?

"तो आप यह प्रदर्शनी नही देख सकते हैं "..लड़की ने कहा ...

तभी वहां अन्य एक बड़े नेता आ गए ..उन्होंने लड़की से कहा अरे ! तुमने इन्हें पहचाना नही है क्या ? यह तो पंडित नेहरू जी हैं इन्हे जाने दो अन्दर .

लड़की ने कहा- श्री मान यह संभव नही हैं ...मैं गेट कीपर हूँ और मुझे आदेश है कि टिकट के किसी को अन्दर न जाने दिया जाए ..मैं जानती हूँ कि पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को रोक रही हूँ ...किंतु क्या करूँ आदेश ही ऐसे हैं ..

नेहरू जी यह सुन कर बहुत प्रभावित हुए और बोले- बेटी बहुत अच्छा है यह ..आज हमें इस तरह की स्वयं सेविकाओं की ही जरुरत है ...हर व्यक्ति को अनुशासित और अपने कर्तव्य का पालन करना आना चाहिए ...यह कह कर नेहरू जी ने उस लड़की का उत्साह बढाया ..
सन १९२२ में के इस अधिवेशन में एक सज्जन नेहरू जी के लिए टिकट ले कर आए तब नेहरू जी अन्दर गए ..इस घटना को न कभी नेहरू जी भूल पाये ..और हमें भी यह हमेशा याद रखनी चाहिए ....
रंजू भाटिया


बन्दर ,चूहे और बिल्ली


शान से आए बन्दर मामा
ढीला ढाला पहन पजामा
टोपी और कुर्ता भी पहना
बन्दरिया ने पहना गहना
निकले दोनो बींच बजार

मिल गए उनको चूहे चार
हँस कर करने लगे वो बातें
बन्दरिया कीउड़ गई रातें
बन्दर भी मन मे पछताया
क्यों वो बन्दरिया को लाया
गया वो बिल्ली बहन के पास

बोला बहना हूँ उदास
उसको सारी बात बताई
बिल्ली भी गुस्से मे आई
गई वो भाई के संग बजार
खड़े हुए थे चूहे चार

जब तक वो कोई बात समझते
बिल्ली बन्दर उन पर झपटे
उन चारों को मार गिराया
और फिर बड़े मजे से
*******************************


Monday, November 24, 2008

भारत की नारी-झलकारी

नमस्कार बच्चो,

अभी कुछ दिन पूर्व मैंने आपको झाँसी की रानी (कथा-काव्य) , भारत की दो महान विभूतियां सुनाई । आज सुनाती हूँ- उस वीरांगना की कहानी जिसका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया, जिसकी कुर्बानी किसी राजा-महाराजा से कम न थी, जिसने अपने फर्ज़ के आगे अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया और जिसने ब्रिटिश सरकार को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। हाँ! बच्चो, वो थी भारत की एक बहादुर नारी-झलकारी देवी
झलकारी देवी झाँसी की रानी की मुख्य सेविका और सुरक्षा-कर्मी थी। वह अनपढ़ होते हुए भी काफी सूझ-बूझ वाली बहादुर और दुश्मन का डट कर मुकाबला करने वाली थी। उसका पति और ससुर सेना में सिपाही थे, इसलिए उसमें वीरोचित गुण थे। कहते हैं एक बार झलकारी देवी जंगल में लकडियां लाने गई तो उस पर एक तेंदुए ने हमला कर दिया, बस फिर क्या था, झलकारी केवल एक हँसिया लेकर तेंदुए पर टूट पडी और देखते ही देखते तेंदुए के टुकड़े-टुकड़े हो गये। जब यह खबर रानी लक्ष्मी बाई ने सुनी तो वह बहुत खुश हुई और उसकी बहादुरी से प्रभावित हो उसे अपनी सुरक्षा-कर्मी के रूप मे नियुक्त कर लिया।
जब अंग्रेजो ने झाँसी पर हमला कर किले को चारो तरफ से घेर लिया और कोई रास्ता नहीं बचा तो झलकारी देवी ने अपनी निडरता और समझदारी का सबूत देते हुए रानी लक्ष्मी बाई को हाथी समेत किले की दीवार से कूद जाने और किला छोड देने की सलाह दी और स्वयम् रानी का पहनावा पहन कर रानी की जगह युद्ध मैदान मे उतर गई। अंग्रेजो को इस बात का आभास तक न हुआ। उसका पति और ससुर युद्ध में मारे गए लेकिन फिर भी वह वीरांगना लड़ने से पीछे न हटी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गई। तब तक रानी लक्ष्मी बाई बहुत दूर निकल चुकी थी। अंग्रेजों ने झलकारी को मार कर यही समझा कि उन्होंने रानी लक्ष्मी बाई को खत्म कर दिया है,लेकिन जब सच्चाई पता चली तो वे देख कर आश्चर्यचकित रह गये। इसलिए उस समय के अंग्रेज सेनापति जनरल ह्युरोज ने कहा था- "अगर हिन्दुस्तान की एक फीसदी लड़कियां भी ऐसी हो गई तो हम यहाँ नहीं टिक सकते "


तो सुना बच्चो आपने? कितनी बहादु, निडर, दुश्मन के दाँत खट्टे करने वाली, भारत की वीर नारी थी-झलकारी
ऐसी महान वीरांगना को हमारा नमन्


Friday, November 21, 2008

वीर जवान

हम हैं देश के वीर जवान,
भारत माँ पर हों बलिदान ।
हो ऐसा सौभाग्य हमारा,
ईश्वर हमको दो वरदान ।।

अड़े रहें हम, डटे रहें हम,
दुश्मन हो टकराकर चूर ।
देख हमारी हिम्मत साहस,
रहे काल भी हमसे दूर ।।

देशवासियों की सेवा में,
तत्पर हों हम वीर जवान ।
हो ऐसा सौभाग्य हमारा,
ईश्वर हमको दो वरदान ॥

हम हैं नन्हे वीर सिपाही,
धुन के पक्के, दिल मजबूत ।
जो भी आये राह हमारी,
पहुंचे वह सीधा ताबूत ॥

तन मन धन सब देश निछावर
मत डोले अपना ईमान ।
हो ऐसा सौभाग्य हमारा
ईश्वर हमको दो वरदान ॥

गीत विजय के हर पल गायें,
भारत माँ पर है अभिमान ।
मर मिटे जो देश की खातिर
युग युग तक करते सम्मान ॥

मतवाले हम वीर निराले,
अर्पित हों भारत पर प्रान ।
हो ऐसा सौभाग्य हमारा
ईश्वर हमको दो वरदान ॥

कवि कुलवंत सिंह


हितोपदेश-6 मूर्ख बन्दर

मूर्ख को सलाह मत दो / मूर्ख बन्दर
एक बार इक नदी किनारे
रहते पक्षी प्यारे-प्यारे
हरे-भरे थे पेड़ वहाँ पर
बनाए वहाँ पर सुन्दर घर
पास थी इक छोटी सी पहाड़ी
रहते बन्दर वहाँ अनाड़ी
एक बार सर्दी की रात
होने लगी बहुत बरसात
आ गई बहुत नदी मे बाढ़
बन्दरो को न मिली कोई आड़
छुप गए पक्षी अपने घर
नही था उन्हे वर्षा का डर
ठण्डी मे बन्दर कँपकँपाते
कभी इधर कभी उधर को जाते
देख के उनको पक्षी बोले
छोटे से प्यारे मुँह खोले
नही है पास हमारे कर
फिर भी हमने बनाए घर
तुम्हारे पास है दो-दो हाथ
फिर भी तुम न समझे बात
जो तुम अपना घर बनाते
तो ऐसे न कँपकँपाते
आया अब बन्दरो को क्रोध
भर गया मन मे प्रतिशोध
चढ़ कर सारे वृक्षो पर
तोड़ दिए पक्षियो के घर
अब पक्षियो को समझ मे आया
व्यर्थ मे मूर्खो को समझाया
जो न हम उनको समझाते
तो न अपने घर तुड़वाते
मूर्ख मूर्खता न छोड़े
मौका पा वो घर को फोड़े


Thursday, November 20, 2008

रोहिणी, दिल्ली में चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन





१३ नवम्बर २००८ को (बाल-दिवस की संध्या पर) नीलम मिश्रा ने अपनी रिहायश के बच्चों के बीच एक चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें अनेक बच्चों ने भाग लिया। पुरस्कारों का वितरण १८ नवम्बर की संध्या को हिन्द-युग्मी निखिल आनंद गिरि, भूपेन्द्र राघव की उपस्थिति में श्री एस॰ के॰ शर्मा (अध्यक्ष, फेडरेशन ऑफ रोहिणी एक्सटेंशन) जी द्वारा किया गया।


प्रथम पुरस्कार कक्षा ७ (सचदेवा पब्लिक स्कूल, रोहिणी) की छात्रा मानसी को दिया गया। इन्होंने अपनी पेंटिंग के माध्य्म से पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने की कोशिश की है।


द्वितीय पुरस्कार कक्षा ६ (बाल भारती स्कूल, रोहिणी) की छात्रा हर्षिता नांगिया को सुंदर रंग-संयोजन और कल्पनाशीलता के लिए दिया गया।





तृतीत पुरस्कार को दो छात्रों को दिया गया। एक ५वीं कक्षा (एन॰ के॰ बगरोडिया पब्लिक स्कूल, रोहिणी) के छात्र यश पाण्डेय को और दूसरे सेंट मारग्रेट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल, रोहिणी के छात्र केशव को।

हिन्द-युग्म बच्चों के सांस्कृतिक विकास करने और मातृभाषा के प्रति प्रेम को पल्लवित करने के लिए समय-समय पर इस तरह की कोशिश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करता रहा है।








गुड़िया है कितनी भली

नमस्कार बच्चो ,
आज अंतर्राष्ट्रीय बाल-दिवस है। हर वर्ष २० नवम्बर को विश्व भर मे बाल-दिवस मनाया जाता है।
आज मै सुनाती हूँ आपको एक प्यारी सी गुडिया की प्यारी सी कविता-

गुड़िया है कितनी भली

मेरी प्यारी सी गुड़िया है कितनी भली,
जैसे बगिया में कोई खिल रही हो कली
अपने पापा की खुशियों का संसार है,
और मम्मी की ममता का भंडार है

जब पापा की गोदी में जाती है वो,
उनको प्यारी सी बातें सुनाती है वो
खुद हँसती औ सब को हँसाती है वो,
मेरे आँचल में आ के चुप जाती है वो

गुस्सा पापा दिखाते हैं जब भी कभी,
मुस्कुरा के उन्हें शांत करती तभी
जीत लेती है वो प्यार से सब का मन,
अपनी बातों में कर लेती सबको मग्न

उसके हँसने में वीणा सी झंकार है,
गूँजता उससे मेरा यह संसार है
मुस्कुरा के वो खुशबू फैलाती है जब,
मम्मी-पापा उसी पे रीझ जाते हैं तब

मेरी गुड़िया स्यानी जब हो जाएगी,
पूरी दुनिया को नई राह दिखलाएगी
मम्मी-पापा के नाम को वो चमकाएगी,
अच्छे कर्मों से दुनिया में छा जाएगी

मेरी बच्ची तू हँसना-हँसाना सदा,
नाम पापा का ऊँचा ले जाना सदा
अपने पापा का तू पूरा संसार है,
उनकी आँखों में बस तेरा ही प्यार है

तेरे हँसने से खिल जाएगी हर कली,
मेरी प्यारी सी गुड़िया है कितनी भली

अंतर्राष्ट्रीय बाल-दिवस की विश्व भर के सभी बच्चो को
हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएँ......सीमा सचदेव


अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस

"हाँ! मै यह कर सकता हूँ"
हमेशा उनसे पूछो कि वो क्या बनना चाहते हैं, यह बात उन्हें सपने देखने देगी, और जब एक सपना तैयार हो जाए, तो एक अभिभावक और एक माँ होने के नाते, उस सपने को संजोकर, उसे पल्लवित करो तथा पुष्पित करने में अपने सारे प्रयत्न लगा दो| 1

---ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम

प्यारे बच्चो,
आज अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस है, क्या तुम्हें पता है कि हमारे देश की तरह ही दूसरे देश भी बाल दिवस मनाते हैं|
बाल दिवस संपूर्ण विश्व में सबसे पहले अक्टूबर 1953 में बाल कल्याण संघ के तत्वावधान में जेनेवा में मनाया गया था| इस अन्तराष्ट्रीय बाल दिवस की परिकल्पना वि॰ के॰ कृष्णा मेनन ने दी जिसे सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने 1954 में पूर्णतया स्वीकृति दे दी|
इस सार्वभौमिक बाल दिवस के, जिसे प्रति वर्ष 20 नवम्बर को मनाया जाता है, मुख्य उद्देश्य हैं-
१) दुनिया भर के बच्चों के बीच में पारस्परिक सहयोग और सामंजस्य स्थापित किया जाय|
२) विश्व के सभी बच्चों के कल्याण के लिए विभिन्न कल्याणकारी कार्यों का संचालन किया जाय |
इस दिन को "बचपन दिवस" भी कहते हैं, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्बारा निर्धारित मापदंड को दुनिया के 191 देशों ने सहर्ष स्वीकार किया है और बच्चों के अधिकारों के प्रति अपनी जागरूकता जाहिर की है |
कुछ देशों में इस किस-किस दिन मनाया जाता है, यह बताते हुए नीलम आंटी आज के लिए आपसे आज्ञा चाहती है, जल्दी ही फिर मुलाक़ात होगी
भारत - 14 नवम्बर
कनाडा -२० नवम्बर
इजरायल -19 अक्टूबर
मेक्सिको -30 अप्रैल
पाकिस्तान -20 नवम्बर
पेरू -17 अगस्त
नाइजीरिया -27 मई
जर्मनी- 1 जून
चीन -1 जून
पुर्तगाल- 1 जून
रोमानिया -1 जून
ऑस्ट्रेलिया - जुलाई के पहले रविवार को
न्यूजीलैंड -मार्च के पहले रविवार को
स.रा.संघ -जून का दूसरा रविवार
अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस की शुभकामनाएं समस्त हिन्द युग्म परिवार की तरफ़ से दुनिया के सभी बच्चों को |

नीलम मिश्रा


1. नीलम मिश्रा जी ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम को ईमेल किया था और निवेदन किया था कि अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस के अवसर पर अपना कोई संदेश दें। उपर्युक्त वक्तव्य उसी ईमेल की प्रतिक्रिया है।


Wednesday, November 19, 2008

झाँसी की रानी (कथा-काव्य)

झाँसी की रानी की कहानी कथा-काव्य के माध्यम से

बच्चो एक बहादुर नारी
माने जिसको दुनिया सारी
लक्ष्मी बाई था उसका नाम
किए अनूठे उसने काम
माँ भगीरथ की सन्तान
पिता मोरोपन्त की जान
काशी नगरी जन्म स्थान
मनु नाम से मिली पहचान
गंगाधर सँग विवाह रचाया
लक्ष्मी बाई नाम फिर पाया
निभाया अपना पत्नी धर्म
दिया एक पुत्र रत्न को जन्म
पर विधिना ने दिया न साथ
खोया प्यारा सुत इक रात
लिया गोद दामोदर राव
भरा नि:संतान का घाव
भाग्य फिर भी था विपरीत
कुछ दिन मे ही खोया मीत
अब अकेली रह गई रानी
फिर भी उसने हार न मानी
अपनाया झाँसी का राज
पहन लिया रानी का ताज
पर अंग्रेजो को न भाया
और रानी को कह सुनाया
गोद लिया सुत नही कोई माने
खुद को वो रानी न जाने
हो गई रानी अब मजबूर
भाग्य भी था कितना क्रूर
हुआ वहाँ अंग्रेजी राज
छिन गया रानी का ताज
सन अठारह सौ सत्तावन
बदला फिर रानी का जीवन
भड़की आजादी की आग
रानी अब फिर से गई जाग
झाँसी पर अधिकार जमाया
अंग्रेजो को मार भगाया
पर साथी कुछ थे गद्दार
पीठ के पीछे किए प्रहार
अंग्रेजो को भेद बताया
झाँसी से रानी को भगाया
कालपी पहुँच गई अब रानी
पेशवा को जा कही कहानी
आया पेशवा को भी क्रोध
किया अंग्रेजो का विरोध
जीत लिया ग्वालियर का किला
अंग्रेजो को सबक मिला
पर न साथी थे वफादार
नही थे उनके उच्च् विचार
अंग्रेजो से बेपरवाह
जीत मनाने लगे अथाह
कुछ ने दिया रानी को धोखा
मिल गया अंग्रेजो को मौका
घोडे पर अब निकली रानी
किन्तु हार किस्मत ने मानी
नाला पडा था इक पथ पर
ठहर गया घोडा वहीं पर
आ पहुँचे वहीं पर अंग्रेज
हुआ युद्ध दोनो मे तेज
अंत समय मे घायल रानी
साथी को इक बात बखानी
खत्म हो रहा मेरा जीवन
पर न छुए मुझे कोई अपावन
रानी का साथी था खास
साधु की कुटिया थी पास
जाके वही रानी को छुपाया
अंत समय रानी का आया
छूट गया था यह संसार
वही हुआ अंतिम संस्कार
बन गई उसकी अमर कहानी
ऐसी थी झाँसी की रानी


भारत की दो महान विभूतियां

नमस्कार बच्चो ,
आज हम फिर उपस्थित है आपके सम्मुख एक नई जानकारी के साथ। आज कौन सा दिन है?-१९ नवम्बर और आज है भारत की दो महान विभूतियों (महिलाओं ) का जन्म-दिवस ,जिनको देवी दुर्गा की उपाधि से सम्मानित किया जाता है जो अपने निश्चय मे दृढ तो थी ही ,बहादुर और देश की खातिर अपने आपको समर्पित कर देने वाली थीं जी वो दो नारियां थी- प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी रानीलक्ष्मी बाई और भारत की पहली महिला प्रधान-मंत्री इन्दिरा गाँधी जी इन्दिरा गाँधी जी के जीवन के बारे मे मैने आपको संक्षेप मे कुछ दिन पूर्व ही बताया था अब थोडी जानकारी रानी लक्ष्मी बाई के बारे मे :-
बुन्देले हरबोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लडी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी

सुभद्रा कुमारी चौहान जी की ये पंक्तियां हर किसी को गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है। आपने भी अवश्य यह कविता पढ़ी/सुनी होगी-
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म १९ नवम्बर१८३५ को मोरोपंत ताम्बे तथा माँ भागीरथी देवी के घर ब्राह्मण परिवार मे कांशी मे हुआ इनका बचपन का नाम था -मनु पेशवा बाजीराव के परिवार से निकटता होने की कारण बचपन मे ही इनमे वीरोचित गुण आ गए थे इन्होने मराठी ,हिन्दी ,संस्कृत भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया १८४२ मे केवल ७ साल की आयु मे इनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ तथा ये रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाने लगी १८५१ ई. मे रानीलक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह तीन माह की आयु मे ही चल बसा १८५३ मे इन्होने आनन्द राव नामक बच्चे को गोद लिया जो उस समय पाँच साल का था २१ नवम्बर १८५३ को राजा गंगाधर की मृत्यु हो गई और रानी लक्ष्मी बाई ने सारा राज-काज संभाला। राजा की मृत्यु के उपरान्त अंग्रेजो ने गोद लिए पुत्र दामोदर राव के उत्तराधिकार को अवैध घोषित कर दिया और झाँसी को अंग्रेजी राज मे मिलाने की कोशिशे तेज कर दी और झाँसी मे गवर्नर जनरल नियुक्त कर झाँसी को अंग्रेजी राज्य मे मिला लिया गया । रानी ने इसके लिए अपील की किन्तु उनकी एक बात न सुनी गई। जब सन १८५७ ई. मे पूरे देश मे स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला भभक उठी तोरानी के जीवन मे नया मोड़ आया। इस स्वतंत्रता संग्राम मे कई अंग्रेज सैनिक मारे गए और झाँसी एक बार फिर रानी के कब्जे मे आ गई यह देख कर अंग्रेज भडक उठे और रानी को को किला खाली करने का हुक्म सुना दिया। तांत्या टोपे रानी की सहायता हेतु आए लेकिन कुछ गद्दारो द्वारा रानी की सारी योजना अंग्रेजो तक पहुँचा दी गई जिससे अंग्रेजो ने रानी का पीछा किया तब तक रानी कालपी आ गई थी और पेशवा जी के साथ मिलकर अंग्रेजो का विरोध करने का फैसला किया लक्ष्मी बाई ने साथियो के साथ मिलकर ग्वालियर का किला जीत लिया। इस जीत के जश्न मे रानी के साथी राजा डूब गए। अंग्रेजो ने बिना मौका खोए फिर से हमला कर दिया और रानी को पीछे हटना पड़ा। कुछ विश्वासघातियो ने यहां ही रानी के साथ दगा किया और एक गोली लगने से रानी घायल हो गई । उसका घोडा मारा गया। घायलावस्था मे भी रानी दूसरे घोड़े पर सवार थी। रास्ते मे एक बड़ा नालापड़ा जिसे घोड़ा पार न कर पाया और अंग्रेजो ने उन्हे घेर लिया। घमासान युद्ध हुआ। रानी को अपना अंत निकट दिखाई दे रहा था। ऐसे मे उन्होने अपने एक विश्वासपात्र सरदार रामचन्द्र को संकेत किया जो उन्हे वहाँ से निकाल कर एक साधु की कुटिया मे ले गया। रानी ने अंतिम शब्द कहे कि अपवित्र अंग्रेज इस शरीर को छूने न पाएँ और प्राण त्याग दिए । साधु ने अपनी कुटी मे ही आग लगाकर उनकी अंतिम क्रिया सम्पन्न की और इस तरह केवल २३ वर्ष की आयु मे १८ जून १८५८ को स्वाभिमानी रानी लक्ष्मी बाई इस संसार से विदा हो गई

भारत की इन दो विभूतियो का नाम भारत के इतिहास मे सदैव अमर रहेगा


इन्दिरा जी

क थी लड़की, नाम था जिसका इन्दिरा जी,
छुई-मुई सी दिखती थी नाम था जिनका इन्दिरा जी
काम तो उनका दिखता था, नाम था जिनका इन्दिरा जी,
वानर सेना थी उन्होंने बनायी नाम था जिनका इन्दिरा जी,
जब-जब, जो-जो कहती, करती पूरी सेना जी,
जी धीरे -धीरे बड़ी हुई जब वो, साहसी बनी तब इन्दिरा जी
भारत माँ की शान बनी वो प्यारी थी वो इन्दिरा जी
तुम भी देश का मान बढ़ाओ, जैसे थी इन्दिरा जी,
भारत माँ की शान थी वो, प्यारी हमारी इंदिरा जी
प्यारे बच्चो, भारत की थी पहली महिला प्रधान मंत्री
वो थी हमारी इन्दिरा जी,
हम भी सीखें उनसे कुछ,
जन्मदिवस पर उनके कुछ,
मेहनत, लगन से काम करोगे,
इन्दिरा जैसा नाम पाओगे


Tuesday, November 18, 2008

हितोपदेश-५ स्वार्थी शेर

इक जंगल में था इक शेर
देखा उसने आम का पेड़
घनी थी आम वृक्ष की छाया
देख के शेर के मन में आया
क्यों न वह यहाँ रह जाए
अपना अच्छा समय बिताए
पास में था चूहे का बिल
आया देख के बाहर निकल
देखा उसने सोया शेर
नहीं लगाई जरा भी देर
चढ़ गया उसकी पीठ पर
लगा कूदने शेर के ऊपर
खुल गई इससे शेर की जाग
लग गई उसके बदन मे आग
छुप गया चूहा अब बिल में
जला शेर दिल ही दिल में
उसने बिल्ली को बुलाया
और चूहे का किस्सा सुनाया
जैसे भी चूहे को मारो
तब तक मेरे यहाँ पधारो
खाना तुमको मैं ही दूँगा
हर पल तेरी रक्षा करूँगा
बिल्ली ने मानी शेर की बात
रहती बिल के पास दिन-रात
अच्छे-अच्छे खाने खाती
और बाकी सबको सुनाती
मैं तो हूँ तुम सबसे सयानी
समझने लगी वो खुद को रानी
बैठा चूहा बिल के अन्दर
नहीं निकला कुछ दिन तक बाहर
भूख से वह हो गया बेहाल
पर बाहर था उसका काल
कितने दिन वो भूख को जरता
भूखा मरता क्या न करता
कुछ दिन बाद वो बाहर निकला
और बिल्ली को मिल गया मौका
चूहे को उसने मार गिराया
जाकर शेर को सब बतलाया
शेर का मसला हो गया हल
बदल गई आँखे उसी पल
बोला! जाओ तुम अपनी राह
नहीं रखो कोई मुझसे चाह
अब न तुमको मिलेगा खाना
मेरे पास कभी न आना
अब बिल्ली ने जाना राज
मतलब से मिलता है ताज़
मतलब से सब पास मे आएँ
बिन मतलब न कोई बुलाए
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Sunday, November 16, 2008

अमर उजाला में शोभा महेन्द्रू का आर्टिकल

अभी एक हफ्ते पहले अमर उजाला के 'ब्लॉग कोना' स्तम्भ में रंजना भाटिया की 'पॉपकार्न की कहानी' के अंश प्रकाशित हुए थे। १५ नवम्बर २००८ के अमर उजाला में शोभा महेन्द्रू के आलेख 'चाचा नेहरू की चिट्ठियों के अंश' के कुछ अंश प्रकाशित हुए हैं। यह बाल-उद्यान टीम की ही सफलता है जोकि स्तरीय सामग्री का प्रकाशन कर रही है।




Saturday, November 15, 2008

सपने

सपने देखो इतने ऊंचे,
उठा है जितना गगन ऊंचा.
सफल न हो पाए जो सपने,
निराश न होना सब अपने.

हौसला जो हो बुलंद,
लगन जिसमें हो उमंग.
तो कार्लो तुम काम तुंरत,
सफलता मिलेगी तुम्हे फ़ौरन.

मेहनत पर टिकी दुनिया है,
अब तो आगे बढ़ना है.
काम मेहनत से करके हमें,
दुनिया में खुशहाली लाना है.

प्राची दुसद
९वी कक्षा ,
एस. बी. ओ . ए. पब्लिक स्कूल, औरंगाबाद


Friday, November 14, 2008

चाचा नेहरू कक्षा 1 के एक छात्र की दृष्टि में

इस बाल दिवस पर प्रथम कक्षा के छात्र प्रणव गौड़ (कुश) ने चाचा नेहरू पर कुछ शब्द लिख भेजे हैं। बाल-दिवस के दिन चाचा जी जन्मदिवस पर चाचा के बारे में किसी बच्चे के विचार जानना प्रासंगिक भी है। आप भी पढ़ें।


चाचा नेहरू ग्रेट हो तुम




फूल गुलाब का प्यारा था
'अराम हराम है' नारा था
सौहार्दय शांति के दूत थे तुम
भारत माता के सपूत थे तुम
आजीवन एक ही लीक रही
सबको मिलती बस सीख रही
सब लेकर हाथ किताब चलें
अपने पैरों पर आप चलें
बच्चा बच्चा स्वाभिमानी हो
और राष्ट्र हेतु बलिदानी हो
तुम ज्ञान गुणों के सागर थे
सचमुच के एक जवाहर थे
तुम अमर सभी के हो दिल में
बच्चों की हँसती महफिल में
चाचा नेहरू ग्रेट हो तुम
बच्चों के फेवरेट हो तुम


चन्द्रयान की सफलता पर हार्दिक बधाई

नमस्कार बच्चो,
आज आप बड़ी खुशी-खुशी बाल दिवस मना रहे हैं। आज हमें एक और बड़ी उपलब्धि
हासिल होगी और आज का दिन भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा।
आज चाँद पर हमारा भारतीय परचम लहराएग। आपको याद है न बच्चो मैंने भी एक
सपना देखा था और आपको एक कविता भी सुनाई थी " चाँद पे होता घर जो मेरा " और मीनू आंटी ने उसे अपनी आवाज भी दी थी। अब वो दिन दूर नहीं जब हमारा यह सपना सच होगा।

चन्द्रयान की सफलता पर हार्दिक बधाई

आज चांद पर हिन्द का परचम लहराएगा
देखते ही देखते पूरी दुनिया में छा जाएगा
आज हमारा परचम लहराया
कल हम भी चाँद पे जाएँगे
सैर करने के बहाने
चाँद पे घूम के आएँगे
इक दिन हम चाँद पे घर बनाएँगे
कभी-कभी धरती पे घूमने आएँगे
चाँद पर अब नया भारत बसेगा
हर भारतवासी इसपे गर्व करेगा
गूँजेगा हर तरफ भारत का नाम
दुनिया मे निराली होगी भारत की शान
चन्द्रयान की सफलता की शुभ-कामनाएँ
आओ नाम भारत का ऊँचा ले जाएँ


बाल उद्यान ने मनाया Kids.I.T.World स्कूल के साथ बाल-दिवस


दिनांक १३ नवम्बर २००८ को औरंगाबाद के Kids.I.T.World स्कूल के विद्यार्थियों ने बाल-दिवस मनाया। इस अवसर पर 'बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट' नाम की एक प्रतिस्पर्धा रखी गई थी, जिसमें बच्चों से न काम आने वाली वस्तुओं से कुछ रचनात्मक बनाने को कहा गया था।

प्रथम पुरस्कार प्राप्त आर्टिकल


हिन्द-युग्म के बाल-मंच 'बाल-उद्यान' की गतिविधि-प्रमुख सुनीता यादव इस अवसर पर वहाँ उपलब्ध थीं। यह कार्यक्रम को किड्स आईटी स्कूल और बाल-उद्यान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया गया था। प्रथम और द्वितीय स्थान के विजेता बाल कलाकारों को बाल-उद्यान की ओर से भी पुरस्कार दिया गया। गौरतलब है कि इसी वर्ष गर्मियों में बाल-उद्यान ने बाल-समर-कैम्प में बाल-उद्यान ने इसी समूह के साथ मिलकर स्मृति लेखन और चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया था।

द्वितीय पुरस्कार प्राप्त आर्टिकल


आइए देखते हैं बाल-दिवस प्रदर्शनी की कुछ और झलकियाँ-