गांधी जी की सीख

महात्मा गांधी की नजर पड़ी रुक गए | एक भी कदम आगे नहीं चल पाये पूछ लिया क्यों भाई ! क्या हो गया ?"
जी ! कुछ भी तो नहीं |"उस आदमी ने अपनी कुल्हाडी नीचे रखते हुए कहा
"तो फ़िर क्यों काट रहे हैं इस हरे भरे वृक्ष को ?"
मेरा अपना है मेरे पिता के समय का है .घर में ईंधन की कमी है .इसलिए काट रहा हूँ ....पाँच दस दिन में सूख जायेगा .जलाने के काम आएगा
आपका परिचय ? गांधी जी ने उसके चेहरे पर आँखे गडाते हुए पूछ लिया
जी ... महात्मा जी मैं इस गांव का सरपंच हूँ |"
ओह ! सरपंच होते हुए भी इतनी नादानी ..एक मूर्खता पूर्ण कदम ! मेरे भाई हरे वृक्ष पर कुल्हाडी चलाने का मतलब है एक हत्या करना आज आपने की ..यदि यही सिलसिला जारी रहा तो आपका गांव मेरे सिर की तरह गंजा हो जायेगा .जैसे सिर पर बाल शोभा बढाते हैं वैसे ही वृक्ष भी गांव की पूरी धरती की शोभा हैं ..ऐसा मत करो |"गांधी जी ने कहा
इतना सुनते ही सरपंच ने हरा वृक्ष कभी न काटने का वचन दिया बलिक औरों को भी काटने से रोकने का विश्वास दिलाया
यह सुनते ही गांधी जी खुश हो गए और बोले की जो अपराध तुम कर रहे थे उसके लिए तुम्हे बंजर जमीन में कम से कम एक दर्जन पेड़ और लगाने होंगे यही सच्चा पश्चताप होगा तुम्हारा
जी जरुर मैं इस आज्ञा का पालन करूँगा अवश्य सरपंच ने गाँधी जी को आश्वासन दिया ....

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6 पाठकों का कहना है :
गाँधी जी जैसा शायद ही कोई दूसरा इंसान पैदा हो। वैसे फिर से एक गाँधी जी की जरुरत महसूस हो रही हैं। आजकल कौन मानता है उनकी सीख को। पर खैर आपने ये सीख अच्छी पढवाई।
सरपंच द्वारा किया गया पश्चाताप हम सभी को करना चाहिए.......
उन भाइयों द्वारा किए गये अपराध के लिए जिन्हें समझाने के लिए महात्मा नहीं थे।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
शायद यह सभी के लिए सीख है. आभार इसे प्रस्तुत करने का.
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने
BEHATARIN LEKH,
ALOK SINGH "SAHIL"
बहुत बढिया प्रसंग.. सभी यदि अपनी क्षमतानुसार पेड लगाने का यदि बीड़ा उठा लें तो करीब आधी समस्या दूर हो जाये..
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