Friday, February 13, 2009

परोपकार

परहित जैसा धरम न कोई,
सब करते गुणगान ।
सब धर्मों में सार छिपा है,
सेवा यही महान ।

जिसने भी इसको अपनाया
चला ईश की राह ।
सत्य, अहिंसा, दया भावना,
इसी राह की चाह ।

धन वैभव का मोल नही कुछ,
किया न पर उपकार ।
ज्ञान, ध्यान की क्या है कीमत
किया न कुछ उपकार ।

जग में जीवन सफल उसी का
करता जो उपकार ।
मिलता प्रेम, प्रसिद्धि उसी को
जग करता सत्कार ।

मानवता है इसका गहना
क्षमा, न्याय आधार ।
सत्कर्मों की बहती धारा
प्रेमपूर्ण व्यवहार ।

कवि कुलवंत सिंह


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4 पाठकों का कहना है :

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

कुलवंत जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

परहित जैसा धरम न कोई,
सब करते गुणगान ।
सब धर्मों में सार छिपा है,
सेवा यही महान ।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

परहित सरस धरम नाही भाई पर पीरा सम नहिं अधमाई
तुलसी दास जी की पंक्तियाँ याद आ गई | बधाई

Anonymous का कहना है कि -

जग में जीवन सफल उसी का
करता जो उपकार ।
मिलता प्रेम, प्रसिद्धि उसी को
जग करता सत्कार ।
सीमा जी ने जो लिखा है वही में भी सोच रही थी .
आप की कविता में सच्ची बात कही गई है और सुंदर तरीके से भी
सादर
रचना

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वह शक्ति हमे दो दयनिधे
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें
पर सेवा पर उपकार में हम
निज जीवन सफल बना जावें
छल-दम्भ द्वेष पाखंड झूठ
अन्याय से निशि-दिन दूर रहें
जीवन हो शुद्ध सरल अपना
सुचि-प्रेम सुधारस बरसावें...

स्कूल के वक्त की प्रार्थना याद दिला दी इस सुन्दर कविता ने कुलवंत जी..
बहुत हितोपदेशी व सुन्दर कविता हैं
बधाई

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