अप्पू जल्दी लौट कर आना
अप्पू घर बीते रविवार बंद हो गया .बहुत सी यादे हर बच्चे और बड़े की इस से जुड़ी थी ..कुछ यादे अब सिर्फ़ गए अप्पू घर की :)
-- अप्पू घर के एक थे अप्पू राजा
गोल गोल घुमा के दिखाते थे तमाशा
मेरी गोल्ड थी शान इनकी
कोलम्बस झूला थी आन इसकी
हर झूला था सब बच्चो को प्यारा
बड़ों ने भी खूब यहाँ वक्त गुजारा
कभी बरसते पानी में थे खेल न्यारे
कभी स्नोफाल के थे दिलकश नजारे
बिछड गया हमारा अप्पू हमसे
नयना यह देख सबके बरसे
अप्पू जल्दी लौट के आना
हर बच्चे को फ़िर खूब झूला झुलाना
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7 पाठकों का कहना है :
दूर दराज से गाँव-ग़ाँव, शहर-शहर से दिल्ली भ्रमण की एक मुख्य वजह थी अप्पू-घर..
सच में बहुत सी यादें जुड़ी हैं अप्पू-घर से..
देखते हैं कब पलट कर दिल्ली का फिर से रुख करता है..
याद ताज़ा हो गयी रंजना जी आपकी पोस्ट देखकर सुबह सुबह..
भले ही आभासी सही परंतु मन ही मन यादों के जरिये अप्पूघर के झूलों का मजा सुबह सुबह..
बहुत बहुत धन्यवाद..
रंजना जी,
महानगरों में बच्चों के स्वस्थ मनोरंजन के लायक जगहें वैसे भी कम हैं, एसे में अप्पूघर जैसी जगहों का बंद होना दु:खद है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
रंजना जी,पिछली बार जब भारत आया तो तीन बार हमारा प्रोग्राम बना था अप्पू घर जाने का ओर सभी बच्चे ( करीब १५,२० लोग ) तेयार थे जाने को,लेकिन हर बार तबियत खराब हो जाती थी कभी मेरी,कभी बच्चो की,सोचा था अगली बार आये गे तो सभी को जरुर घुमाये गे... लेकिन आपू घर बन्द होगया,
लेकिन आप ने लिखा नही किन कारणो से बन्द हुया.ओर फ़िर सी खुलने के चन्श हे या नही.क्योकि मे सब से वादा करके जो आया हु
रंजना जी
बहुत ही सही विषय उठाया है । अप्पू का जाना सभी दिल्ली वासियों की पीड़ा है । काश! अप्पू रूक सकता ।
समसामयिक विषयों पर अभी तक राजीव जी की ही कलम चलती रही है,अब आपने भी कमर कस लिया,बहुत ही अच्छे विषय पर बहुत ही भावुक रचना,मजा आ गया,बहुत बहुत साधुवाद,
आलोक सिंह "साहिल"
दिल्ली का न होने के कारण मैं कभी अप्पू घर गया तो नहीं था, लेकिन उसके बारे में बातें जरूर सुनी थी। अप्पू घर का बंद होना सच में एक दु:खद घटना है। इस विषय पर आपने लिखकर एक बधाई का काम किया है।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
रंजना जी,
बचपन में एक दो बार दिल्ली की सैर के दौरान अप्पू घर जाना हुआ था । अब वह जगह नहीं रहेगी, काफ़ी दुख हुआ ।
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