Wednesday, April 30, 2008

रामू-शामू


रामू-शामू दो थे बंदर
रहते थे इक घर के अंदर
मालिक उनका था मदारी
उन्हें नचाता बारी-बारी
सारा दिन वे नाचते रहते
फिर भी खाली पेट थे रहते
नहीं मिलता था पूरा खाना
देता मदारी थोड़ा सा दाना
तंग थे दोनों ही मलिक से
भागना चाहते थे वे वहाँ से
इक दिन उनको मिल गया मौका
और मलिक को दे दिया धोखा
इक दिन जब वो सो ही रहा था
सपनों में बस खो ही गया था
रामू-शामू को वह भूला
छोड़ दिया था उनको खुला
भागे दोनों मौका पाकर
छिपे वो इक जंगल में जाकर
पर दोनों ही बहुत थे भूखे
वहाँ पे थे बस पत्ते सूखे
निकल पड़े वो खाना लाने
कुछ फल, रोटी या मखाने
मिली थी उनको एक ही रोटी
हो गई दोनों की नियत खोटी
रामू बोला मैं खाऊँगा
शामू बोला मैं खाऊँगा
तू-तू, मैं-मैं करते-करते
बिल्ली ने उन्हें देखा झगड़ते
चुपके से वह बिल्ली आई
आँख बचा के रोटी उठाई
रोटी उसने मज़े से खाई
और वहाँ से ली विदाई
देख रहा था सब कुछ तोता
जो था इक टहनी पर बैठा
तोते ने दोनों को बुलाया
और बिल्ली का किस्सा सुनाया
फिर दोनों को सोझी आई
जब रोटी वहाँ से गायब पाई
इक दूजे को दोषी कहने
लगे वो फिर आपस में झगड़ने
बस करो अब तोता बोला
और उसने अपना मुँह खोला
जो तुम दोनों प्यार से रहते
रोटी आधी-आधी करते
आधा-आधा पेट तो भरते
यूँ न तुम भूखे ही रहते
छोड़ो अब यह लड़ना-झगड़ना
सीखो दोनों प्यार से रहना
जो भी मिले बाँट कर खाना
दोषी किसी को नही बनाना
अब तो उनकी समझ में आई
झगड़े में रोटी भी गँवाई
अब न लड़ेंगे कभी भी दोनों
रहेंगे साथ-साथ में दोनों

---सीमा सचदेव


Tuesday, April 29, 2008

चिड़िया का संदेश


फुर फुर करती आये चिड़िया
बैठ मुँडेर पे गाये चिड़िया

रोज सवेरे मुझे जगाती
चीं चीं करके गाना गाती
आँखें मलती मैं उठ जाती

भात कटोरी जब मैं लाती
फुदक फुदक कर नीचे आती
चहक चहक कर खेल दिखाती
सुबह मेरी मधुमय हो जाती

गाना गाकर प्यार लुटाती
उठो सवेरा सीख सिखाती
खुले गगन की सैर वो करती

यही संदेशा देकर जाती
प्रकृति की दौलत तुम्हारे लिये है
सुरभित पवन ये तुम्हारे लिये है

खुली हवा में सैर को जाओ
नहीं नींद में समय बिताओ
सबल स्वास्थ्य के धनी बन जाओ

सुषमा गर्ग
29.4.08


Friday, April 25, 2008

हिम्मत

विपदाएं हों कितनी ही
हिम्मत कभी न हारो तुम,
जीवन से गर हार गए हो
हार को बदलो जीत में तुम ।

खो गया विश्वास तुम्हारा
दिखता तुमको बस अंधियारा,
पास नही है कोई सहारा
फिर भी सच पर चलना यारा ।

आरोप लगें तुम पर झूठे
नफरत के बीज भी रोपें,
चलना अडिग तुम अपनी राह
भले पीठ पर छुरे घोपें ।

करे न कोई तुम पर विश्वास
छोड़ न देना अपनी आस,
जीत दिलाएगा तुमको
इक दिन तुम्हारा सतत प्रयास ।


कवि कुलवंत सिंह


Thursday, April 24, 2008

आओ सीखें अपनी भाषा... ( दूसरा पाठ )

बच्चो पिछ्ली बार आप और हम मिले थे हिन्दी वर्ण माला के कुछ प्यारे प्यारे
अक्षरों से याद है ना ( क ख ग घ और ङ )
चलिये आज कुछ और नये अक्षरों से दोस्ती करते है क्यूकि इनकी दोस्ती सारी उम्र
काम आती है तो आज मिलते हैं कुछ और अक्षरों से :-



'च' से चरखा सूत बनाता
कर्मठता का पाठ पढ़ाता
देखो अम्मा कात रही है
इसका मतलव बात सही है



'छ' से छतरी धूप बचाती
बारिश में भी काम ये आती
रंग बिरंगा मेरा छाता
सब बच्चों के मन को भाता



'ज' से जहाज पर हुए सवार
जाते हैं सब सागर पार
किसने इसे बनाया होगा
सागर में तैराया होगा



'झ' से झण्डा प्यारा प्यारा
आसमान में सबसे न्यारा
भारत माँ की शान तिरंगा
है अपनी पहचान तिरंगा


'ञ' खाली पर थोड़ा रुककर
सोचो आगे कौन से अक्षर





'ट' से टमाटर कितना लाल
सब्जी में दो इसको डाल
सब्जी लगती कितनी स्वाद
ट से टमाटर हो गया याद



'ठ' से ठठेरा बर्तन लाया
'बर्तन ले लो' वो चिल्लाया
माँ ने फिर आवाज लगाई
दिखलाओ एक बड़ी कढ़ाई



'ड' से डमरू डम-डम डम-डम
खेल देखने जायेंगे हम
नाँचे बंदरिया बंदर गाये
माँग माँग कर पैसे लाये




'ढ' ढ से ढफली ढ से ढक्कन
दूध दही पानी या मक्खन
ढककर रखना है हितकारी
दूर रहे इससे बीमारी

'ण' खाली पर आओ मिलकर
फिर दोहरायें प्यारे अक्षर


- तो कैसी रहीं मुलाकात इन प्यारे प्यारे अक्षरों से.
फिर मिलेंगे अगली बार कुछ और नये अक्षरों के साथ.

-राघव


Tuesday, April 22, 2008

मैं ढूँढूं तुमको रघुराई


दादी ने कथा सुनाई
रामायण की बात बताई
राम राज में सब सुख पावे
दुख दारिद्र का नाम न आये
आज सब उलट हो रहा भाई
मैं ढूँढूं तुमको रघुराई

प्रभु आ जाओ एक बार धरा पे
कुछ चमत्कार दिखलाओ
भटकी जगती को राह दिखाओ
फिर से मर्यादा का स्त्रोत बहाओ
हर ओर पाप की भरमाई
मैं ढूँढूं तुमको रघुराई

हाहाकार मचा दुनिया में
भाई भाई को मार रहा
धन दौलत के लालच में
इंसान खून को बहा रहा
नहीं देती राह सुझाई
मैं ढूँढूं तुमको रघुराई

हैलो हाय गुड़ मौर्निंग ने
निज संस्कृति पर डाका डाला
परदेसी खान पान पहनावे ने
चलन देश का बदल डाला
हाय डैड, मौम देते आज सुनाई
मैं ढूँढूं तुमको रघुराई

छाया चहुँ ओर अंधेरा है
बढ़ता दुराचार का घेरा है
कहने को तो प्रगति है
पर नहीं शांति दिखती है
थक तुझसे आस लगाई
मैं ढूँढूं तुमको रघुराई

क्या दिन ऐसा भी आयेगा
जब राम राज आ जाऐगा
क्योँ रूठे दशरथ नँदन हो
हम बच्चों की क्या गलती है
क्यों आने में देर लगाई
मैं ढूँढूं तुमको रघुराई

- सुषमा गर्ग

22.4.08


विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष

बच्चो,

क्या आप जानते हैं कि हम जिस ग्रह के वासी हैं, उसके सम्मान में हर साल की २२ अप्रैल की तारीख को विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है? आपको आपकी माँ, आपके पापा ने ज़रूर बताया होगा कि हमारी धरती की संदरता पेड़ों, नदियों, तालाबों से हैं। शुद्ध जल, शुद्ध वायु आदि हमारे जीने के लिए बहुत आवश्यक हैं। आज इसी अवसर पर सीमा सचदेव आंटी आप सबके के लिए दो कविताएँ लेकर आई हैं।

आइए उनकी बातें ध्यान से पढ़ते हैं। यदि हमने उनकी बातों को मान लिया तो यह पृथ्वी हमेशा खूबसूरत बनी रहेगी।


धरती माता ( कविता)

धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो

बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो

आओ हम सब मिलजुल कर,
इस धरती को ही स्वर्ग बना दें

देकर सुंदर रूप धरा को,
कुरूपता को दूर भगा दें

नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर,
नैतिकता से काम करें

गंदगी फैला भूमि पर
माँ को न बदनाम करें

माँ तो है हम सब की रक्षक
हम इसके क्यों बन रहे भक्षक

जन्म भूमि है पावन भूमि,
बन जाएँ इसके संरक्षक

कुदरत ने जो दिया धरा को
उसका सब सम्मान करो

न छेड़ो इन उपहारों को,
न कोई बुराई का काम करो

धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो

बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो


अपील:- विश्व धरा दिवस के अवसर पर आओ हम सब धरा को सुन्दर बनाने में सहयोग दें हमारी धरती की सुन्दरता को बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है....... सीमा सचदेव

*********************************

पर्यावरण बचाओ अभियान (कथा-काव्य)

पक्षियों ने इक सभा बुलाई
सबने अपनी बात बताई

सुन रहा था बूढ़ा तोता
जो ऊँची डाली पर बैठा

सबकी समस्या लाया कौआ
हम सब है मुश्किल में भैया

न तो मिलता हमें स्वच्छ जल
और दिखते हैं बहुत कम जंगल

न तो हमें मिलते मीठे फल
न ही शुद्ध वायु की हलचल

न दिखती है शीतल छाया
जाने कैसा समय है आया

दूर देश उड़ कर जाते हैं
तब जाकर भोजन पाते हैं

थोड़ा चोच में भर लाते हैं
उड़ते-उड़ते थक जाते हैं

मानव काटता है सब पेड़
करता प्रकृति से छेड़

वायु भी अब दूषित हो गई
गन्दगी सुन्दर धरा पे भर गई

किया न गर अब इस पे विचार
तो न जिएँगे दिन भी चार

फैला है हर जगह प्रदूषण
हो गया मैला स्वच्छ वातावरण

लुप्त हो रही पक्षी जाति
नहीं है कोई इन सबका साथी
......................................

सुन कर यह सब तोता बोला
धीरे से अपना मुँह खोला

यह सब समस्याएँ गम्भीर
पर रखो तुम थोड़ा धीर

क्यों न हम मिलकर सुलझाएँ
हम अपने कुछ नियम बनाएँ

उन नियमों का पालन करेंगे
हरा-भरा वसुधा को करेंगे

हम सब जो भी फल चखेंगे
उसके बीज नहीं फैकेंगे

रखेंगे उनको सड़को किनारे
सोचो जरा सारे के सारे

हम सब मिलकर करेंग यह सब
कितने पौधे फूटेंगे तब

देंगे हम ऐसे सहयोग
होंगे सुखी सारे ही लोग

हरी-भरी वसुधा फिर होगी
जिससे वायु भी शुद्ध होगी

मिलेंगे फिर हमको मीठे फल
बादल बरसाएगा स्वच्छ जल

नहीं रहेगा फिर प्रदूषण
शुद्ध होगा सारा वातावरण

चलो आज से ही अपनाएँ
हम सब सुन्दर वृक्ष लगाएँ

इसको जीवन में अपनाएँ
हरा-भरा वसुधा को बनाएँ
............................................

बच्चो तुम भी समझो बात
कुदरत की उत्तम सौगात

वृक्ष लगाओ सारे मिलकर
गन्दगी न फैलाओ धरा पर

आओ धरा को सुन्दर बनाएँ
हम सब इक-इक वृक्ष लगाएँ
**********************************

अपील:- प्रकृति अनमोल है। धरा की सुन्दरता, पर्यावरण को सम्हालना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है शुद्ध वातावरण में जीने का हम सब का अधिकार है इस को स्वच्छ बनाने में सहयोग दें...... सीमा सचदेव


दीदी की पाती ..''जादू की दुनिया"'.



दीदी की पाती ..

जादू देखना और उसके बारे में पढ़ना सुनना किसे अच्छा नही लगता ..मुझे तो बहुत अच्छा लगता है .कितनी मजेदार लगती है न "'जादू की दुनिया"'... पलक झपकते ही मजेदार जादू दिखाता है जादूगर .आज आपको इसी जादू से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताती हूँ ..

क्या आप जानते हैं कि मेजिक जादू शब्द की उत्पति "मेजी" शब्द से हुई है जिसका मतलब होता है "चतुर वयक्ति" .ईसा के जन्म के पश्चात उनसे मिलने वाला पहला व्यक्ति "मेजी" ही था ..

मेजिक जादू की दुनिया में सबसे अधिक प्रचलित नाम "मेंड्रेक "है .यह एक पौधे का नाम है लोगों का विश्वास है कि इस पौधे कि जड़ में जादुई शक्तियाँ थी !

प्रिन्स चार्ल्स एक जादूगर भी हैं वह लंदन की मैजिक सर्कल नामक संस्था के सक्रिय सदस्य भी हैं

ताश के खेल रोचक तो लगते ही हैं जादू में भी इसका भरपूर प्रयोग किया जाता है इसका आविष्कार जानते हो किसने किया था चीन की कुछ महिलाओं ने बोरियत से बचने के लिए ९६९ इस्वी में किया था और एक साधरण ताश की गड्डी से दस हज़ार से भी अधिक प्रकार की ट्रिक्स दिखायी जा सकतीं है !!

विवेकानन्द जी का नाम तो आपने सुना होगा वह एक महान दार्शनिक और उपदेशक थे उन्होंने जादू की कई पुस्तकों का अध्यन किया था और कई बार वह छोटी मोटी ट्रिक्स भी दिखाते रहते थे

स्वर्गीय पी .सी. सरकार भारत के प्रथम जादूगर थे जिन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया था

ऐब्ररा का डेबरा.सिर्फ़ एक ग्रीक मिथक शब्द है इसका प्रयोग सिर्फ़ जादू के दौरान ध्यान बांटने के लिए किया जाता है !!

सो यह तो थी जादू की दुनिया की कुछ मजेदार बातें ..कुछ जादू मैंने भी सीखे हैं आप सबको दिखाने के लिए ..क्या आप भी वह सीखना चाहते हैं .??.तो मुझे जल्दी से पत्र लिखिए ..मैं फ़िर हाज़िर हो जाऊँगी जादू के कुछ मजेदार खेल ले कर .
अभी के लिए ऐब्ररा का डेबरा...:):)


आपकी की दीदी

रंजू


Monday, April 21, 2008

कौआ और कबूतर


एक कबूतर एक था कौआ
रहते थे उपवन में भैया
पास-पास थे दोनों के घर
बातें करते दोनों अकसर
दोनों ही की अलग थी जाति
पर सुख-दुख के अच्छे साथी
कबूतर बड़ा ही सुस्त था भैया
बैठा रहता पेड़ की छैया
पर उतना ही चतुर था कौआ
न देखे वह धूप न छैया
कौआ सुबह-सुबह ही जाता
जो भी मिलता घर ले आता
दोनों मिलकर खाना खाते
गाना गाते और सो जाते
कभी-कभी कहता था कौआ
तुम भी चलो साथ मेरे भैया
बड़ा आलसी था वो कबूतर
बोलता मैं बैठूँगा घर पर
एक बार गर्मी का मौसम
सूख गया था सारा उपवन
ख़त्म हो गया पानी वहाँ पर
रहते थे वे दोनों जहाँ पर
गला सूखता था हर पल ही
पर कबूतर तो था आलसी
प्यास से वह बेहाल हो गया
और देखते ही निढाल हो गया
कौए ने जब देखा उसको
नहीं रहा था होश भी उसको
उड़ गया कौआ पानी लाने
लग गया उसकी जान बचाने
दूर गाँव वह उड़ कर आया
चोंच में भर कर पानी लाया
पानी जो कबूतर को पिलाया
तो वह थोड़ा होश में आया
कौए की मेहनत रंग लाई
और कबूतर को सोझी आई
वह भी अगर आलस न करता
तो इतनी तकलीफ़ न जरता
आज अगर कौआ न होता
तो वह बस प्यासा ही मरता
ठान लिया अब तो कबूतर ने
नहीं बैठेगा वो भी घर में
वह भी कौए संग जाएगा
अपना खाना खुद लाएगा
अब वो दोनों मिलकर जाते
जो भी मिलता घर ले आते
दोनों ही मिलजुल कर खाते
गाना गाते और सो जाते
...............................................
बच्चो तुमने सुनी कहानी
तुम न करना यह नादानी
कभी भी तुम न करना आलस
बढ़ते रहना आगे हरदम

*******सीमा सचदेव*******


Sunday, April 20, 2008

बजरंग बली हनुमान

बच्चो, १८ अप्रैल को महावीर स्वामी का जन्मदिवस था, जिनकी शिक्षाओं को कविता रूप में सीमा सचदेव आंटी लेकर आई थीं, आज भगवान हनुमान का बर्थडे है, आज उनके जीवन-चरित्र पर कविता बनाकर पुनः हाज़िर हैं, हम सभी की प्रिय सीमा आंटी।

बजरंग बली हनुमान

बच्चो आज मन्दिर में जाएँ
हनुमान जी की बाते बताएँ
श्रद्धा से अपने सर को झुकाएँ
जीवन अपना सफल बनाएँ
.......................................
चैत्र मास की आई पूनम
हुआ श्री हनुमान का जन्म
महाबलि श्री केसरी-नंदन
अंजनिसुत श्री मारुतिनंदन
जाने उनके कितने ही नाम
पर उनका प्रभु एक ही राम
राम-नाम ही उनका जीवन
कर दिया खुद को राम के अर्पण
..........................................
जब सीता को ले गया रावण
तो रोया हनुमान का यूँ मन
कूद के पहुँच गए थे लंका
बजाया राम-नाम का डंका
सोने की लंका को जलाया
सीता को सन्देश सुनाया
...................................
जब करना था सागर पार
वानर सेना थी अपार
सोच रहे थे राम औ लक्ष्मण
सिन्धु पार जाएँ कैसे हम ?
तब पत्थरों पर लिख कर राम
कर दिया एक सेतु निर्माण
सारे सिन्धु को कर गए पार
पहुँच गए लंका के द्वार
.....................................
मूर्च्छित जब हो गए थे लक्ष्मण
तब हनु लेने गए सञ्जीवन
कौन सी बूटी पता न चला
तब पूरा पर्वत उठा लिया
आ कर लखन को दी सञ्जीवन
मिल गया फिर उनको नव-जीवन
.....................................
अजब हनुमान का बुद्धि बल
पर उनका मन हरदम निर्मल
वो तो है शिव का अवतार
राम-नाम जीवन का सार
सबके लिए ही संकट मोचन
तरसे उनको राम के लोचन
........................................
बच्चो तुम भी रखना ध्यान
संकट मोचन श्री हनुमान
हर लेते है सारे ही दुख
उनसे मिलता है परम सुख

श्री हनुमान जयन्ती की आप सबको हार्दिक बधाई एवम् शुभ-कामनाएँ..... सीमा सचदेव


Saturday, April 19, 2008

महावीर स्वामी की शिक्षाएँ

बच्चो,

कल महावीर स्वामी का जन्मदिवस था। बाल-उद्यान पर समय-समय पर सुंदर-सुंदर कविताएँ प्रकाशित करने वाली हम सबकी प्रिय सीमा सचदेव इस बार महावीर स्वामी की शिक्षाओं को कविता रूप में लेकर आई हैं। महावीर स्वामी के बारे में तुम्हें तुम्हारे माता-पिता, गुरूजनों ने अवश्य बताया होगा, उनके द्वारा दी गई शिक्षा भी तुम्हें ज़रूर बतायी होगी। मगर सीमा आंटी की कविता पढ़कर तुम्हें वो शिक्षाएँ याद हो जायेंगी, जिसे तुम अपने दोस्तों को भी सुना पाओगे।

सीमा सचदेव जी ने यह कविता कल ही भेज दी थी लेकिन कुछ तकनीकी कारणों के कारण हम नहीं प्रकाशित कर सके।

महावीर स्वामी की शिक्षाएँ


आओ बच्चो मिलकर आओ
आज तुम्हें कुछ बातें बताऊँ
महावीर के जन्मदिवस पर
उनके कुछ उपदेश सुनाऊँ
...................................
कभी किसी से झूठ न बोलो
सच्च के लिए अपना मुँह खोलो
जब भी कभी बोलना चाहो
तो पहले शब्दों को तोलो
रखो सदा ही सच्च को साथ
चाहे दिन हो चाहे रात
किसी की कभी न करो बुराई
मीठी वाणी मे सबकी भलाई
....................................
कभी कोई गलती कर जाओ
तो माफी से मुक्ति पाओ
माफी माँगना या फिर करना
नहीं कभी कोई इससे डरना
रखो सबसे मैत्री भाव
छोड़ो सबपे यह प्रभाव
क्षमा से बडा न कोई उपहार
होते इससे उच्च विचार
.....................................
कभी न हिंसा किसी पे करना
सबसे ही मिलजुल कर रहना
सबमें एक ही जैसी जान
नहीं करना किसी का अपमान
छोड़ो सारे वैर-विरोध
कभी न मन में लाना क्रोध
.....................................
बच्चो यह सब बातें समझना
अच्छाई के मार्ग पर चलना
महावीर के शुभ वचनों का
जीवन में सब पालन करना



महावीर स्वामी के जन्मदिवस के पावन अवसर पर हिन्द-युग्म परिवार तथा सभी पाठकों को हार्दिक शुभ-कामनाएँ..... सीमा सचदेव


Friday, April 18, 2008

फल

सेब संतरा और मौसंबी
खाए हमने खूब
अब मौसम है आमों का
खरबूजे और तरबूज

रस रसीली लीची भी
आएगी भरपूर
छुट्टी में अब होगी मस्ती
पढ़ना कोसों दूर

लुकाट चीकू रसभरी
आते नही पसंद
लेकिन पापा घुरे जब
चुपके से निगले हम

अगूर चेरी स्ट्राबेरी
मुह से टपके लार
इनको जब भी खाए हम
बनते सबके यार

कवि कुलवत सिह


Thursday, April 17, 2008

आओ सीखें अपनी भाषा...

प्यारे बच्चो कैसे हो ?
अब तो स्कूल खुल गये हैं ना, तो खूब जमकर पढ़ाई हो रही है ना...वेरी गुड

चलिये दोस्ती करते है हिन्दी वर्ण-माला के फूलों से, कहने का मतलव हिन्दी के प्यारे प्यारे अक्षरों से..



'क' से कबूतर गुटर-गुटर गूँ
सबसे पहले मैं जागा हूँ
जागो भैया, जागो बहना
स्कूल भी तो जाना है ना



'ख' से खरगोश कितना भोला
देखो लगता ऊन का गोला
नर्म मुलायम इसके बाल
भरे कबड्डी करे कमाल



'ग' से गमला फूलो वाला
सुबह-सुबह जब पानी डाला
फूलो पर छा गयी मुस्कान
इनमें भी होती है जान



'घ' से घड़ी कहती है टिक-टिक
बड़े बनो सब पढ़-पढ़ लिख-लिख
करो समय से सारा काम
मेरी तरह चलो अविराम

'ङ' खाली पर थोड़ा रुककर
सोचो आगे कौन से अक्षर

- तो कैसी रही इतने प्यारे प्यारे अक्षरों से दोस्ती....
और भी बहुत सारे अक्षर हैं
फिर मिलेंगे कुछ अक्षरों से अगली बार
तब तक के लिये सबको ढेर सारा प्यार

-राघव


Wednesday, April 16, 2008

भोला बचपन.. आओ खेलें खेल






- सीमा कुमार


Tuesday, April 15, 2008

दीदी की पाती सुनो कहानी

यह सब्जी तो बहुत अच्छी नही है मैं खाना नही खाऊँगी ...अलका ने अपनी खाने की प्लेट सरकाते हुए माँ से कहा

"ठीक है मत खाओ "मैं शाम को इसको दूसरे तरीके से बनाऊँगी माँ ने मुस्कराते हुए कहा

दोपहर को दोनों माँ बेटी अपने बगीचे में गई ..माँ ने आलू खोद खोद कर जमीन से निकालने शुरू किए ..अलका उसको टोकरी में रखती गई यही सब करते करते शाम हो गई शाम को दोनों घर वापस आए.. अलका दिन भर अपनी माँ के साथ आलू रखने के काम में मदद करती रही थी सो वह बहुत थक गई थी उसको भूख भी बहुत जोर से लगी थी .माँ ने जैसे ही खाना दिया वह खाने पर टूट पड़ी और माँ से कहा कि सब्जी बहुत अच्छी बनी है

सुन के माँ हंस पड़ी और बोली की सब्जी तो वही सुबह वाली है पर तुम्हे इस लिए अच्छी लग रही है क्यूंकि अब तुम ने बहुत मेहनत की हुई है और तुम बहुत थकी हुई हो जब मेहनत करने के बाद खाना खाया जाता है तो वह बहुत अच्छा लगता है सब्जी तो सब अच्छी होती है सही कहा गया है कि हर चीज की कीमत सही वक्त पर होती है !!


Sunday, April 13, 2008

वैसाखी का मेला


वैसाखी का लगा है मेला
खुश सारे क्या गुरु क्या चेला
आओ सुनाऊँ पुरानी बात
वैसाखी का है इतिहास
सिख धर्म के दश गुरु थे
दशम गुरु श्री गोबिन्द सिंह थे
होता लोगों पे अत्याचार
आया उनको एक विचार
क्यो न ऐसा पंथ बनाएँ
और लोगो की रूह जगाएँ
जिससे समझे खुद को लोग
मिटाएँ अत्याचार का रोग
उसमें सबको शिक्षा देंगे
मानवता के लिए लड़ेंगे
ऐसा पंथ उन्होंने साजा
जिसमें ना परजा ना राजा
होंगे सारे गुरु के शिष्य
सँवारेगे देश का भविष्य
शिष्य चुने उन्होने पाँच
की पहले उन सबकी जाँच
क्या वो देश पे मर सकते है ?
सच्च के लिए क्या लड़ सकते है?
कराया सबको अमृतपान
कड़ा,केस,कञ्घा,किरपान
देकर उनको सिख नवाजा
ऐसे खालसा पंथ था साजा
वैसाखी का दिन था पावन
सन था सोलह सौ निन्यावन
सिख धर्म का यह उपहार
तब से ही मनता त्योहार
.................
.................
एक बात मैं और बताऊँ
एक और इतिहास सुनाऊँ
जब था अपना देश गुलाम
अंग्रेजों का था बस नाम
भारत माँ को बनाया दासी
दुखी थे इससे भारतवासी
किसी तरह भारत को बचाएँ
अंग्रेज़ों को दूर भगाएँ
सन था तब उन्नीस सौ उन्नीस
था वैसाखी का पावन दिन
लोगो ने मिलकर सभा बुलाई
होगी अंग्रेज़ों की विदाई
जगह थी जलियाँ वाला बाग
अमृतसर में है भी आज
अंग्रेजों को पता चला जब
हुए लाल-पीले सुन के तब
नहीं सभा वो होने देंगे
न ही भारत को छोड़ेंगे
आ गया वहाँ पे जनरल डायर
अचनचेत ही कर दिए फायर
लोगो की थी भीड़ अपार
जनरल खड़ा बाग के द्वार
सारा मार्ग बन्द कर दिया
और लाशों से बाग भर दिया
सैकड़ों लोग वहीं पर मर गए
बाकी सबको जागरूक कर गए
व्यर्थ न हुआ उनका खून
लोगों में भर गया जुनून
सबके खून का बदला लेंगे
अंग्रेजो को नहीं सहेंगे
सबने मिलकर लड़ी लड़ाई
अंग्रेज़ों से मुक्ति पाई
हो गया अपना देश आजाद
गए अंग्रेज़ देश से भाग
.................
..................
लगते हैं मेले हर साल
हो किसान जब मालामाल
फसलें जब सारी पक जाती
कट कर जब घर पर आ जाती
भर जाते हैं किसानों के घर
तब उनको नहीं होता कोई डर
वर्षा आए या तूफान
उनपे मेहरबान भगवान
सारे साल का मिल गया खाना
फिर क्यों न त्योहार मनाना
मिल कर सारे नाचे गाएँ
आओ हम वैसाखी मनाएँ
उन शहीदों को भी रखे याद
और ईश्वर से करे फरियाद
खुशियों के लगते रहे मेले
और सारे दुखों को हर ले

कवयित्री- सीमा सचदेव


Friday, April 11, 2008

सृष्टि

सूरज दहके
चंदा चमके
ज्योति दमके
दीपक बन के ।

लोक है प्यारा
शीतल धारा
गगन है न्यारा
दूर सितारा ।

ठंडी आये
स्वेटर लाये
नहीं नहायें
मस्ती छाये ।

गर्मी सताए
खूब रुलाए
खेल न पाएँ
कैद हो जाएँ ।

बादल छाये
बारिस आये
रिमझिम गाये
गर्मी जाये ।

सावन महका
मौसम बहका
गुलशन महका
जीवन चहका ।

निंदिया भाये
सपने लाये
परियां आयें
कथा सुनाएँ ।

कवि कुलवंत सिंह


Tuesday, April 8, 2008

दीदी की पाती ..अवसर

दीदी की पाती ..अवसर

परीक्षा समाप्त हो गई थी और बच्चे अब मस्ती के और खेलने के मूड में थे ....सब बच्चो को छुट्टी और मस्ती के मूड में देख कर पड़ोस के शर्मा जी ने एक मजेदार पिकनिक का आयोजन करने की सोची जिसमें घूमना और खेलना तो था ही साथ में बच्चो की रूचि के अनुसार कई प्रतियोगिता भी रखी गई थी चूँकि शर्मा जी एक टी वी चेनल में काम करते थे और चाहते थे कि इसी तरह बच्चो की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने का मौका दिया जा सकता है ..सो उन्होंने पूरे ब्लाक में यह सूचना दे दी .कि जो इस में भाग लेना चाहते हैं अपना अपना नाम लिखवा दे और निश्चित समय पर पहुँच जाए ....क्यूंकि इस में भाग लेने वाले बच्चो की संख्या निश्चित थी इसलिए पहले आओ और पहले अवसर पाओ के आधार पर बच्चे चुने जाने थे .सब बच्चे बहुत खुश थे वहाँ रहने वाला पिंटू भी बहुत खुश था .जब उसने यह सुना तो बहुत खुश हुआ उसको डांस करने का भी बहुत शौक था ..पर उस में सिर्फ़ एक ही खराबी थी कि वह हर काम को कर लूँगा अभी बहुत समय है कह कर टाल देता और कई बार वह ऐसे सुनहरे अवसर को खो देता ...इस बार भी यही हुआ ..कर लूँगा के वाले स्वभाव के कारण उसने अपना नाम नही लिखवाया और यह सुनहरा अवसर खो दिया ...

कई बार ऐसा होता है की हमारे जीवन में कुछ कर गुजरने के मौके आते हैं पर हम अपनी उलझन में कभी उसको पहचान नही पाते और कभी करे या न करे के फेर में या अभी कर लेंगे के चक्कर में उसको गंवा देते हैं ...चलो आज इस से जुड़ी तुम्हे एक कहानी सुनाती हूँ ..

एक चित्रकार ने अपने चित्रों की प्रद्शनी लगाई उन चित्रों में एक चित्र ऐसा भी था ,जिसका चेहरा बालों से ढका हुआ था और पैरों में पंख लगे थे !

बहुत से कलाप्रेमी .पत्रकार .आलोचक उस प्रद्शनी को देखने आए दूसरे चित्रों को देख कर सबने "'वाह वाह ''की पर उस चित्र का अर्थ किसी को समझ नही आया

चित्रकार से लोगों ने पूछा -क्यों भाई... यह चित्र किसका है ?"

यह अवसर का चित्र है !"चित्रकार बोला

तो तुमने इसका चेहरा क्यों ढक दिया है ?"

इसलिए कि यह लोगों के सामने आता है तो लोग इसको पहचान नही पाते !"चित्रकार ने कहा !

और यह पंख किस लिए ?

इसलिए कि अवसर बड़ी तेजी से चला जाता है और एक बार गया तो फ़िर किसी के हाथ नही आता !""

सो अवसर को पहचानो और जब भी कुछ कर दिखाने का मौका मिले तो चुको मत !!

और एक महान कलाकार वही होता है जो सत्य को सरल कर देता है !!


अच्छी कहानी थी न ..तो कभी हाथ आए अवसर को यूं व्यर्थ न जाने दो ..ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही अच्छा होता है .और कैसी लगी यह कहानी यह बताना भी नही भूलना :) फ़िर मिलूंगी आपसे अगली पाती में ..अपना ध्यान रखे

बहुत सारे प्यार के साथ

आपकी दीदी रंजू


Monday, April 7, 2008

मेरा डागी


मेरा डागी, मेरा डागी,

सबसे प्यारा मेरा डागी,

रोज नये वो खेल खिलाता,

सबसे न्यारा मेरा डागी,

सुबह-सुबह वो उठ कर आता,

प्यार से मेरा मुँह सहलाता,

सपनों से मुझको है जगाता,

इतना मुझको प्यार दिखाता,

जोर-जोर से पूँछ हिलाता,

माना, बोल नहीं वो पाता,

फिर भी सब कुछ है समझाता,

इधर कूदना, उधर कूदना,

सारा दिन है मन बहलाता,

न कोई झगड़ा, न कोई लफड़ा,

रूठूँ तो मुझको है मनाता,

चोट ज़रा सी लग जाती तो,

प्यार से उसको है सहलाता,

कितना सुंदर मेरा डागी,

हरदम मुझको प्यार जताता,

निश्छल, सीधा मेरा डागी,

हम सबको है प्यार सिखाता !



रचनाकार- डॉ॰ अनिल चड्डा


Friday, April 4, 2008

जय हो ! भारत माँ की जय हो !

मुकुट शीश उन्नत शिखर
पदतल गहरा विस्तृत सागर
शोभित करती सरिताएं हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

सत्य, अहिंसा, त्याग भावना
सर्वमंगल कल्याण प्रार्थना
जन - जन हृदय महक रहा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

पुरा संस्कृति उत्थान यहीं पर
धर्म अनेक उद्गम यहीं पर
पर उपकार सार निहित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

विद्वानो, वीरों की पुण्य धरा
बलिदानों से इतिहास भरा
तिलक रक्त मस्तक धरा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

साहित्य, खगोल, आयुर्विज्ञान
योग, अध्यात्म, अद्वैत, ज्ञान
ज्ञानी, दृष्टा, ऋषि, गुणी हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

राष्ट्र उत्थान भाव निहित हो
धर्म दया से अनुप्राणित हो
जग में भारत विस्तारित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, April 3, 2008

जाकिर अली 'रजनीश' को अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार

आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि जाकिर अली रजनीश के बाल कहानी संग्रह "ऐतिहासिक बाल कथाएं" पर अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार प्रदान किया गया। यह सम्मान दिनांक 16 मार्च को भोपाल में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रख्यात साहित्यकार श्री विष्णु नागर की उपस्थिति में प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप श्री रजनीश को प्रशस्ति पत्र एवं रजत पदक प्रदान किया गया।


Wednesday, April 2, 2008

मेरी गुड़िया

Meri Gudiya
मेरी गुड़िया प्यारी-प्यारी
बातें उसकी न्यारी-न्यारी
नन्ही सी यह फूल सी बच्ची
छोटी सी पर दिल की सच्ची

कोमल-कोमल हाथों वाली
नीली-नीली आँखों वाली
गोरे-गोरे गाल हैं उसके
भूरे-भूरे बाल हैं उसके

नन्हे पैरों से जब चलती
गिर जाए तो ख़ुद ही संभलती
जाय वहीं मम्मी जहाँ जाय
ख़ाय वही मम्मी जो खिलाय

पापा की है राज दुलारी
मम्मी की है दुनिया सारी
पापा जब आफ़िस से आएँ
झट उनकी गोदि चढ़ जाए

परियों की सी मेरी रानी
बातों में तो सब की नानी
बोले जब वह तूतली बोली
भर जाए खुशियों से झोली

मम्मी पापा की जिंद-जान
करेगी जग में ऊँचा नाम
मीठी-मीठी शहद की पुड़िया
कितनी प्यारी है मेरी गुड़िया

-सीमा सचदेव


Tuesday, April 1, 2008

मूर्ख दिवस

मूर्ख दिवस बहुत दिन हुए एथेंस नगर में चार मित्र रहते थे.. इनमें से एक अपने को बहुत बुद्धिमान समझता था और दूसरों को नीचा दिखाने में उसको बहुत मज़ा आता था एक बार तीनों मित्रों ने मिल कर एक चाल सोची और उस से कहा कि कल रात हमे एक अनोखा सपना दिखायी दिया सपने में हमने देखा की एक देवी हमारे समाने खड़ी हो कर कह रही है कि कल रात पहाडी की चोटी पर एक दिव्य ज्योति प्रकट होगी और मनचाहा वरदान देगी इसलिए तुम अपने सभी मित्रों के साथ वहाँ जरुर आना अपने को बुद्धिमान समझने वाले उस मित्र ने उनकी बात पा विश्वास कर लिए और निश्चित समय पर पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया साथ ही कुछ और लोग भी उसके साथ यह तमाशा देखने के लिए पहुँच गए . और जिन्होंने यह बात बताई थी वह छिप कर सब तमाशा देख रहे थे .धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी और रात भी आकाश में चाँद तारे चमकने लगे पर उस दिव्य ज्योति के कहीं दर्शन नही हुए और न ही उनका कहीं नामो निशान दिखा कहते हैं उस दिन १ अप्रेल था :)बस फ़िर तो एथेंस में हर वर्ष मूर्ख बनाने की प्रथा चल पड़ी बाद में धीरे धीरे दूसरे देशों ने भी इसको अपना लिया और अपने जानने वाले चिर -परिचितों को १ अप्रेल को मूर्ख बनाने लगे इस तरह मूर्ख दिवस का जन्म हुआ अप्रैल के मूर्ख दिवस को रोकने के लिए यूरोप के कई देश समय समय पर अनेक कोशिश हुई परन्तु लाख विरोध के बावजूद यह दिवस मनाया जाता रहा है अब तो इसने एक परम्परा का रूप ले लिया इस दिवस को मनाने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस को हम इसलिए मनाते हैं ताकि मूर्खता जो मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है वर्ष में एक बार सब आज़ाद हो कर हर तरह से इस दिवस को मनाये हम लोग एक बंद पीपे जैसे हैं जिस में बुद्धि निरंतर बहती रहती है उसको हवा लगने देनी चाहिए ताकि वह सहज गति से इसको चलने दे तो ठीक रहता है..
कहते हैं एक बार हास्य प्रेमी भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने बनारस में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक अमुक समय पर चाँद और सूरज को धरती पर उतार कर दिखायेंगे .नियत समय पर लोगों की भीड़ इस अद्भुत करिश्मे को देखने को जमा हो गई घंटो लोग इंतज़ार में बैठे रहे परन्तु वहाँ कोई वैज्ञानिक नही दिखायी दिया उस दिन १ अप्रैल था लोग मूर्ख बन के वापस आ गए !!