Friday, February 29, 2008

माँ तुझको शीश नवाता हूँ

माँ तुझको शीश नवाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ ।

तेरे चरणों की रज पाकर,
अभिभूत हुआ मै जाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ । माँ ...

आशीष वचन सुन तेरे मुंह से,
मै फूला नही समाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ । माँ ...

ममता तेरी जब भी पाता,
मैं राजकुँअर बन जाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ । माँ ...

गम मुझको हैं छू नही पाते,
आंचल जब तेरा पाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ । माँ ...

अवगुन मेरे ध्यान न लाये,
मै हर दिन माफी पाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ । माँ ...

मेरी दुनिया तू ही माँ है,
तुझमें ही सब कुछ पाता हूँ ।
माँ तुझको शीश नवाता हूँ । माँ ...

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, February 28, 2008

महलो की रानी


प्यारे बच्चों,
आज आपके लिये एक काव्य-कथा ले कर आयी हैं- बैंगलुरू (कर्नाटक) से सीमा सचदेव। आशा है कहानी आपको पसन्द आएगी। सीमा जी नें बहुत सी बाल-कहानियाँ व कवितायें लिखी हैं व जल्द ही अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवा रही हैं।
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एक कहानी बड़ी पुरानी
आज सुनो सब मेरी जुबानी
विशाल सिन्धु का पानी गहरा
टापू एक वहाँ पर ठहरा

छोटा सा टापू था प्यारा
कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा
स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर
मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर

धूप मे अपनी देह गर्माने
टापू पे बैठती इसी बहाने
उसपर इक जादू का महल था
जिसका किसी को नही पता था

चाँद की चाँदनी मे बाहरआता
और सुबह होते छुप जाता
उसको कोई भी देख न पाता
न ही किसी का उससे नाता

एक दिन इक भूली हुई मछली
रात को जादू की राह पे चल दी
सोचा रात वही पे बिताए
और सुबह होते घर जाये

देखा उसने अजब नज़ारा
चमक रहा था टापू सारा
सुंदर सा इक महल था उस पर
फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर

देख के उसको हुई हैरानी
पर मछली थी बडी सयानी
जाकर खडी हुई वह बाहर
पूछा ! बोलो कौन है अन्दर

क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो?
नज़र किसी को नही आते हो?
अन्दर से आई आवाज़
खोला उसने महल का राज

रानी के बिन सूना ये महल
इसलिए रक्षा करता है जल
ढक लेता इसे दिन के उजाले
क्योकि दुनिया के दिल काले
....................................
मछली रानी बडी सयानी
समझ गई वो सारी कहानी
चली गई वो महल के अन्दर
अब न रहेगा महल भी खँडहर
..........................................
मछली बन गई महल की रानी
अब न रक्षा करेगा पानी
महल को मिल गई उसकी रानी
खत्म हो गई मेरी कहानी
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सीमा सचदेव
७ए, ३र क्रॉस, रामान्जन्या ले आऊट,
माराथली , बन्गलोर-५६००३७
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बच्‍चो, जाकिर अली रजनीश की कहानी अपना अपना फर्ज भी पढ़ें, ये कहानी भी आपको पसंद आएगी।


Tuesday, February 26, 2008

रंग बिरंगी दुनिया दीदी की पाती

नमस्ते हैं सबको ,

क्या आप जानते हैं कि सेब या टमाटर लाल क्यों दिखते हैं ? घास का रंग हरा क्यों होता है?कभी सोचा आपने? यह सब होता है सूरज के प्रकाश के कारण सूर्य का प्रकाश सात रंगों का मिश्रण है इसके प्रकाश को प्रिज्म से अलग किया जा सकता है .किसी वस्तु का रंग इस बात पर निर्भर करता है कि उस वस्तु से सूर्य का कौन सा रंग परिवर्तित हो कर हमारी आंखों तक पहुँच रहा है !सेब या टमाटर का रंग इस लिए लाल दिखायी देता है क्यूंकि इनके द्वारा सूर्य के प्रकाश में से लाल रंग परवर्तित कर दिया जाता है और शेष रंग सोख लिए जाते हैं .इसी प्रकार घास हरे रंग को परवर्तित कर देती है और शेष रंग को सोख लेती है ..कोई वस्तु इस लिए सफ़ेद दिखायी देती है कि वह सभी रंगो को परवर्तित कर देती है और जब कोई वस्तु सूर्य के प्रकाश के सभी रंगो को अवशोषित कर लेती है तो उसका रंग काला दिखायी देता है

पत्तियों का रंग हरा क्लोरोफिल के कारण दिखायी देता है पर जब पत्तियां नई होती है तो इस में एन्थ्रोसाइनिन नामक रंगीन पद्रार्थ पाया जाता है जिसके कारण यह उस वक्त गुलाबी रंग की होती हैं.... कलोरोफिल की सरंचना ऐसी होती है की यह सूर्य के प्रकाश के सभी रंगो का अवशोषण कर लेता है केवल हरे रंग का अवशोषण नही होता है जिसके कारण पत्तियों का रंग हरा दिखायी देता है

और आकाश का नीला रंग नीला क्यों होता है ? जानते हैं क्या आप ? सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते हैं यह तो आप जान गए अब कौन कौन से रंग हैं यह..बेंगनी,जामुनी नीला .हरा ,पीला .संतरी और लाल ..जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से होते हुए धरती पर पड़ता है तो वायुमंडल मैं पाये जाने वाले धुल के कणों के कारण इन साथ रंगो का विकिरण हो जाता है इन में से बेंगनी, ,जामुनी और नीले रंग का विकिरण सबसे ज्यादा होता है और लाल रंग का सबसे कम .बेंगनी जामुनी और नीला यदि तीनो मिला दे तो नीला रंग ही सामने आएगा इस लिए आकाश का रंग नीला दिखायी देता है ..हाँ यदि धरती के चारों और वायुमंडल न होता तो आकाश का रंग काला दिखता यदि हम चांद से आकाश देखे तो वह हमे काला दिखायी देगा क्यूंकि चाँद पर वायुमंडल नही है ..

तो अब आपने जाना कि हमारी दुनिया रंग बिरंगी कैसे दिखती हैं ..

फ़िर मिलते हैं नई रोचक जानकारी के साथ , आप अपना ध्यान रखे और अपनी परीक्षा ध्यान से दे !!

आपकी दीदी रंजू


Monday, February 25, 2008

बसंत आया है

बसंत आया है

आया है फिर से बसंत राजा आया है
बहुत दिनों बाद फिर हिय हरषाया है
आया है फिर से बसंत राजा आया है
टेसू ने फूलों से पूरा मण्डप सजाया है
बासंती हवा ने सारा सौरभ फैलाया है
महुए की मादकता से आम बौराया है
वृक्षों ने पल्लव का तिलक लगाया है
भौंरों ने कलियों को चूमा-चटकाया है
कोयल ने कुहु-कुहु प्रेम-गीत गाया है
प्रकृति है गदगद यौवन भर आया है
नंदन है हर्षित जी, मन गुदगुदाया है
बहुत दिनों बाद फिर हिय हरषाया है
आया है फिर से बसंत राजा आया है
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डॉ. नंदन ,बचेली (बस्तर)
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Sunday, February 24, 2008

ज़ाकिर अली 'रजनीश' के विज्ञान शोधपत्र को प्रथम पुरस्कार

राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एन.सी.एस.टी.सी.), "विज्ञान तकनीक एण्ड डेवलेपमेन्ट इनीशियेटिव (स्टाड) तथा भारतीय विज्ञान लेखक संघ (इस्वा) द्वारा उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में 20-23 फरवरी को "रचनात्मक विधाओं द्वारा विज्ञान संचार" विषयक चार दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्टी का आयोजन किया गया। होटल मधुबन में आयोजित इस संगोष्ठी में देश भर के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों, विज्ञान संचारकों, विज्ञान लेखकों और कथाकारों के अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों के जनसंचार व विज्ञान संचार विभागों के अध्यक्षों एवं विद्यार्थियों ने उक्त विषय पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।

महामहिम राज्यपाल श्री बी0एल0 जोशी ने दीप जलाकर समारोह का उदघाटन किया। कार्यक्रम में शामिल होने वाले प्रमुख वक्ताओं में संगोष्ठी के संयोजक और राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी संचार परिषद के निदेशक डा0 मनोज पटैरिया, वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक प्रो0 श्रीकृष्ण जोशी, एयर मार्शल विश्व मोहन तिवारी, इस्वा के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 धीरेन्द्र शर्मा, प्रख्यात कवि डा0 दिविक रमेश, बाल भवन, दिल्ली की पूर्व निदेशिका डा0 मधु पंत, वैज्ञानिक श्री एल0डी0 काला, साइंस रिपोर्टर की सहायक संपादिका श्रीमती विनीता सिंघल आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

इस अवसर पर लेखक जाकिर अली "रजनीश" द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र "विज्ञान कथाओं द्वारा विज्ञान संचार" को श्रेष्ठ शोधपत्र के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक प्रो0 श्रीकृष्ण जोशी ने प्रदान किया। इन पंक्तियों के लेखक ने अपने उदबोधन में उपरोक्त विषयक शोधपत्र के वाचन के साथ-साथ "रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग", "उन्मुक्त", "ई-पंडित", "सारथी", "हिन्द युग्म" आदि द्वारा विज्ञान एवं टेक्नालॉजी के प्रचार-प्रसार के लिए किये जा रहे विशेष प्रयासों की भी चर्चा की। अन्य वक्ताओं ने भी ब्लॉग की बढती लोकप्रियता पर प्रसन्नता व्यक्त की और विज्ञान संचार के लिए उसके उपयोग पर बल दिया।


जीवन इस पर वारें

देश हमारा हम इसके हैं,
जीवन इस पर वारें ।
जीवन इस पर वारें ।

फूल खिले हर इस बगिया का,
अपना चमन संवारें ।
जीवन इस पर वारें ।

पतझड़ का मौसम न आए,
खूब खिलाएं बहारें ।
जीवन इस पर वारें ।

तूफानों में घिरी हो कश्ती,
मिलकर पार उतारें ।
जीवन इस पर वारें ।

दूर गगन तक हमको जाना,
मीत बना लें तारे ।
जीवन इस पर वारें ।

चल न सकें जो साथ हमारे,
उनके बने सहारे ।
जीवन इस पर वारें ।

संकट कोई भी जब आए,
हम फूल बनें अंगारे ।
जीवन इस पर वारें ।

कवि कुलवंत सिंह


Friday, February 22, 2008

गुड़िया रानी बड़ी सयानी


गुड़िया रानी बड़ी सयानी !
बातें करती नई पुरानी !!
आओ आज सुनाये तुमको,
इस गुड़िया की मधुर कहानी !!
गुड़िया रानी बड़ी सयानी !

है तो यह छोटी सी गुड़िया,
पर बातों से लगती बुढिया !
खुस हो तो मिसरी की पुरिया,
वरना बन जाए यह छुरिया !
आ जाए गर जिद पे अपनी,
याद करा दे सबकी नानी !
गुड़िया रानी बड़ी सयानी !!

तोते सी तुतलाती बोली !
कानो में अमृत सी घोली !!
आंगन में गुंजी किलकारी !
मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी !!
कलकंठी कोयल के स्वर से,
चहक उठे जैसे फुलवारी !!
हँसे हंसाये, रोये गाए,
कू कू कर के मुझे बुलाए !
मैं जाऊं तो वो छुप जाए,
मिले तो हंस कर हाथ बजाये !
करतब अचरज भरे देख कर,
होती है सबको हैरानी !

गुड़िया रानी बड़ी सयानी !!
कुछ दिन में यह काम करेगी,
माँ इसकी आराम करेगी !
पढ़ लिख कर के जग में
रोशन,पापाजी का नाम करेगी !
फिर कुछ दिन में बड़ी बनेगी !
सज-धज कर के बड़ी बनेगी !!
और खुशी के पंख लगेंगे,
जाने किनके भाग्य जागेंगे !
फिर गुड्डे रजा आयेंगे,
गुड़िया को संग ले जायेंगे !
हम सब रोते रह जायेंगे,
हो जायेगी खत्म कहानी !
गुड़िया रानी बड़ी सयानी !
-- केशव कुमार कर्ण
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साथ ही आप जाकिर अली रजनीश की चुपके से बतलाना कविता भी पढें, ये कविता भी आपको जरूर पसंद आएगी।


Tuesday, February 19, 2008

अप्पू जल्दी लौट कर आना




अप्पू घर बीते रविवार बंद हो गया .बहुत सी यादे हर बच्चे और बड़े की इस से जुड़ी थी ..कुछ यादे अब सिर्फ़ गए अप्पू घर की :)

-- अप्पू घर के एक थे अप्पू राजा
गोल गोल घुमा के दिखाते थे तमाशा
मेरी गोल्ड थी शान इनकी
कोलम्बस झूला थी आन इसकी

हर झूला था सब बच्चो को प्यारा
बड़ों ने भी खूब यहाँ वक्त गुजारा




कभी बरसते पानी में थे खेल न्यारे
कभी स्नोफाल के थे दिलकश नजारे

बिछड गया हमारा अप्पू हमसे
नयना यह देख सबके बरसे
अप्पू जल्दी लौट के आना
हर बच्चे को फ़िर खूब झूला झुलाना


Friday, February 15, 2008

साथी बढ़ते जाना

साथी बढ़ते जाना ।
हाथ पकड़ कर इक दूजे का,
साथी बढ़ते जाना । साथी .....

संकट कितने ही आएं,
इनसे न घबराना ।
साथी बढ़ते जाना । साथी .....

मंजिल दूर भले हो कितनी,
मिलकर कदम बढ़ाना ।
साथी बढ़ते जाना । साथी .....

पथ में चलते हार गए जो,
उनको गले लगाना ।
साथी बढ़ते जाना । साथी .....

कंटक कितनी ही पीड़ा दें,
आँसू न कभी बहाना ।
साथी बढ़ते जाना । साथी .....

रोशन हो यह जग सारा,
सूरज नया उगाना ।
साथी बढ़ते जाना । साथी .....

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, February 14, 2008

चुलबुली राजकुमारी



एक चुलबुली सी नटखट सी, नन्ही सी प्यारी प्यारी सी
आखों से शरारत छलकाती, सुंदर सी राजकुमारी सी
सुन्दर सी राजकुमारी सी .....

नन्हे नाजुक क्या नर्म हाथ, कलियों कि तो फिर क्या बिसात
क्या होगी यूँ कोई अप्सरा, तुम भी देखो एक बार जरा
छोटे से पैरों पर चलती, पायल की छम छम छम करती
यूँ लगे हवा के झोकों से, हिलती फूलों कि डाली सी
एक चुलबुली सी.......................

चेहरा चन्दा की प्रतिमूरत, देखी न कभी ऐसी सूरत
हर बात में खुशबू चन्दन की, आखें जैसे हिरनी बन की
उंगलियाँ वर्तिका सी कोमल, इठलाती इतराती पल-पल
गालों पर सिन्दूरी लाली, करती हर बात निराली सी
एक चुलबुली सी.......................


संगमरमर बदन सरीखी सी, चहुँ ओर से मूरत नीकी सी
सजदा करने को मन उत्सुक, हर नज़र देखती है रूक रूक
खोलें होंठों की पंखुड़ियाँ, देती बखेर मोती लाड़ियाँ
केशों कि लट या आबनूस, या घटा या नागिन काली सी
एक चुलबुली सी .......................


दांतों पे दामिनी दमक रही, मुख मंडल आभा चमक रही
तुतलाते शब्दों से बोले, मिश्री सी कानों में घोले
एक सुखद सी बारिश होती है, जब बिन आंसू के रोती है
"राघव" मद-मस्त पवन सी वो, मीठी सी मधु मनुहारी सी
एक चुलबुली सी.......................


Tuesday, February 12, 2008

ज़ाकिर अली 'रजनीश' को बाल साहित्य पुरस्कार

हिन्दी सभा, सीतापुर, उ0प्र0 (भारत) के 64वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर वसंत पंचमी, 11 फरवरी 2008 को आयोजित समारोह में 'बाल साहित्य का वर्तमान परिदृश्य' विषयक गोष्टी का आयोजन किया गया, जिसमें युवा रचनाकार एवं ब्लॉगर जाकिर अली 'रजनीश' ने इन्टरनेट पर उपलब्ध बाल साहित्य के विषय में अपने विचार रखे। उन्होंने इस सम्बंध में 'बाल उद्यान' एवं 'बाल मन' द्वारा किये जा रहे विशेष प्रयासों की चर्चा की। उन्होंने इन्टनेट पर प्रकाशित होने वाली हिन्दी की विभिन्न पत्रिकाओं की चर्चा की, जिसमें बाल साहित्य को भी स्थान प्रदान किया जाता है। इस सम्बन्ध में उन्होंने हिन्द युग्म, अभिव्यक्ति, रचनाकार, सृजनगाथा, हिन्दी नेस्ट, कृति, बी0बी0सी0 डॉट कॉम आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया। इस अवसर पर श्री रजनीश को उनके बाल साहित्य सम्बंधी समग्र योगदान के लिए 'बाल साहित्य पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें शाल उढ़ाकर श्रीफल प्रदान किया गया। साथ ही उन्हें प्रतीक चिन्ह, प्रशसित पत्र एवं रू0 ग्यारह सौ नकद भी प्रदान किये गये।


रोचक है यह जानकारी ..

रोचक है यह जानकारी ..

१ स्पेन देश में एक नदी है टियोटिनता इसका पानी खूनी लाल होता है


2 फिलिपिन्स के लुजान में एक ऐसा कबूतर होता है जिसकी छाती पर लाल धब्बा होता है जो खून की तरह लाल चमकता है ऐसा कबूतर विश्व में कहीं नही होता !

3भालू एक ऐसा जानवर है जो घायल होने पर ठीक इंसान की तरह रोता है!

4 ग्रेट ब्रिटेन देश के डाक टिकटों पर कभी देश का नाम अंकित नही होता !

5 उत्तर प्रदेश में मिलने वाला एक पक्षी हरियल ऐसा है जो जमीन पर पैर नही रखता !

6 विश्व भर में नार्वे एक ऐसा देश है जहाँ पर आधी रात को सूर्य चमकता है इस लिए इस देश को लैंड ऑफ़ मिड नाइट भी कहते हैं ऐसा विश्व भर में कहीं नही होता है !

7 आपको हँसी नही आती ? हँसना चाहते हैं ? नाइट्स अक्साईड गैस आपकी मदद को तैयार है बस हँसते रहेंगे जब तक आप पर से इस इस गैस का प्रभाव खत्म नही होता है !!


Monday, February 11, 2008

बसन्त पंचमी


आज बसन्त पंचमी है । आज का दिन माँ शारदा का दिन है। कहा जाता है कि आज के दिन माँ सरस्वती समुद्र मंथन द्वारा प्रकट हुई थीं । उनके हाथों में कमल,पुस्तक एवं माला थी । एक हाथ आशीर्वाद के लिए उठा था। ब्रह्मा जी ने उनका अभिवादन कर वीणा-वादन का निवेदन किया ताकि संसार की नीरवता दूर हो सके। देवी की वीणा की मधुर झंकार से सभी जीवों को वाणी प्राप्त हुई। तभी से माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना प्रारम्भ हुई।
देवी सरस्वती विद्या और ग्यान की अधिष्ठात्री देवी हैं । विद्यार्थियों को माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
बसन्त पंचमी को प्रकृति का उत्सव भी कहा जाता है। ऋतुराज बसन्त के आते ही प्रकृति दुल्हन की तरह सज जाती है। जो पेड़-पौधे सूख चुके होते हैं, बसन्त के आते ही पुनः उनपर यौवन आ जाता है।
बृज में इन दिनों भगवान श्री कृष्ण की आराधना में फाग गाया जाता है । इस दिन बासंती चावल या हलवा बनाया जाता है। बसन्त ऋतु में प्रकृति अपना पूर्ण ऋंगार करती है।इस दिन मंदिरों में भगवान प्रतिमा का बसंती वस्त्रों और पुष्पों से ऋंगार किया जाता है।
इस ऋतु में शरीर में नवीन रक्त का संचार होता है। आलस्य के स्थान पर चुस्ती आ जाती है। इस ऋतु में व्यायाम का भी विशेष महत्व होता है।
यह दिवस त्याग और बलिदान का भी प्रतीक है। वीर हकीकत राय का बलिदान दिवस भी यही दिन है। इसी दिन स्वतंत्रता का अलख जगाने वाले सत् गुरू रामसिंह का जन्म दिन भी होता है ।
इसी दिन यशस्वी कवि पं सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म भी हुआ था।
बसन्त ऋतु से हमें बहुत सी शिक्षाएँ भी मिलती हैं - चारों ओर से हँसती बसन्त ऋतु संसार को हँसमुख रहने का संदेश देती है। वह सिखाती है कि समय के अनुसार जीवन में बदलाव भी लाना चाहिए। इस समय अणु-अणु में स्फूर्ति का संचार होता है। जीवन से निराशा दूर भगानी चाहिए।


Friday, February 8, 2008

लक्ष्य से जीत तक ( भाग - 2 )

5. आलस्य - आलस्य को कभी अपने ऊपर हावी मत होने दो । कबीर की ये पंक्तियां तो हम सभी के मुंह पर रहती हैं - काल करे सो आज कर । और यह मत सोचो कि आपका काम कोई दूसरा कर देगा । राबर्ट कैलियर ने कहा था - मनुष्य के सर्वोत्तम मित्र उसके दो हाथ हैं । अपने इन हाथों पर भरोसा रखो एवं सतत प्रयत्नशील रहो ।
6. निंदा/ बुराई - जब हमने लक्ष्य ठान लिया है, कर्म कर रहे हैं, अवसरों का उपयोग कर रहे हैं, निराशा से बच रहे हैं, सतत आगे बढ़ रहे हैं तो राह में हमें कई प्रकार के लोग मिलते हैं । हमारे विचार, दृष्टिकोण, लक्ष्य परस्पर टकराते हैं। लेकिन हमें एक चीज से बचना है । दूसरों की बुराई से, उनकी निंदा से । रिचर्ड निक्शन ने कहा था - निंदा से तीन हत्याएं होती हैं; करने वाले की, सुनने वाले की और जिसकी निंदा की जा रही है । स्विफ्ट ने कहा था - आदमी को बदमाशियां करते देख कर मुझे हैरानी नही होती है, उसे शर्मिंदा न देखकर मुझे हैरानी होती है। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी गलतियों को सहर्ष कबूलें । हम इंसान हैं, हमसे गलतियां भी होंगी। लेकिन गलती को मान लेना सबसे बड़ा बड़प्पन है । और इन गलतियों से सीख लेते हुए हमें आगे बढ़ना है ।
7. परोपकार - हमारे लक्ष्य, हमारे कर्मों में कहीं न कहीं परोपकार की भावना अवश्य होनी चाहिए। चाहे वह हमारे समाज, जाति, देश, धर्म, परिवार, गरीबों के लिए हो । परोपकार की भावना जितने बड़े तबके के लिए होगी आप उतने ही महानतम श्रेणी में गिने जाएंगे । गांधी जी ने कहा था - जिस देश में आप जन्म लेते हैं, उसकी खुश हो कर सेवा करनी चाहिए । तुलसीदास जी ने कहा है - परहित सरिस धर्म नहि भाई । नेहरू जी ने भी कहा था - कार्य महत्वपूर्ण नही होता, महत्वपूर्ण होता है - उद्देश्य; हमारे उद्देश्यों एवं कर्मो के पीछे परोपकार की भावना निहित होनी चाहिए ।
8. जीत - आपने लक्ष्य ठाना; कर्म कर रहे हैं; अवसरों का उपयोग कर रहे हैं; निराशा, आलस्य और निंदा से बच रहे हैं; परोपकार की भावना से निहित हैं । बस एक ही चीज अब बचती है । जीत । जीत निश्चित ही आप की है । ऋग्वेद में भी लिखा है - जो व्यक्ति कर्म करते हैं, लक्ष्मी स्वयं उनके पास आती है, जैसे सागर में नदियां ।
जो इन सब पर चलते हैं, असाध्य कार्य भी संभव हो जाते हैं । दो उदाहरण देना चाहता हूँ -
1. एक गुरू ने अपने शिष्यों को बांस की टोकरियां दी और कहा कि इनमें पानी भर कर लाओ। सभी शिष्य हैरान थे, यह कैसा असंभव कार्य गुरूजी ने दे दिया । सब तालाब के पास गए । किसी ने एक बार, किसी ने दो बार और किसी ने दस बीस बार प्रयत्न किया । कुछ ने तो प्रयत्न ही नही किया । क्योंकि पानी टोकरी में डालते ही निकल कर बह जाता था। लेकिन एक शिष्य को गुरू पर बहुत आस्था थी, वह सुबह से शाम तक लगातार लगा रहा। प्रयत्न करता रहा। शाम होते होते धीरे धीरे बांस की लकड़ी फूलने लगी और टोकरी में छिद्र छोटे होते गए और धीरे धीरे बंद हो गए। इस तरह टोकरी में पानी भरना संभव हो सका ।
2. 1940 के ओलंपिक खेलों में शूटिंग के लिए सभी की नजरें हंगरी के कार्ली टैकास पर टिखी थीं; क्योंकि वह बहुत अच्छा निशाने बाज था । लेकिन विश्वयुद्ध छिड़ गया । 1944 में भी विश्वयुद्ध के चलते ओलंपिक खेल नही हो पाए । विश्वयुद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन 1946 में एक दुर्घटना में कार्ली का दायां हाथ कट गया । जब हाथ ही नही तो शूटिंग भला कैसी ? कार्ली ने घर छोड़ दिया । सबने सोचा निराशा के कारण कार्ली ने घर छोड़ दिया है । लेकिन जब 1948 में लंदन में ओलंपिक खेल हुए तो सबने हैरानी से देखा कि शूटिंग का गोल्ड मैडल लिए कार्ली खड़ा है। बाएं हाथ से गोल्ड मैडल जीता ।
9. अहंकार - जीत आपने प्राप्त कर ली । अब एक बात का और ध्यान रखना है । कभी अहंकार को अपने ऊपर हावी नही होने देना है । अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। सहजता और सौम्यता बड़प्पन के गुण हैं । शेक्सपीयर ने कहा था - अहंकार स्वयं को खा जाता है । अपनी दो पंक्तियों के साथ -
हिम बन चढ़ो शिखर पर यां मेघ बन के छाओ,
रखना है याद तुम्हे सागर में तुमको मिलना ।

कवि कुलवंत सिंह
वैज्ञानिक अधिकारी
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई


Thursday, February 7, 2008

श्री रामायण सार - भाग -2

बच्चो जय श्री राम...
पिछ्ली बार हमने भगवान श्री राम की कथा का प्रथम भाग
(जन्म से वन-गमन ) तक भाग
श्री रामायण सार - भाग -1
http://baaludyan.hindyugm.com/2007/11/1.html यहाँ पढ़ा..
आइये अब उससे आगे की कथा सुनते हैं..

श्री रामायण सार - भाग -1 से आगे..

सूपर्णखां मोहित लक्षमन पर, बोली मुझे वरो सुकुमार
चाल समझ कर शेषरूप ने, नाक कान पर कीया वार
क्षुब्ध राक्षसी ने फिर जाकर, खर-दूषन से करी गुहार
राम लखन के बानों से, खर-दूषन गये स्वर्ग सिधार
त्रेता युग में हरि ने आ जब रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हां संहार


भेंट हुई सुग्रीव से एक दिन, बाली की करतूत सुनी
राक्षसों के उत्पातों से, बड़े दुखी सब ऋषि मुनी
श्री राम ने धनुष उठा कर, बाली को दिया भवतार
दानव दल हो गए नदारद, भागे करते हाहाकार
त्रेता युग में हरि ने आ जब रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हां संहार


मामा मारीचि स्वर्ण मृग बन, सीता के सन्मुख आया
सुन्दर कंचन काया भ्रम-मृग, वैदेही के मन भाया
बोलीं प्रभु आखेट करो और, स्वर्ण मृग दे दो उपहार
लक्षमण भी उस ओर दौड़ गये सुन भाई की करुण पुकार
त्रेता युग में हरि ने आ जब, रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हां संहार


ऋषि रूप रख रावण आया,हो गयी सफल दुष्ट की चाल
बोला, साधू द्वार खड़ा है, साधू को दो भिक्षा डाल
सीता माता ने जैसे ही, लक्षमण रेखा लाँघी पार
बरबस रावण ने सीता को, पुष्पक में कर लिया सवार
त्रेता युग में हरि ने आ जब,रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हां संहार


गीधराज ने देख जानकी, बिलख रहीं होकर लाचार
पापी रावण पर कर डाले, चोंच से अपनी लाखों वार
लेकिन महाबली रावण ने, पंखों पर मारी तलवार
धराशायी हो गये जटायू, प्रभु की करने लगे पुकार
त्रेता युग में हरि ने आ जब,रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हां संहार


बच्चों फिर हाजिर होऊँगा बाकी की श्री-राम कथा लेकर...
जय श्री राम..


पप्पू पास हो गया

बिगड़ा काम रास हो गया,
पप्पू पास हो गया
कौन है इतने विषय बनाता,
बच्चों को है बड़ा डराता,
विषयों से हमारा क्या है नाता,
पढ़ाई को कर दूँ टाटा,
पढाई न हुई त्रास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

गणित तो समझ नहीं आता,
गुणा-भाग में ही उलझ जाता,
मुश्किल से परचा पूरा हो पाता,
सवाल तो सवाल ही रह जाता,
तीन घण्टा यूँ पास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

अंग्रेजी की भी अपनी कहानी,
मर जाये अंग्रेजों की नानी,
खुद चले गये छोड़ी परेशानी,
शिक्षा विभाग भी करे मनमानी,
आज फिर निराश हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

इतिहास भूगोल का परचा सारा,
पल्ले न पड़े क्या करे बिचारा,
सवाल, गांधीजी को किसने मारा,
जवाब, मैंने नहीं मारा,
सोचते-सोचते बुरा हाल हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

विज्ञान भी मुझको नहीं सुहाता,
अच्छा होता पर्चा लीक हो जाता,
मेरा काम आसान हो जाता,
'पासिंग-मार्क' तो जुटा ही पाता,
विज्ञान गले की फाँस हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

पापा को सारा हाल सुनाया,
एक पर्चा पूरा न हो पाया,
पापा का भी जी घबराया,
पापा ने मास्टर को पटाया,
"रत्ती" चुटकी में अपने आप हो गया,
धक्के से पप्पू पास हो गया

रचनाकार : सुरिंदर रत्ती
घर का पता : ओमकार का-आप हाउसिन्ग सोसायटी, म-१-डी, रुम न. ३०४, सायन, मुम्बई - ४०० ०२२.
उम्र : ४५ वर्ष
सर्विस : यूनिवर्सल म्युज़िक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (अस्सिस्टेंट मैनेजर ), मुम्बई
शिक्षा : बी.कॉम, मुम्बई यूनिवर्सिटी, और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की जानकारी ली
रुचि : गीत-संगीत लिखना और गाना, पुस्तकें पढ़ना, काव्य गोष्टीयों में भाग लेना, फोटोग्राफी, ट्राव्लींग इत्यादि

कुछ समय पहले इनकी दो आडियो केसेट आ चुकी हैं और एक पुस्तक पर काम चल रहा है।


Tuesday, February 5, 2008

चाकलेट है मेरा नाम [दीदी की पाती ]





नमस्ते ,
हर पाती में मेरी कोशिश होती है आपको नई बात बताने की ...अच्छा चाकलेट किसको अच्छी नही लगती ? हाँ हाँ मुझे मालूम है की सबको बहुत अच्छी लगती है ..मुझे भी बहुत अच्छी लगती है ...कितनी खा लो फ़िर भी दिल नही भरता न ...यह है ही ऐसी प्यारी मीठी सी चीज ..जो बड़े ,बच्चो सबको पसंद है ...जब मैं बहुत छोटी थी तो सपने में देखती थी सब पेड़ चाकलेट से लदे हैं और बस मैं उनको तोड़ती जाती हूँ और खाती जाती हूँ .:) पर बाद में मैंने जाना की यह सपना सच ही है ..क्या आपको पता है कि
जो चाकलेट आप खाते हैं या पीते हैं ..वह आती कहाँ से है ? आज मैं आपको इस कविता के माध्यम से बताती हूँ चाकलेट बनने कि कहानी ...


-- चाकलेट है मेरा नाम
हूँ सबकी लबों की मुस्कान
गरम देश में पैदा होती हूँ
ककाओ है मेरे पौधे का नाम

साल भर रहता यह पौधा हरा - भरा
साल में दो बार इस पर पीला फूल खिला
इन फूलों से बन जाती फिर फलियाँ
हर फली में रहती है बीजों की लड़ियाँ

तोड़ फली को फिर पत्तियों से अलग कर जाते
कुछ दिन में इसका छिलका हैं निकलते
बीज इस में निकलते हैं फ़िर सुनहरे
फिर बीजों को भून के पिसे जाते

यही पीसा चूरा ही है चाकलेट कहलाता
खाने और पीने के काम आता
कभी भर देते इस में मेवे
कभी इसको पिया जाता
सबके दिल को भाती चाकलेट
मीठी मीठी सबकी दुलारी चाकलेट !!

तो पढ़ा आपने चाकलेट बनने की कहानी को .भाई अब मेरे से तो रुका नही जा रहा ..मैं तो खाने लगी हूँ ढेर सारी चाकलेट ..आप भी खाओ ..पर हाँ अपने दातों का ध्यान रखना .

आपकी दीदी

रंजू


Monday, February 4, 2008

कविताएँ

(1)
बस्तर
छत्तीसगढ के दक्षिण में बसा है बस्तर
आओ चलकर देखें क्या है इसके अंदर
ऊँची-नीची पहाडी और बडी-बडी घाटी
नदियाँ है गहरी ,पावन यहाँ की माटी

काँगेर घाटी में देखो,बनभैंसों की टोली
राज्य पक्षी मैना की आदमी सी बोली
चित्रकोट तीरथगढ सुंदर यहाँ झरना
कोटमसर की गुफा से तुम न डरना

शाल और सागौन वनों से गुजरती
बहती है इंद्रावती खेतों को सींचती

बैलाडिला पहाड पर लोहे की खान
इसी से इतराता है देखो ये जापान
जंगलों में खेलते हैं अधनंगे बच्चे
यहाँ के लोग हैं सीधे और सच्चे

बस्तर में लगतें हैं,हाट और बाजार
अनूठी संस्कृति, तीज और त्यौहार
शल्फी और ताडी बस्तर की ठंडाई

ताड तेंदु छिंद महुआ सुंदर मिठाई
शंखनी-डंकनी का संगम अति पावन
सबकी आस्था माँ दंतेश्वरी मनभावन
आमफल जामफल सीताफल रामफल
इनको खाकर ही बच्चे होते पहलवान

लोहे शिल्प और लकडी पर चित्रकारी
इस पर भी भूखी मरे बुधनी बेचारी
चटनी-बासी तीखुर मडिया यहाँ के पकवान
हमारे लिए तो देवी देवता होते हैं मेहमान
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डॉ. नंदन , बचेली, बस्तर (छ.ग.)
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(2) महात्मा गाँधी की याद में...............

स्वराज्य प्राप्ति में बापूजी का, है अपना अनुपम स्थान,
राष्ट्र हेतु संघर्ष किया , फिर महाप्राण का महाप्रयाण।

सत्य अहिंसा के रक्षक थे , मानवता के संस्थापक,
भेदभाव से रहित थे वे, और वर्ण-जाति के आलोचक ।
सब हैं एक भगवान की संतान,था उनका कथन महान,
राष्ट्र हेतु संघर्ष किया फिर महाप्राण का महाप्रयाण ।

विश्व शांति का अलख जगाया, भाईचारे को अपनाया ।
सभी एक हैं भेदभाव क्यों, प्रश्न ये मन में उपजाया ।
जीवन था आदर्श हमेशा , आज भी है आदर्श महान ।

राष्ट्र हेतु संघर्ष किया , महाप्राण का महाप्रयाण ।
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अलंकृति शर्मा
कक्षा- आठवीं
केन्द्रीय विद्यालय बचेली (बस्तर)
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Friday, February 1, 2008

लक्ष्य से जीत तक ( भाग - 1 )

जीवन अनमोल है। आधुनिक युग में हर व्यक्ति बेहतर भविष्य, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अच्छे जीवन के लिए सदा प्रयत्नशील रहता है। आपको भी यदि सफल होना है; जीवन में कुछ पाना है; महान बनना है; तो निम्न बातों को जीवन में अपना लीजिए ।
1. लक्ष्य निर्धारण - सर्वप्रथम हमें अपने जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करना है। एक लक्ष्य - बिलकुल निशाना साध कर। अर्जुन की चिड़िया की आँख की तरह। स्वामी विवेकानंद ने कहा था - जीवन में एक ही लक्ष्य साधो और दिन रात उस लक्ष्य के बारे में सोचो । स्वप्न में भी तुम्हे वही लक्ष्य दिखाई देना चाहिए । और फिर जुट जाओ, उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए - धुन सवार हो जानी चाहिए आपको । सफलता अवश्य आपके कदम चूमेगी । लेकिन एक बात का हमें ध्यान रखना है। हमारे लक्ष्य एवं कार्यों के पीछे शुभ उद्देश्य होना चाहिए। पोप ने कहा था - शुभ कार्य के बिना हासिल किया गया ज्ञान पाप हो जाता है । जैसे परमाणु ज्ञान - ऊर्जा के रूप में समाज के लिए लाभकारी है तो वहीं बम के रूप में विनाशकारी भी ।
2. कर्म - लक्ष्य निर्धारण के बाद आता है कर्म । गीता का सार है - कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । कर्म में जुट जाओ। उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, जो आपने चुना है। हर पल । बिना कोई वक्त खोए। गांधी जी ने कहा था - अपने काम खुद करो, कभी दूसरों से मत करवाओ। गांधी जी खुद भी अपने सभी कार्य खुद करते थे। दूसरी बात जो गांधी जी ने कही थी - जो भी कार्य करो, विश्वास और आस्था के साथ, नही तो बिना धरातल के रसातल में डूब जाओगे। यह अति आवश्यक है कि हम अपने आप पर विश्वास और आस्था रखें, यदि हमें अपने आप पर ही विश्वास नही है तो हमारे कार्य किस प्रकार सफल होंगे? जरूरी है - अपने आप पर मान करना, स्वाभिमान रखना । विश्वास और लगन के साथ जुटे रहना । हमारे कार्यों से हमेशा एक संदेश मिलना चाहिए । नेहरू जी से मिलने एक बार एक राजदूत, एक सैनिक एवं एक नवयुवक मिलने आए । तो नेहरू जी ने सबसे पहले नवयुवक को मिलने के लिए बुलाया, फिर सैनिक को एवं सबसे बाद में विदेशी राजदूत को । बाद में सचिव के पूछने पर बताया कि नवयुवक हमारे देश के कर्णधार हैं, सैनिक देश के रक्षक; उनको सही संदेश मिलना चाहिए । बिना बोले हमारे कर्मों से समाज को संदेश मिलना चाहिए ।
3. अवसर - हर अवसर का उपयोग कीजिए। कोई भी मौका हाथ से न जाने दीजिए । स्वेट मार्टेन ने कहा था - अवसर छोटे बड़े नही होते; छोटे से छोटे अवसर का उपयोग करना चाहिए। चैपिन ने तो यहां तक कहा कि जो अवसरों की राह देखते हैं, साधारण मनुष्य होते हैं; असाधारण मनुष्य तो अवसर पैदा कर लेते हैं । कई लोग छॊटे छॊटे अवसर यूं ही खॊ देते हैं कि कोई बड़ा मौका हाथ में आएगा, तब देखेंगे। यह मूर्खता की निशानी है।
4. आशा / निराशा - आप कर्म करेंगे तो जरूरी नही कि सफलता मिल ही जाए। लेकिन आपको घबराना नही है। अगर बार बार भी हताशा हाथ आती है, तो भी आपको निराश नही होना है । मार्टेन ने ही कहा था - सफलता आत्मविश्वास की कुंजी है । ग्रेविल ने कहा था - निराशा मस्तिष्क के लिए पक्षाघात (Paralysis) के समान है कभी निराशा को अपने पर हावी मत होने दो । विवेकानंद ने कहा था - 1000 बार प्रयत्न करने के बाद यदि आप हार कर गिर पड़े हैं तो एक बार फिर से उठो और प्रयत्न करो । अब्राहम लिंकन तो 100 में से 99 बार असफल रहे। जिस कार्य को भी हाथ में लेते असफलता ही हाथ लगती । लेकिन सतत प्रयत्नशील रहे। और अमेरिका के राष्ट्रपति पद तक जा पँहुचे । कुरान में भी लिखा है - मुसीबतें टूट पड़ें, हाल बेहाल हो जाए, तब भी जो लोग निश्चय से नही डिगते, धीरज रख कर चलते रहते है, वे ही लक्ष्य तक पहुँचते हैं ।
(इसका अगला और अंतिम भाग - 2 अगले शुक्रवार को)

कवि कुलवंत सिंह
वैज्ञानिक अधिकारी
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई