कान्हा बना दे
माँ मुझको कान्हा बना दे,
गोरी सी राधा दिला दे ।
बाँसुरी मुझको सिखला दे
तीर यमुना का दिखला दे ।
लुक छुप मैं बाग में खेलूँ,
गोपियों संग रास छेड़ूँ ।
बारंबार उन्हे सताऊँ,
छेड़ उनको मैं छुप जाऊँ ।
वह शिकायत करने आएँ,
पूछने तू मुझसे आए ।
देखता जब तुमको आता,
पेड़ पर चढ़ मैं छुप जाता ।
मुझे पास न जब तुम पाती,
सोच कर कुछ घबरा जाती ।
मुझे डांटना भूल जाती,
दे आवाज मुझे बुलाती ।
हंस हंस जब मैं पास आता,
विकल हृदय सहज हो जाता ।
प्यार से तू पास बुलाती,
गले लगा सब भूल जाती ।
माखन मिसरी फिर मंगाती,
गोद में ले मुझे खिलाती ।
गोपियां जब याद दिलाती,
उन्हें डांटकर तुम भगाती ।
अपने प्यार का सदका दे,
काजल का टीका लगा दे ।
माँ मुझको कान्हा बना दे,
अपने आँचल में छिपा दे ।
कवि कुलवंत सिंह