दादी जी की चिड़िया
रोज सवेरे उठकर दादी
हैं, छितराती दानों के कन,
दानों के कन छितराने पर
कर देती घंटी से टन-टन ...
घंटी की टन -टन सुनकर के
पहले काला कौआ आता ,
काँव-काँव कर जोर -जोर से
सब चिड़ियों को न्योता बुलाता |
तीन-चार गौरयाँ आतीं
पाँच-सात आते हैं तोते ,
और कबूतर के दो जोड़े
जिनके पर चितकबरे होते |
पीली आँख किल्ह्नता आता
तीतर आता, तीतरी आती
भूरे पर की सात बहिनिया
जो कच -कच कर शोर मचाती |
रह -रह इधर-उधर तक-तक कर
सब पंछी दाना खाते हैं,
जहां किसी की आहट पाई
झट सब-के-सब उड़ जाते हैं |
स्रोत -नीली चिड़िया (हरिवंश राय बच्चन )
प्रेषक -नीलम मिश्रा

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7 पाठकों का कहना है :
aisi pyaari si kavita ke liye bahut-bahut DHANYAVAAD Neelam ji
rachana bahut sundar or pyaari lagi . padhakar mujhe apna bachapan yaad aa gaya . dhanyawad.
bahut hi sundar kavita.
ALOK SINGH "SAHIL"
किसी को भी अपना बचपन याद आ सकता है। नीलम जी, आप बच्चों के लिए बहुत अनमोल उपहार जुटाकर लाती हैं। साधुवाद
बहुत प्यारी कविता नीलम जी...
तीन-चार गौरयाँ आतीं
पाँच-सात आते हैं तोते ,
और कबूतर के दो जोड़े
जिनके पर चितकबरे होते |
पीली आँख किल्ह्नता आता
तीतर आता, तीतरी आती
भूरे पर की सात बहिनिया
जो कच -कच कर शोर मचाती |
सुन्दर
aapki rachna adhbut hai .aapke andar ek bahut badi kavyitri chupi hai jise bahar aane ki aavashyakta hai.
humne upar bataaya hai ki ,kavita
harivanshraay ji ki hai,meri nahi .
kavita pasand karne ke liye shukriya
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