मुर्गा-मुर्गी

मुर्गा-मुर्गी चले बाज़ार.
वहाँ ख़रीदा एक अनार.
सोचा आधा-आधा खाएं,
तनिक न कम या ज्यादा पायें.
कालू कुत्ता झपटा उन पर.
दोनों भागे नीची दुम कर.
याद नहीं आयी यारी.
भूले कुकडू-कूँ सारी.
गिरा अनार उछलकर दूर.
दाने फैल गए भरपूर.
चौराहे पर फिसल गए.
स्कूटर से कुचल गए.
मुर्गा-मुर्गी पछताए.
क्यों अनार घर न लाये.
बैठ चैन से खा पाते.
गप्प मारते-मस्ताते.
-आचार्य संजीव 'सलिल'

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8 पाठकों का कहना है :
बहुत सुंदर
बढ़िया है यह :)
murgaa muragi ki choti si kahaanee amoolay sandesh deti bahut hi pyaari lagi | bahut-bahuut badhaaii....seema sachdev
बहुत सुंदर लिखा आपने पढकर मजा आया
बहुत सुंदर मजा आया..
मज़ेदार और शिक्षाप्रद
एक सीधी सी बात ,उसमे हास्य और शिक्षा का समावेश ,अद्भुत है |
very interesting.
ALOK SINGH "SAHIL"
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