ले त्रिशूल अब अपने हाथ
याद करो तुम पशुपति नाथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ
भारता माता रही पुकार
बहुत हो चुका भ्रष्टाचार
भूल गये हैं सब भगवान
पूज रहे हैं सब शैतान
साथ तुम्हारे दीनानाथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ
मानव जीवन को धिक्कार
सहता कितने अत्याचार
दुख से भरा हुआ संसार
फिर भी चुप सारा संसार
मानव मानव का दे साथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ
दानव मिलकर देते त्रास
कर दो इनका सत्यानाश
सहन न होते इनके काज
खत्म करो अब दानव राज
इनसे करना दो दो हाथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ
याद करो तुम निज अभिमान
भारत माँ का गौरव गान
प्राणों का तू मत धर ध्यान
जीवन को दो न्याय महान
हमें मिटानी काली रात
ले त्रिशूल अब अपने हाथ
कवि कुलवंत सिंह

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5 पाठकों का कहना है :
बहुत बडिया
एक बहुत ही सुंदर रचना पढ़ के जोश आ जाये एसी
सादर
रचना
achchi kavita ,
veer ras se ot prot ,achcha manchan bhi kiya jaa sakta hai is kavita ka .
bachche to comment likhte nahi hain ,magar visit jaroor karte hain un sabki taraf se hum aapko dhanuvaad karte hain
बता रहे हैं कवि कुलवंत.
उनके यश का कभी न अंत.
जो औरों खातिर जीते.
अमृत बाँट गरल पीते.
'सलिल' नवाते उनको माथ
लो त्रिशूल अब अपने हाथ.
आप सबी का हार्दिक धन्यवाद...
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