रस्सी-टप्पा
रस्सी-टप्पा, रस्सी-टप्पा,
आओ कूदें रस्सी-टप्पा एक तरफ से मैंने पकड़ा,
और दूजे से बिमला,
और बीच में कूदे सखियो,
जोर-जोर से कमला
अपनी-अपनी बारी ले कर,
सबने धूम मचाई,
पर सब सखियाँ भागी
घर कोजब मेरी बारी आई ,
रह गई बुलाती सखियों को
मैंलौट के वो न आई,
रह गई अकेली,
किससे खेलुँ,
ये बात समझ न आई
तब चुपके से बोली चिड़िया,
क्यों रोती है गुडिया,
मेरे पास है इस सब का,
इलाज बहुत ही बढ़िया ।
रस्सा ले कर खुद तुम कूदो,
खुद तुम मौज मनाओ,
कर सकती हो काम अकेले,
सखियों को ये दिखलाओ।
कल जब आयें लौट के सखियाँ,
भूल उन्हे जतलाओ,
सबसे पहले अपनी बारी,
कूदने की तुम पाओ
पर नहीं दिखाना उनको,
कर जैसे का तैसा,
बोयेगा जो जैसा पौधा,
फल पायेगा वैसा।
--डॉ॰ अनिल चड्डा