प्रार्थना
बच्चों,आज मैं जो कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, वह मैने कई सालों पहले लिखी थी। जानते हो- तब यह बाल-कविता न थी,लेकिन अब जब पढता हूँ इसे तो बाल-कविता हीं लगती है।
प्रभु, देना मुझको ऎसी शक्ति,
जिससे करूँ मैं तेरी भक्ति,
और राष्ट्र-प्रति कर्त्तव्यों से
मुझे न हो कभी विरक्ति।
माँग पर करूँ सर्वस्व दान,
कुछ ऎसा मैं कर जाऊँ,
जिससे सबका हो कल्याण।
प्रभु, मेरा हृदय बन सके शुद्ध,
बन सकूँ महावीर, बुद्ध ,
शांति का मैं दूत बन सकूँ,
धरती से हटा सकूँ युद्ध।
सुंदर हो जीवन का चित्र ,
अपने सुंदर विचारों से मैं
बना सकूँ अच्छों को मित्र।
प्रभु, मुझको देना ऎसा ज्ञान,
अपनी कमियों को सकूँ जान,
इन कमियों का कर निदान,
जग में पाऊँ मैं सम्मान ।
प्रसन्न रहें मुझसे हर जन,
पिता-माता का ध्यान रखूँ मैं,
बन सकूँ मैं कुमार श्रवण ।
अभिमन्य-सी बुद्धि करो प्रदान,
हठी बनूँ नचिकेता समान,
और एकलव्य के जैसा करूँ,
गुरू-आज्ञा पर कुछ भी दान।
किसी को रहे ना मुझसे क्लेश,
ऎसा पद ना मुझे प्राप्त हो,
भीतर कुछ और नकली वेश।
जिंदगी में कभी न हो थकान,
खुले रहे हमेशा मेरे कान,
उस समय भी मैं हँसता रहूँ,
जब हो पाना परलोक में स्थान।
सबके कार्यों में बटाऊँ हाथ,
धनवानों का हिमायती न होकर,
निर्धनों का दूँ मैं साथ।
पा सबको अभिमानी न बनूँ कहीं,
सब कुछ यदि देना है मुझको,
पहले बनाएँ मुझे मद-विहीन।
-विश्व दीपक 'तन्हा'