Friday, November 30, 2007

प्रार्थना


बच्चों,आज मैं जो कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, वह मैने कई सालों पहले लिखी थीजानते हो- तब यह बाल-कविता थी,लेकिन अब जब पढता हूँ इसे तो बाल-कविता हीं लगती है

प्रभु, देना मुझको ऎसी शक्ति,
जिससे करूँ मैं तेरी भक्ति,
और राष्ट्र-प्रति कर्त्तव्यों से
मुझे न हो कभी विरक्ति।

प्रभु, मुझमें भर दो ऎसा ज्ञान,
माँग पर करूँ सर्वस्व दान,
कुछ ऎसा मैं कर जाऊँ,
जिससे सबका हो कल्याण।

प्रभु, मेरा हृदय बन सके शुद्ध,
बन सकूँ महावीर, बुद्ध ,
शांति का मैं दूत बन सकूँ,
धरती से हटा सकूँ युद्ध।

प्रभ, मुझको देना अच्छा चरित्र,
सुंदर हो जीवन का चित्र ,
अपने सुंदर विचारों से मैं
बना सकूँ अच्छों को मित्र।

प्रभु, मुझको देना ऎसा ज्ञान,
अपनी कमियों को सकूँ जान,
इन कमियों का कर निदान,
जग में पाऊँ मैं सम्मान ।

दॄष्टि मेरी रहे सदा पावन,
प्रसन्न रहें मुझसे हर जन,
पिता-माता का ध्यान रखूँ मैं,
बन सकूँ मैं कुमार श्रवण ।

अभिमन्य-सी बुद्धि करो प्रदान,
हठी बनूँ नचिकेता समान,
और एकलव्य के जैसा करूँ,
गुरू-आज्ञा पर कुछ भी दान।

प्रभु, मुझसे करे न कोई द्वेष,
किसी को रहे ना मुझसे क्लेश,
ऎसा पद ना मुझे प्राप्त हो,
भीतर कुछ और नकली वेश।

जिंदगी में कभी न हो थकान,
खुले रहे हमेशा मेरे कान,
उस समय भी मैं हँसता रहूँ,
जब हो पाना परलोक में स्थान।

मुझे बनाएँ ऎसा दीनानाथ,
सबके कार्यों में बटाऊँ हाथ,
धनवानों का हिमायती न होकर,
निर्धनों का दूँ मैं साथ।

सभी माँगों की पूर्त्ति चाहिए नहीं,
पा सबको अभिमानी न बनूँ कहीं,
सब कुछ यदि देना है मुझको,
पहले बनाएँ मुझे मद-विहीन।

-विश्व दीपक 'तन्हा'


Thursday, November 29, 2007

आओ प्रदूषण रोके हम..


आओ बच्चो तुम्हें बताऊँ
एक राक्षस की बातें
हर्-दम मुहुँ खोले फिरता है
चाहे दिन हों या रातें
मूक वार करता है निर्दयी
बच्चों वृद्ध जवानों पर
भारी पड़ जाता है देखो
बड़े बड़े पहलवानों पर
जल थल और पवन में रहकर
सबको नाँच नचाता है
लापरवाही अपनी ही से
प्रतिदिन बढ़ता जाता है
पहुँचे हुये एक गुरू जी
रात स्वप्न में आये थे
बुरे राक्षस से लडने के
कुछ उपाय बतलाये थे
कूड़े कचड़े और गन्दगी
से इसका बल बढ़ता है
अति का शोर-शराबा से तो
खाने को चल पड़ता है
बस पेड़ों से डरता है ये
इसलिये पेड़ लगायें सब
हरी-भरी कर अपनी धरती
इसको दूर भगायें सब
दूषित कचड़ा और रसायन
नदियों में ना डालें हम
बीमारी के इस राक्षस को
क्यूँ कर घर में पालें हम ?
शोर-शराबा धुआँ रोककर
आओ इसको दूर करें
शहर शहर और गाँव ग़ाँव में
हरियाली भरपूर करें
प्रदूषण के खर-दूषण को
आओ मिलकर रोकें हम
पेड़ पुरानों का संरक्षण
नित नये पौधे रोपें हम
जिम्मेदारी अपनी है तो
किसी पर कैसे थोपें हम
आओ प्रदूषण रोकें हम
आओ प्रदूषण रोके हम..


Wednesday, November 28, 2007

पर्यटन – भाग-2: कुहू का बस्तर भ्रमण

मेरे प्यारे दोस्तों,



पिछले बुद्धवार मैंने आपको बस्तर के इतिहास से परिचित कराया था साथ ही साथ बारसूर और दंतेवाडा नगरों की सैर भी। आज मेरे पिटारे में एसे प्राकृतिक स्थल है।यहाँ पहुँच कर यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं तो आप खो जायेंगे वैज्ञानिक सोच रखते हैं तो अपने आगे रहस्यों और ज्ञान की कई परतों को खुला पायेंगे और अगर कवि या साहित्यकार हैं तो फिर तौबा, आपको तो वहाँ से उठा कर ही लाना पडेगा।

जगदलपुर से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भारत के विशाल जलप्रपातों में एक चित्रकोट।



लगभग 100 फीट की उँचायी से गिरती हुई इन्द्रावती नदी विहंगम दृश्य उत्पन्न करती है। यह जलप्रपात नियाग्रा जलप्रपात का छोटा रूप कहा जाता है।



कमजोर चूना पत्थर को गलाती, काटती नदी नें अर्धचंद्राकार स्वरूप ले लिया है। शोर करती और निरझर होती नदी निकट ही उपर उठते फुहारों और इंद्रधनुष के रंगो को बिखेर देती है। बस्तर आने वाले पर्यटक यदि इस जलप्रपात को न देखें तो उनका घूमना व्यर्थ ही माना जायेगा।



जुलाई से अक्टूबर के मध्य इस स्थल को देखना सर्वोत्तम है, मानसून में इंद्रावती नदी अपने पूरे वेग पर होती है इसलिये चित्रकोट का सौन्दर्य दुगुना हो जाता है।जलप्रपात के निकट तक नौकाटन का आनंद लिया जा सकता है। निकट की कुछ छोटी छोटी गुफायें हैं जिन्हें मंदिर का स्वरूप दे दिया गया है।



अब कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान की ओर बढते हैं। यह उद्यान जंगली भैंसों के लिये जाना जाता है। दोस्तों, जंगली भैंसे रंग और स्वरूप में आम भैसों की तरह लगते हैं किंतु देह, कद और काठी मे बलिष्ठ।



उनके विशाल सींग उनके सौंदर्य में चार चाँद लगाते हैं। साल और टीक के घने दरखतों वाला इस राष्ट्रीय उद्यान जैव-विविविधता के विश्व में गिने चुने धरोहरों में से एक है।



जीव जंतुओं की तो बडी तादाद यहाँ है ही लाईमस्टोन (चूना पत्थर) तहा के धरातल को कई प्राकृतिक खजाने भी दे गया है जिनमें प्रमुख है कोटुमसर गुफा।



राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में ही इस गुफा के होने का लाभ यह है कि आपको मामूली फीस पर उद्यान के मुख्यद्वार पर ही गाईड मिल जाता है जो कि आपके साथ पैट्रोमेक्स अथवा सौर-उर्जा से जलने वाले प्रकाश स्त्रोत ले कर चलता है। गुफा के भीतर गहरे उतरते हुए साँसे थम जाती है और पाताललोक में प्रवेश जैसा भान होता है।



गाईड के निर्देशों का पालन करते हुए एक बार आप गहरे उतरे नहीं कि ज्ञान और सौदर्य के द्वार आपके लिये खुल जाते हैं। चूनापत्थर ने (लाईम स्टोन) पानी के साथ क्रिया करने के बाद गुफा की दरारों से रिस रिस कर स्टेलेक्टाईट अथवा आश्चुताश्म (दीवार से नीचे की ओर लटकी चूना पत्थर की रचना: छत से रिसता हुवा जल धीरे-धीरे टपकता रहता हैं। इस जल में अनेक पदार्थ घुले रहते हैं। अधिक ताप के कारण वाष्पीकरण होने पर जल सूखने लगता हैं तथा गुफा की छत पर पदार्थों जमा होने लगता हैं । इस निक्षेप की आक्र्ति परले स्तंभ की तरह होती हैं जो छत से नीचे फर्श की ओर विकसित होते हैं)







स्टेलेक्माईट अथवा निश्चुताश्म (जमीन से दीवार की ओर उठी चूना पत्थर की संरचना: छत से टपकता हुवा जल फर्श पर धीरे-धीरे एकत्रित होता रहता हैं । इससे फर्श पर भी स्तंभ जैसी आकृति बनने लगती हैं। यह विकसित होकर छत की ओर बड़ने लगती हैं)



और पिलर अथवा स्तंभ (जब स्टेलेक्टाईट और स्टेलेक्माईट मिल जाते हैं) संरचनायें बनायी हैं। इस गुफा में खास देखी जाने योग्य है बिना आँख की मछली – “कैपिओला शंकराई” केवल इसी जगह पायी जाने वाली इस मछली का नाम उसके खोजी डॉ. शंकर तिवारी के नाम पर पड गया था। मछलियों में आँख का न होना गुफा के भीतर रोशनी के न होने के कारण है। गुफा के अंतिम छोर पर एक स्टेलेक्माईट का स्वरूप शिवलिंग की तरह है और पर्यटक वहा पहुँच कर पूजन भी करते हैं। मैं इस स्थल तक पहुँचने के रोमांच को कभी नहीं भुला सकती।



दोस्तों विज्ञान की इन्ही बातों के साथ हम अपने बस्तर भ्रमण के इस अंक को विराम देते हैं लेकिन अभी मेरी यात्रा पूरी नहीं हुई। बस्तर के और भी दुर्लभ स्थलों की यात्रा शेष है। तो अगले सप्ताह फिर मिलते हैं इसी कडी के तीसरे अंक के साथ।



- - आपकी कुहू।

प्रस्तुति : *** राजीव रंजन प्रसाद
29.11.2007





एकता में ही ताकत है


बच्चों ,आज आपको एक सच्ची धटना बताते हैं-बैंगलोर में एक पार्क में एक पेड़ पर तोते का एक छोटा सा घोंसला था। तोता और तोती बडे प्यार से उसमें रहते थे। उनका एक छोटा सा बच्चा भी था, जिसके नाजुक कोमल से शरीर पर अभी पंख नहीं आये थे।

तोता और तोती बारी-बारी से उसके लिये खाना लाते और बडे प्यार से उसे खिलाते। तोता खाना लेने गया हुआ था तभी तोती ने सोचा क्यों ना वो भी चली जायें और थोडी बहुत खाने की चीज़ वो भी ले आये फिर वो तीनों मिलकर साथ खाना खायेंगें। लेकिन तोता और तोती को आने में थोडी देर हो गयी।
मौका देख कर एक सांप घोंसले की और बढ चला मन ही मन वो बहुत खुश था । सोच रहा था कितने दिनों के बाद वो नरम-नरम स्वादिष्ट भोजन करेगा। कल्पना कर-कर के सांप की ज़ुबान पर पानी आ रहा था। बस पक पल की दूरी है अगले ही क्षण वो बच्चा मेरे मुहँ में होगा लेकीन तभी तोता और तोती खाना लेकर आ गये । इस तरह एकाएक दुश्मन को अपने घोंसले के करीब पा कर दोंनो के होश उड गये।तोती तो घबरा कर रोने लगी पर तोते ने हिम्मत नहीं हारी ।उसने तोती को समझाया -ये समय रोने का नहीं है । हमें मिलकर -डटकर उसका मुकाबला करना है और बिना एक पल गंवायें तोते ने सांप पर अपनी चोंच से प्रहार किया सांप निश्चिंत था वो एकाएक हुये हमले की वजह से अपना संतुलन खो बैठा और पेड से नीचे गिर पडा।

तोती को ये सब देखकर हिम्मत बंधी और वो भी तोते के साथ मिलकर सांप पर आक्रमण करने लगी। दूसरी तरफ सांप इस तरह मुहं में आये निवाले को जाता देख कर गुस्से से आग बबूला था । अब वो दुगनी तेजी से घोंसले की तरफ बडा पर तोते और तोती ने "एक और एक ग्यारह होते हैं" वाली कहावत को सच करते हुये हिम्मत से उसका सामना किया। सांप को उन दोंनो ने अपनी चोंच से हमला कर- कर के अधमरा कर दिया कि आखिर में सांप को मैदान छोड कर सिर पर पांव रख कर अपनी जान बचानी पडी।

बच्चे जानते हो तोता और तोती अपने बच्चे की जान बचाने में क्यों सफल हुये? क्योंकि उनमें एकता और हिम्मत थी ।दोंनो ने मिलकर बिना डरे शत्रु का सामना किया और अपने नन्हे से बच्चे की जान बचायी।

शत्रु कितना भी बलवान या चतुर क्यों ना हो यदि हम उसका सामना निडर हो कर करते हैं तो निश्चय ही जीत हमारी होगी ।यदि सांप को देख कर तोता और तोती हिम्मत हार जाते और सोचते की वो उनसे ज्यादा ताकतवर है तो क्या वो अपने बच्चे की जान बचा पाते ? नहीं ना। इसलिये तुम भी ध्यान रखना कभी भी हिम्मत
मत हारना।

एकता में ही ताकत है ये भी जान लो।

-- अनुराधा श्रीवास्तव


Tuesday, November 27, 2007

दीदी की पाती कड़ी 6

बच्चो आई दीदी की पाती
नई नवेली बात सुनाती
इस दुनिया की इतनी बातें
दीदी तुमको आज कविता में सुनाती



दिन बीते फ़िर आए दिन नवेला
कहाँ घबरा के भाग जाए अँधेरा
कैसे यह चक्कर चलता जाता
देख के हर कोई चक्कर में पड़ जाता





कैसा है यह अजब तमाश
घड़ी में तोला घड़ी में माशा
समझ ना पाया नन्हा दीपू
जान ना पाई छोटी आशा ,

अभी यहीं था कुछ घंटो पहले
छाया चारों और अंधेरा
आँख लगी बस ज़रा देर तो
आ पहुँचा चमक के सवेरा


कैसे धरती रंग बदलती
जीवन का हर ढंग बदलती
पहनी झिलमिल साड़ी
चल पड़ती दिन की गाड़ी

पापा की बस दफ़्तर जाती
मम्मी की रोटी पक जाती
कापी और किताबों के संग
दीदी की कक्षा लग जाती



फिर धीरे से धरती माँ का
रूप बदल जाता कैसे ?
चाँदी जैसे रंग के उपर
काला रंग चढ़ता है कैसे ?

ना तो कोई अजब तमाशा
ना जादू की यह बात
आशा दीपू सुनो ध्यान से
कैसे होते हैं दिन रात ?

घूम रही अपनी कीली पर
जैसे लट्टू माँ हो धरती
चोबीस घंटे मेहनत करके
एक चक्र है पूरा करती

नाच नाच अपनी कीली पर
आगे आगे बढ़ती जाती
घूम घूम सूरज दादा की
फेरी यही लगाती है

अगर जला के एक टॉर्च तुम
रखो गेंद एक आगे उसके
जिधर पढ़े टॉर्च की रोशनी
उसकी चमक से वह है दमके

गेंद घुमाई जब हमने तो
चमक दूसरी और पड़ी
हुआ अंधेरा वहाँ जहाँ पर
अब तक थी रोशनी बड़ी

इसी तरह जब धरती रानी
सूरज के आगे नाचे
जिस हिस्से पर पड़े रोशनी
बजे वहाँ दिन के बाजे

जो हिस्सा पीछे जाता है
पड़ता वहाँ ना सूर्य का प्रकाश
तब सोता घने रात की
चादर ओढे यह आकाश

भारत में जब रात हुई
अमरीका में तब दिन आ जाता
सूरज चमके जब भारत में
अमरीका तब हैं धुंधला है जाता

इसी तरह दिन और रात का
चक्र हमेशा चलता जाता
आधी धरती पर रात और
आधी पर सूरज चमक जाता !!


[शिशु गीत के सोजन्य से ]


Monday, November 26, 2007

भारत माता और तीन बाल गीत


गीत - 1
भारत माँ के बच्चे हैं हम ........

भारत माँ के बच्चे हैं हम, हिन्दू न मुसलमान हैं,
सिक्ख ईसाई बौद्ध पारसी सबका एक ईमान है।
भारत माँ के बच्चे हैं हम..........

ऋषि-मुनि सूफी-संतों का हमें मिला वरदान है,
सत्य-अहिंसा की राह दिखाते वेद और कुरान है।
मानवता है धर्म हमारा प्रेम सरस सहगान है,
बना रहे यह भाईचारा यही एक अरमान है।।
भारत माँ के बच्चे हैं हम..........

मंदिर-मस्जिद सजते सुंदर भजन और अजान है,
इसी देश में रहते जीजस, अल्लाह और भगवान है।
जगमग दीप दीपावली के होली, ईद, रमज़ान है,
ओणम-पोंगल, क्रिसमस-बैसाखी सभी पर्व समान है।।
भारत माँ के बच्चे हैं हम..........

हम निर्भय निश्छ्ल है हम सहज सरल बलवान हैं,
भाषा अलग पर भाव एक यह अपना अभिमान है।
यहाँ सभी जन भारतवासी कहता यह संविधान है,
यह देश हमारा दिल है हम इस पर ही कुर्बान हैं।
भारत माँ के बच्चे हैं हम..........

भारत माँ के बच्चे हैं हम, हिन्दू न मुसलमान हैं,
सिक्ख ईसाई बौद्ध पारसी सबका एक ईमान है।
भारत माँ के बच्चे हैं हम..........

गीत - 2
भारतमाता

जय हे, जय-जय, भारत माता
जन-गण-मन से तेरा नाता
जय हे,जय-जय, भारत माता
नीला अंबर साज है तेरा
तुंग हिमालय ताज है तेरा
तेरी महिमा सागर गाता
जय हे, जय-जय, भारत माता ।

तुम जननी हो जन कल्याणी
तुम ही पद्मा तुम ही भवानी
तुम हो सरला तुम्ही सरुपा
तेरा गुण है अतुल अनूपा
सुंदर रुप है सबको भाता
जय हे, जय-जय, भारत-माता ।

तुम अन्नपूर्णा वसुंधरा है
तेरा आँचल भाव भरा है
संस्कृत-हिंदी सुंदर भाषा
पूरी करती सबकी आशा
सभी जाति-धर्मों का मेला
यहाँ नही है कोई अकेला
जन-गण-मन से तेरा नाता
जय हे, जय-जय, भारत माता ।

गीत - 3
हम बच्चे हैं

हम बच्चे हैं, हम सच्चे हैं
यही हमारा गान है,
भारत देश महान है....

हम भोले हैं, हम अच्छे हैं
यही देश का मान है
भारत देश महान है....

हम में गाँधी, हम में नेहरु
हम ही में वीर जवान हैं
भारत देश महान है....

हम हैं राजा इस धरती के
यही हमारी शान है
भारत देश महान है....

इस देश में जन्म लिए हम
इस मिट्टी पर कुर्बान हैं
भारत देश महान है....

हम बच्चे हैं, हम सच्चे हैं
यही हमारा गान है,
भारत देश महान है....

- डॉ. नंदन, बचेली (छत्तिसगढ)


Sunday, November 25, 2007

आओ बच्चो हम हवा-चक्री बनाना सीखें

हवा चक्री बनाने के लिये हमें जिन चीजों की आवश्यकता होगी वह हैं.... एक आल पिन, एक चौकोर कागज, एक कैंची और एक लकडी की डंडी (पेड की पतली टहनी का टुकडा).

सबसे पहले एक कागज का चौकोर टुकडा ले.. (चित्र एक)

इसे दो बार फ़ोल्ड करें ताकी यह चार हिस्सों में बंट जाये.... (चित्र दो और तीन)


अब कैंची की सहायता से पेपर को चारों कोनो से इस तरह काटें कि वह बीच तक न कटे और हमे पिन करने की जगह मिल जाये. (चित्र चार और पांच).


इसके बाद चारों कोनों को जिन्हे लाल रंग से दर्शाया गया है (चित्र छ:) मोड कर बीच तक ले आयें (चित्र सात).


अब एक आल पिन ले कर मोडे हुये चारों कोनो को बीधं कर पिन को पीछे की तरफ़ निकाल दें जहां एक छोटे से सुराख में से एक लकडी की डंडी को पिन से जोड दें. लीजिये हो गई आप की हवा-चक्री तैयार(चित्र आठ). जब आप इसे किसी पंखे या हवा के सामने करेंगे तो ये भी पंखे की तरह से तेजी से घूमेगी.


आओ बच्चो चित्र बनाना सीखे

बच्चो इस बार विस्तार से न बता कर आपको नीचे दिये गये चित्रो का सहारा ले कर मिस्टर रैट को कागज पर उतारना है.. मैं जानता हूं यह आपके लिये आसान होगा.... देख कर बनाना, पढ कर बनाने से हमेशा आसान होता है... मुझे बतायें क्या मेरा सोचना सच है.





Thursday, November 22, 2007

"केले वाला"

गली में केले वाला आया
केले ले लो वो चिल्लाया
सेठ जी ने आवाज लगाई
कैसे दिये हैं केले भाई
बारह रुपये के दर्जन एक
सुबह से दिये दो ठेले बेच
सेठ जी ने दो रुपये निकाले
दो केले दो केले वाले
छिलका छील सड़क पर डाला
खाकर केले चल दिये लाला
ज्यों लाला ने कदम बढ़ाया
छिलका पैर के नीचे आया
गिरते गिरते वो घवराये
मोटी तोंद संभल ना पाये
बच्चों ने फिर हँसी उड़ाई
तब लाला को समझ में आयी
तुम भी बच्चो रखना ध्यान
स्कूल सड़क घर या उद्यान
ये है नैतिक जिम्मेदारी
कचडे से आती बीमारी

तो...
बात रहे बस ध्यान में
कूडा कूडेदान में


22-11-2007