सुबह

सुबह-सुबह जब चंचल किरणें
मेरे कमरे में आती हैं
नई तरावट देती मुझको
आलस दूर भगाती हैं
उठकर पहले छत पर जाता
करता सूरज को प्रणाम
जिसकी किरणों में हम जीते
दिन भर करते अपना काम
फिर मैं घूमने जाता बाहर
बाग़ में करता रोज व्यायाम
जिससे बढ़ती बुद्धि मेरी
और शरीर होता बलवान
मेरी मानो तो तुम सुन लो
चिंकू-मिंकू और बलराम
नित्य प्रतिदिन तुम भी करना
हो जाओगे तुम भी पहलवान
प्रस्तुति :- ''रविंदर टमकोरिया 'व्याकुल'

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10 पाठकों का कहना है :
व्याकुल जी,
सर्वप्रथम तो बाल-उद्यान पर आपका स्वागत। सुबह-सुबह पहलवानी की जो बात कर दी आपने, हम इसे बिना पढे रह नहीं पाए। अब हमको भी पहलवान बनना है। मैं आपकी सारी बात मानूँगा, पहल्वान बन जाऊँगा ना......
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बहुत अच्छी व शिक्षाप्रद रचना है..बधाई।
मेरी मानो तो तुम सुन लो
चिंकू-मिंकू और बलराम
नित्य प्रतिदिन तुम भी करना
हो जाओगे तुम भी पहलवान
बहुत अच्छे । बधाई
व्याकुल जी,
आपका बहुत बहुत अभिनन्दन बाल-उद्यान पर पधारने के लिये,
और एक प्यारी सी रचना के लिये बहुत बहुत बधाई.
bahut mitha hai. chhota hai chhote bachhon ko bhayega...
short and sweet poem. Badhayee.
Avaneesh Tiwaree
आपका स्वागत है यहाँ .आपकी कविता बहुत प्यारी लगी बधाई आपको
रविंदर जी, आपका बाल उद्यान पर स्वागत है। आपने व्यायाम के महत्व को बहुत ही खूबसूरती से कविता में उतार दिया है। बधाई।
रविंदर जी,
आपका बाल उद्यान पर स्वागत है।
सुंदर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई।
मेरी मानो तो तुम सुन लो
चिंकू-मिंकू और बलराम
नित्य प्रतिदिन तुम भी करना
हो जाओगे तुम भी पहलवान
व्यायाम का महत्व बताती आपकी यह बाल रचना प्रसंशनीय है। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
रविन्दर जी,
आप बाल रचनाओं की ओर बढ़ निकले हैं तो यही कहूँगा कि खूब लिखिए
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