आओ प्रदूषण रोके हम..

आओ बच्चो तुम्हें बताऊँ
एक राक्षस की बातें
हर्-दम मुहुँ खोले फिरता है
चाहे दिन हों या रातें
मूक वार करता है निर्दयी
बच्चों वृद्ध जवानों पर
भारी पड़ जाता है देखो
बड़े बड़े पहलवानों पर
जल थल और पवन में रहकर
सबको नाँच नचाता है
लापरवाही अपनी ही से
प्रतिदिन बढ़ता जाता है
पहुँचे हुये एक गुरू जी
रात स्वप्न में आये थे
बुरे राक्षस से लडने के
कुछ उपाय बतलाये थे
कूड़े कचड़े और गन्दगी
से इसका बल बढ़ता है
अति का शोर-शराबा से तो
खाने को चल पड़ता है
बस पेड़ों से डरता है ये
इसलिये पेड़ लगायें सब
हरी-भरी कर अपनी धरती
इसको दूर भगायें सब
दूषित कचड़ा और रसायन
नदियों में ना डालें हम
बीमारी के इस राक्षस को
क्यूँ कर घर में पालें हम ?
शोर-शराबा धुआँ रोककर
आओ इसको दूर करें
शहर शहर और गाँव ग़ाँव में
हरियाली भरपूर करें
प्रदूषण के खर-दूषण को
आओ मिलकर रोकें हम
पेड़ पुरानों का संरक्षण
नित नये पौधे रोपें हम
जिम्मेदारी अपनी है तो
किसी पर कैसे थोपें हम
आओ प्रदूषण रोकें हम
आओ प्रदूषण रोके हम..

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11 पाठकों का कहना है :
सुंदर कविता. बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जाग्रत करना इस समस्या के सबसे प्रभावी और दीर्घकालीन प्रभावों में से एक है. साधुवाद. पर्यावरण चेतना पर केंद्रित यह ब्लॉग भी देखें...
www.paryanaad.blogspot.com
धरती कहलाती माँ हमारी
इसका तेज न मिटने पाये
खिला दे हर कोने में फूल प्यारे
इसको प्रदूषित होने से हम बचाए !!
बहुत ही सुंदर संदेश आपकी इस कविता में राघव जी !बच्चे जागरूक होंगे तो आने वाला भविष्य भी सुंदर होगा !!
भूपेन्द्र जी,
प्रदूषण से खतरों को बताती आपकी यह कविता निस्संदेह हीं बधाई के काबिल है।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
भूपेन्द्र जी,
प्रदूषण की रोक थाम तभी संभव है जब यह जागरूकता जन जन तक हो। आपने बीज से आरंभ किया है....बहुत बधाई एक सामयिक और महत्वपूर्ण रचना के लिये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
राघव जी, आप बाल-उद्यान मंच के बेहतरीन कवि हैं। बच्चों को कैसे सीखाना है, आप बखूबी जानते हैं।
बहुत ही सुंदर कविता है ..
अप ऐसे ही लिखते रहिये
में बच्चों से गवाती रहूँ...:-)
सचमुच प्रदूषण जैसे विषय को आप ने चुना और इतनी सुंदर अभिव्यक्ति दी
दिल बाग बाग हो उठा ...:-)
सुनीता यादव
क्या बात है कितने सहज रूप में आपने सारी दास्ताँ कह डाली , राघव जी बधाई
भूपेंद्र जी,बच्चे किस भाषा को समझते हैं इसका ज्ञान आपको भली भांति हो चुका है.
बहुत जी प्यारी और मनोहारी भाषा का प्रयोग कर जो बेहतरीन संदेश आपने बच्चो को देने की कोशिश की है वो वाकई काबिले तारीफ़ है.
आलोक सिंह "साहिल"
भूपेंद्र जी,बच्चे किस भाषा को समझते हैं इसका ज्ञान आपको भली भांति हो चुका है.
बहुत जी प्यारी और मनोहारी भाषा का प्रयोग कर जो बेहतरीन संदेश आपने बच्चो को देने की कोशिश की है वो वाकई काबिले तारीफ़ है.
आलोक सिंह "साहिल"
प्रदूषण पर कवितायें कम देखी हैं-चलिये अच्छा है एक कविता औरमिल गयी मुझे.
सीधे सादे शब्दों में आसानी से याद हो जाने वाली इस कविता में प्रयावरण को संरक्षित रखने का संदेश मिल रहा है.
धन्यवाद.
भूपेन्द्र जी,
जागरूकता फैलाने की ईक अच्छी कडी की सुरुआत
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