Thursday, December 31, 2009

नया-नया साल है आया

बच्चो,

आज साल 2009 का आखिरी दिन है। खूब मस्ती हो रही है ना!
तुम सबकी दोस्त पाखी ने तुम सबके लिए एक कविता लिखी है।
और जानते हो, नीलम आंटी ने उसे अपनी आवाज़ भी दी है।

नया-नया साल है आया,
ढेर सी खुशियाँ साथ में लाया।
नए साल में ये करना है,
नए साल में वो करना है।
हैं सभी तैयार नववर्ष को,
अपनाने और स्वागत करने को।
हर जगह हो रही है पार्टी,
"हैप्पी न्यू इयर" कहतीं हर आंटी।
नए साल में प्रदूषण को,
करेंगे कोशिश कम करने को।
हिंसा, झूठ और बदले को भूल,
सब जायेंगे खुश होकर स्कूल।
2010, आ गया है भाई,
हम तो खायेंगे ढेर सी मिठाई।
हर जगह बस ख़ुशी बिखर जाये,
नया साल कुछ ऐसा लाए।
ईश्वर से करती प्रार्थना आसमान तले,
दुश्मनी भूलकर लग जाएँ सब गले।

--पाखी मिश्रा।

इस कविता को नीलम आंटी की आवाज़ में नीचे का प्लेयर चला कर सुनो-


Saturday, December 26, 2009

थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते बनते

अमेरिका में अभी क्रिस्मस की रात होगी। इस अवसर पर हम रचना श्रीवास्तव की एक कविता लेकर आये हैं। रचना जी ने जब नैन्सी शेरमैन की कविता पढ़ीं तो उसकी पहली पंक्ति 'आई एम ट्राइड ऑफ बीइंग गुड बिफोर क्रिस्मस' से प्रभावित हुईं और बाल-उद्यान के लिए यह कविता लिख भेजीं।

थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते-बनते
दाल पीते और करेला चखते-चखते
माँ कहती है सेंटा देख रहा है
मेरी हरकतों को तोल रहा है
सब के साथ करो बिहेव नाईस
यही है निर्णय वाइस
बनोगी अच्छी तो
दे जायेगा गिफ्ट वो सूरज ढलते-ढलते
थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते बनते

दूध पूरा पीती हूँ, बहन से प्यार करती हूँ
गोद दे जो स्कूल की कॉपी
तो भी गुस्सा नहीं करती हूँ
प्यारे खिलौने भी संग उस के बाँटा करती हूँ
परेशान हो गई हूँ ऐसा करते-करते
थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते-बनते

शोर करके उधम मचाऊँ ऐसा दिल करता है
खाने में बस नुडल्स खाऊँ ऐसा दिल करता है
यूनिफॉर्म पहन सो जाऊँ ऐसा दिल करता है
चीजें इधर-उधर गुमाऊँ ऐसा दिल करता है
बोर हो गईं हूँ सब कुछ सही जगह रखते-रखते
थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते-बनते

सेंटा को खुश करने को
होम वर्क बिना गलती के किया
तो टीचर को आश्चर्य हुआ
मिला पूरा नंबर तो माँ का दिल खुश हुआ
इस बात पर मुझको ये अहसास हुआ
अपनों की ख़ुशी से जो संतोष मिलता है
उस का मोल कोई गिफ्ट कहाँ चुका सकता है
कहूँगी सभी से यही चलते-चलते
थकी नहीं हूँ अब मैं गुड गर्ल बनते-बनते


Friday, December 25, 2009

एकता की ताकत

एक बार की बात है,
अब तक हमको याद है.
जंगल में थे हम होते,
पांच शेर देखे सोते.

थोड़ी आहट पर हिलते,
आंख जरा खोल देखते.
धीरे से आंख झपकते,
साथी से कुछ ज्यों कहते.

दूर दिखीं आती काया,
झुरमुट भैंसों का आया.
नन्हा बछड़ा इक उसमें,
आगे सबसे चलने में.

शेर हुए चौकन्ने थे,
घात लगाकर बैठे थे.
पास जरा झुरमुट आया,
खुद को फुर्तीला पाया .

हमला भैंसों पर बोला,
झुरमुट भैंसों का डोला .
उलटे पांव भैंसें भागीं,
सर पर रख कर पांव भागीं .

बछड़ा सबसे आगे था,
अब वो लेकिन पीछे था .
बछड़ा था कुछ फुर्तीला,
थोड़ा वह आगे निकला .

भाग रहीं भैंसें आगे,
उनके पीछे शेर भागे .
बछड़े को कमजोर पाया,
इक शेर ने उसे भगाया .

बछड़ा है आसान पाना,
शेर ने साधा निशाना .
बछड़े पर छलांग लगाई,
मुंह में उसकी टांग दबाई .

दोनों ने पलटी खाई,
टांग उसकी छूट न पाई .
गिरे, पास बहती नदी में
उलट पलट दोनों उसमें .

रुके, बाकी शेर दौड़ते,
हुआ प्रबंध भोज देखते .
शेर लगा बछड़ा खींचने,
पानी से बाहर करने .

बाकी शेर पास आये,
नदी किनारे खींच लाये .
मिल कर खींच रहे बछड़ा,
तभी हुआ नया इक पचड़ा .

घड़ियाल एक नदी में था,
दौड़ा, गंध बछड़े की पा .
दूजी टांग उसने दबाई,
नदी के अंदर की खिंचाई .

शेर नदी के बाहर खींचे,
घड़ियाल पानी अंदर खींचे .
बछड़ा बिलकुल पस्त हुआ,
बेदम और बेहाल हुआ .

खींचातानी लगी रही
घड़ियाल एक, शेर कई .
धीरे धीरे खींच लाए,
शेर नदी के बाहर लाए .

घड़ियाल हिम्मत हार गया,
टांग छोड़ कर भाग गया .
शेर सभी मिल पास आये,
बछड़ा खाने बैठ गये .

तभी हुआ नया तमाशा,
बछड़े को जागी आशा .
भैंसों ने झुंड बनाया,
वापिस लौट वहीं आया .

हिम्मत अपनी मिल जुटाई,
देकर बछड़े की दुहाई .
शेरों को लगे डराने,
भैंसे मिलकर लगे भगाने .

टस से मस शेर न होते,
गीदड़ भभकी से न डरते .
इक भैंसे ने वार किया,
शेर को खूब पछाड़ दिया .

दूसरे ने हिम्मत पाई,
दूजे शेर पे की चढ़ाई .
सींग मार उसे हटाया,
पीछे दौड़ दूर भगाया .

तीसरे ने ताव खाया,
गुर्राता भैंसा आया .
सींगों पर सिंह को डाला,
हवा में किंग को उछाला .

बाकी थे दो शेर बचे,
थोड़े सहमें, थोड़े डरे .
आ आ कर सींग दिखायें,
भैंसे शेरों को डरायें .

भैंसों का झुंड डटा रहा,
बछड़ा लेने अड़ा रहा .
हिम्मत बछड़े में आई,
देख कुटुंब जान आई .

घायल बछड़ा गिरा हुआ,
जैसे तैसे खड़ा हुआ .
झुंड ने उसको बीच लिया,
बचे शेर को परे किया .

शेर शिकार को छोड़ गये,
मोड़ के मुंह वह चले गये .
शेरों ने मुंह की खाई,
भैंसों ने जीत मनाई .

जाग जाये जब जनता,
राजा भी पानी भरता .
छोटा, मोटा तो डरता,
हो बड़ों की हालत खस्ता .

मिलजुल हम रहना सीखें,
न किसी से डरना सीखें .
एकता में ताकत होती,
जीने का संबल देती .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, December 24, 2009

क्रिसमस का त्योहार

पूर्व दिशा में चमका तारा
प्रभु ईसा जन्मा है प्यारा
तीन सयाने दूर से आए,
मरियम को भी शीश नवाए।
बतलहम की एक सराय
थे भेड़ों के जहाँ चरवाहे
यूसुफ संग मंगेतर आया
अद्भुत बेटा उसने पाया।
नाजरथ के उस यीसू की
याद दिलाने आता क्रिसमस
बारह दिन का पर्व अनोखा
धूम मचाता आता क्रिसमस।
छुट्टी का मौसम मस्ती का
बाल-युवा सब कैरोल गाते
फादर क्रिसमस रात को आके
मोजों में चीजें भर जाते।
क्रिसमस केक, पुडिंग, चाकॅलेट,
माँ ढेरों कैंडी मँगाती
दीदी, भैया के संग मिलके
सुंदर क्रिसमस ट्री सजाती।
सजे-धजे सब चर्च में जाके
क्रिसमस कैंडल ज्योति जलाते
दूर कहीं से क्रिसमस बैल सुन
दिल में प्रभु का प्यार जगाते
शुभकामना कार्डस् बाटंते
प्रियजन को उपहार बांटते
करने क्रिसमस शॉपिंग सारे
हफ्तों पहले मॉल भागते
प्रेम बढ़ाने प्रीत सिखाने
हर साल आता है क्रिसमस
जीवन एक उत्सव है मनाएँ
यही बताने आता क्रिसमस।

अनिता निहालानी


Tuesday, December 22, 2009

आंसू से प्यास बुझाता हूँ

चित्र आधारित कविता लेखन प्रतियोगिता की शीर्ष 3 कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ और कविताएँ भी उल्लेखनीय रही। उन्हीं कविताओं में से एक कविता प्रकाशित की जा रही है।

आंसू से प्यास बुझाता हूँ

मम्मी गयी स्कूल पढ़ाने,
पापा गए हैं दफ्तर.
मन की बातें किससे बोलूं,
कोई नहीं है घर पर..

टॉफी बिस्कुट डब्बे में है,
डब्बे रैक के ऊपर..
भूख लगी तो हाथ बढ़ाया,
गिरा मुंह के बल पर..

बंद कमरे में रो रोकर,
और घुट घुट कर मैं जीता हूँ.
प्यास लगी तो ऑंसू से,
अपनी प्यास बुझाता हूँ..

मम्मी-पापा के बिना,
कितना मुश्किल है जीना.
बचपन से तो अच्छा है,
पचपन का हो जाना..

सुजान पंडित,
शंकर विला, कांटा टोली चौक, ओल्ड एच.बी.रोड, रांची-८३४००१ (झारखण्ड)


Sunday, December 20, 2009

बबलू को आ गई रुलाई

चित्र आधारित बाल कविता लेखन प्रतियोगिता में तीसरा स्थान डॉ. अनिल चड्डा का है. डॉ. अनिल चड्डा लम्बे समय से बाल-उद्यान में अपनी रचनाएँ भेज रहे हैं. बाल-उद्यान में अब तक इनकी ३० से भी अधिक कविताएँ प्रकाशित हैं.

सुबह-सवेरे उठते-उठते,
मम्मीजी जब नजर न आईं,
मायूसी में ढूँढते-ढूँढते,
बबलू को आ गई रुलाई।

इधर मिले न, उधर मिले न,
घर के हर कोने में देखा,
कौन रसोई में था लेकिन,
बबलूजी ने नहीं था देखा।

भूख लगी जब दूध की उनको,
और जोर से आई रुलाई,
तभी किचन के कोने में से,
मम्मी की आवाज थी आई।

मत रो बबलू,मत रो राजा,
दूध अभी मैं ले कर आई,
मम्मी की आवाज को सुन कर,
फिर से आ गई रुलाई।

अब तो मुशिकल बहुत बड़ी थी,
बबलू को चुप कौन कराये,
क्यों नहीं मम्मी पास थी उसके,
जिद में वो रोता ही जाये।

मम्मीजी ने गोद में ले कर,
दूध था जब बबलू को पिलाया,
मम्मी की गोदी ने इकदम,
बबलूजी को चुप था कराया।

--डॉ. अनिल चड्डा


Friday, December 18, 2009

चित्र आधारित दूसरी कविता

चित्र आधारित बाल कविता प्रतियोगिता की दूसरी कविता सीमा सचदेव की है। बाल-उद्यान की 25 प्रतिशत से भी अधिक सामग्री सीमा सचदेव ने अकेले तैयार की है। इंटरनेट पर बाल-साहित्य को समृद्ध करने में इनका बहुत योगदान है।

बच्चे प्यारे, कहते सारे
पर हम हैं कितने बेचारे
कर न पाएं कभी स्व मन की
सुनें बात घर के हर जन की
बात हमारी कोई न माने
न ही समझदार कोई जाने
न करने दें कोई शैतानी
पाठ पढ‌़ाती रहती नानी
मानो सदा बड़ों का कहना
शोर न करना, चुप ही रहना
चॉक्लेट आईसक्रीम नहीं खाना
न खेलने बाहर को जाना
टी.वी देखना नहीं है अच्छा
देख अभी तू छोटा बच्चा
सारा दिन बस करो पढ़ाई
मम्मी ढ़ेर किताबें लाई
मांगो जब भी कोई खिलौना
आ जाता है सबको रोना
कर दो पहले घर का काम
खिलौने का फिर लेना नाम
स्वयं कभी न लेकर देते
मांगें हम तो जिद्दी कहते
रो-रोकर जो बात मनवाएं
तो गन्दे बच्चे कहलाएं
कभी जो घर आएं मेहमान
आफ़त में आ जाती जान
स्वयं तो खाते मिलके मिठाई
जीभ हमारी जो ललचाई
आंखों से ही करें इशारा
किसी चीज को हाथ जो मारा
होगी बाद में खूब पिटाई
खा नहीं सकते हम मिठाई
भूखे पेट सुनाओ गाना
मा-पापा की शान बढ़ाना
जो गलती से गए कुछ भूल
चुभ जाती मम्मी को शूल
लगता उनकी शान को धक्का
भूला क्यों जो रटा था पक्का
सवार है ऊपर नम्बरों का भूत
लाओ वरना पड़ेंगे जूते खूब
इक नम्बर भी कम जो आया
सारे किए का हुआ सफ़ाया
हम नन्हे से छोटे बच्चे
कहते सब हम दिल के सच्चे
पर सब अपना हुक्म चलाएं
जाएं वही जहां ले जाएं
उन्हीं की मर्जी से खाएं खाना
चलता नहीं है कोई बहाना
सुनो बात पर मुंह न खोलो
तुम बच्चे हो कुछ न बोलो
जल्दी जगना जल्दी सोना
हमको बस आता है रोना
रो कर खुद ही चुप हो जाएं
बोलो बच्चे किधर को जाएं

--सीमा सचदेव

संपादकीय टिप्पणी- सीमा सचदेव की कविता को हम दूसरे स्थान पर रखेंगे, इन्होने भी बहुत अच्छी कविता लिखी है। बच्चों में संवेदनशीलता उतनी ही होती है, जितनी कि किसी भी व्यस्क व्यक्ति में, इस भाव की वजह से इनकी कविता को दूसरा स्थान दिया गया है।


Thursday, December 17, 2009

चित्र आधारित प्रतियोगिता के परिणाम और पहली कविता

पिछले महीने बाल-उद्यान ने चित्र आधारित बाल-कविता लेखन की प्रतियोगिता आयोजित की थी। इसमें कुल 10 कवियों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में एक तेरह वर्षीय किशोर कवि जॉय चड्डा ने भी भाग लिया। सर्वश्रेष्ठ कविता का निर्णय नीलम मिश्रा और पूजा अनिल किया और भूपेन्द्र राघव की कविता को सर्वश्रेष्ठ स्थान पर रखा। बधाई!

दूसरा स्थान- सीमा सचदेव
तीसरा स्थान- डॉ॰ अनिल चड्डा
अन्य प्रतिभागी- श्याम सखा श्याम, जॉय चड्डा, शन्नो अग्रवाल, सुजान पंडित, देवेन्द्र सिंह चौहान, मंजू गुप्ता, पुरूषोत्तम अब्बी।

हम एक-एक करके सभी कविताएँ प्रकाशित करेंगे। आज प्रस्तुत है, पहली कविता।

चाचू लाये चाल खिलोने
बहुत प्याले बहुत छलोने
दो मैंने लिए, दो लिए भाई
किछी बात की नहीं ललाई
मैंने चुन लिए बस, स्कूतल
भाई ने लिए मोल, कबूतल
भाई मुझको लगा चिढाने
ओल कबूतल को छ्म्झाने
मेले कबूतल उल कल जाना
मीथे मीथे फल तुम लाना
मैं भी छाले फल खा लूंगा
ऑल किछी को एक न दूंगा
इतने में एक बिल्ली आई
झट पीजन पल जम्प लगाई
मैं बोली, लो उल गया कबूतल
खूब मिलेंगे अब मीथे फल
पीजन ले गयी बिल्ली मांछी
भाई की छूलत हुई लुआंछी
भाई पे लह गया एक खिलौना
छुलू हो गया इनका लोना
चीक्स पल बहकल आये आंछू
देखकल मैं भी हुई लुआंछू
गले भाई के लगकल बोली
मेले भैया आई ऍम छौली..
मुझछे ले लो एक खिलौना
बंद कलो बछ अपना लोना
चलो भाई ये दोनों ले लो
बछ मेले छंग मिलकल खेलो
गले भाई ने लगाया कछ्कल
आई ऍम छोली बोले हंछकल
चाल खिलोने लह गए तीन
अन्फोरगेतेबल, व्हात ए छीन |

--भूपेन्द्र राघव

संपादकीय टिप्पणी- राघव की कविता हमें सबसे अच्छी लगी, क्योंकि बच्चों में समाये उन मानवीय मूल्यों को दर्शाती है जो बड़े भी भूल चुके हैं (हालांकि इनकी कविता तोतली बोली में है, फिर भी अपना सन्देश पूर्ण तौर पर संप्रेषित करती है और गेय कविता है)।


Wednesday, December 16, 2009

अगर सभी बादशाह होते

अकबर बीरबल से तरह-तरह के अजीबोगरीब प्रश्न पूछा करते थे। कुछ प्रश्न ऐसे भी होते थे जो वह बीरबल की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए पूछते थे। एक बार बादशाह अकबर बीरबल से बोले- "बीरबल! इस दुनिया में कोई अमीर है, कोई गरीब है, ऐसा क्यों होता है? सब लोग ईश्वर को परमपिता कहते हैं। सभी आदमी उनके पुत्र ही हुए। पिता अपने बच्चों को हमेशा अच्छा और खुशहाल देखना चाहता है। फिर ईश्वर परमपिता होकर क्यों किसी को आराम का पुतला बनाता है और किसी को मुट्ठी भर अनाज के लिए दर-दर भटकाता है? आखिर उसने सभी को समान क्यों नहीं बनाया?"

"आलमपनाह, अगर ईश्वर ऐसा न करे तो दुनिया की गाड़ी चल ही नहीं सकती। वैसे तो दुनिया में पाँच पिता कहे गए हैं। इस नाते आप भी अपनी प्रजा के पिता हैं। फिर आप किसी को हजार, किसी को पाँच सौ, किसी को पचास, तो किसी को सिर्फ़ पाँच-सात रुपये ही वेतन देते हैं। जबकि एक महीने तक आप सभी से सख्ती से पूरा काम लेते हैं। ऐसा क्यों? सभी को एक ही नजर से क्यों नही देखते? और फिर, अगर ईश्वर सभी को बादशाह बना देता तो सेवकों का काम कौन करता? बीरबल कौन बनता?"

बादशाह कोई भी जवाब नहीं दे सके, उलटे सोच में पड़ गए।


Monday, December 14, 2009

सात एकम सात



सात एकम सात,
सात दूनी चौदह,
संयम तुम अपना,
कभी नहीं खोना।

सात तीए इक्कीस,
सात चौके अट्ठाईस,
रखना तुम हमेशा,
फर्स्ट आने की ख्वाहिश।

सात पंजे पैंतीस,
सात छेके ब्यालीस,
करना न चमचागिरी,
और न ही मालिश।

सात सत्ते उनचास,
सात अट्ठे छप्पन,
करना सेवा देश की ,
तोड़ के सारे बंधन।

सात नामे त्रेसठ,
सात दस्से सत्तर,
हिंदू,सिख, इसाई, मुस्लिम,
सारे ही हैं ब्रदर।

--डॉ॰ अनिल चड्डा

दो एकम दोतीन एकम तीनचार एकम चारपाँच एकम् पाँचछ: एकम छ:


Thursday, December 10, 2009

कामयाबी का ताबीज

कामयाबी का ताबीज

सेठ धनीमानी का व्यापार धूमधाम से चलता था ,सेठ के एक ही लड़का था .उसका नाम था धनीराम .वह व्यापार के झंझटों से अलग ही रहता था

एक दिन सेठ संसार से चल बसा .उसका सारा कारोबार धनीराम के कन्धों पर पड़ा .दुकानों का काम अच्छा चलता रहा .लेकिन अंत में कुछ बचत नही हुई .नया सेठ समझ नही पाया कि लाभ क्यों नही हुआ .उसने सोचा कि उस पर किसी ग्रह की दशा है

धनीराम खोटे ग्रह से छुटकारा पाने के लिए एक सिद्ध महात्मा के पास गया .महात्मा ने उसे एक ताबीज दिया .उसने धनीराम से कहा , " बेटा इसे हाथ में बाँध लो ,इसे बाँध कर तुम जहाँ -जहाँ जाओगे वहाँ लाभ होगा .एक वर्ष बाद इस ताबीज को मुझे वापस दे देना "

धनीराम को मुंहमांगा वरदान मिल गया .ताबीज बांधकर सबसे पहले वह रसोईघर में गया .वहाँ उसने देखा कि रसोइये चीनी और दूध खा -पी रहे थे .नौकर आटा - दाल चुरा कर रख रहे थे

धनीराम ने वहाँ का प्रबंध ठीक किया

इसके बाद दुकान गया .उसने देखा कि बहुत सा माल गोदाम में पड़ा सड़ रहा था ।कुछ नौकर चोरी से माल बेचते पकड़े गए .धनीराम को विश्वास हो गया कि सब ताबीज का ही प्रभाव है .अब वह इधर- उधर घूमकर सारा कारोबार
ख़ुद देखने लगा .इस साल उसे काफी मुनाफा हुआ .लेकिन उसे यह चिंता भी हुई कि ताबीज अब वापस करना होगा।
धनीराम महात्मा के पास गया .उसे ताबीज का चमत्कार बताया .उसने महात्मा से प्रार्थना की ,कि वह उसे एक वर्ष के लिए यह ताबीज और दे दें .महात्मा ने हँस कर कहा ,"इसमे तो कुछ भी शक्ति नही है। इसे खोल कर तो देखो "
धनीराम ने ताबीज खोलकर देखा .उसके भीतर एक छोटे से कागज़ पर लिखा था "यदि सफलता चाहते हो ,तो छोटी से छोटी बात की देखभाल ख़ुद करो "
महात्मा ने धनीराम को कामयाबी का राज समझाया .उसने कहा ,"लाभ ताबीज के कारण नही हुआ है, तुमने अपने हर काम की देखभाल ख़ुद की है .इसीलिए तम्हें कामयाबी मिली है .अब इस ताबीज को तुम फेक दो .जाओ ,बुद्धि का ताबीज पहन कर सिद्धि प्राप्त करो ."


Saturday, December 5, 2009

जागरण गीत

जागरण गीत ,

अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे ,
गीत गाकर मै जगाने आ रहा हूँ
अतल अस्ताचल तुम्हे जाने न दूंगा ,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ


कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम
साधना में सिहरकर मुड़ते रहे तुम ,
अब तुम्हे आकाश में उड़ने न दूंगा ,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ


सुख नहीं यह ,नीद में सपने संजोना ,
दुःख नहीं यह शीश पर गुरु भार ढोना
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक ,
फूल मै उसको बनाने आ रहा हूँ

देख कर मंझधार को घबरा न जाना ,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना ,
मै किनारे पर तुम्हे थकने न दूंगा ,
पार मै तुमको लगाने आ रहा हूँ


तोड़ दो मन में कसी सब श्रंखलाएँ
तोड़ दो मन में बसी सब संकीर्णताएँ
बिंदु बनकर मै तुम्हे ढलने न दूंगा ,
सिन्धु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ



तुम उठो ,धरती उठे ,नभ शिर उठाये ,
तुम चलो गति में नई गति झनझनाए
विपथ होकर मै तुम्हे मुड़ने न दूँगा
प्रगति के पथ पर बढाने आ रहा हूँ


सोहन लाल द्विवेदी


“जगहों के नाम पहचानें”

प्यारे बच्चो,
निम्नलिखित वाक्यों में अलग-अलग जगहों के नाम छुपे हुए हैं ।
कोशिश करके इनमें से उन नामों को ढ़ूँढ निकालो ।
1 मेरी आभा, रतजगा कर रही है ।
2 रमेश जा, पान लेकर आ ।
3 मेरा पुत्र अमृत, सरदार हो गया है ।
4 शीश के भाई ने रो-रो (कर) ममता को परेशान कर दिया ।
5 पर्वत की चढ़ाई, राक से भरी है ।
6 नन्ही मुन्नी बेला, रूस कर बैठी है ।
7 मेरे पुत्र प्रिय, मन लगा कर देश की सेवा कीजिए ।
8 पौधे की अवस्था जर-जर, मनी प्लांट सी हो गई है ।
9 सुशीला का पुत्र राज, स्थानांतरित हो लखनऊ आ गया है ।
10मैं भी काश, मीरपुर जा सकती ।
सौजन्य : डा0 शारदा वर्मा


Thursday, December 3, 2009

पहला झूठ

पहला झूठ

खेलते खेलते बच्चे ने मेरी जेब से पेन निकाला .वह पेन की निब फर्श पर मारने को हुआ ,तो मैंने पेन छीन लिया .वह रोने लगा .उसे चुप करने के लिए पेन देना पड़ा .वह फिरनिब को फर्श पर मारनेलगा ।

पेन कीमती था .मै नही चाहता था ,कि बच्चा उसे बेकार कर दे ।

मैंने बच्चे का ध्यान फिराया .पेन उससे छीन कर छिपा लिया .पर की ओर इशारा करते हुए मैंने कहा ,"पेन ....चिड़िया ।" पेन चिड़िया ले गई .इस बार वह रोया नही .आसमान की ओर नजर उठा कर देखने लगा ।
एक दिन वह बर्फी खा रहा था .मैंने कहा "बिट्टू ,बर्फी मुझे दे दो ।"
उसने बर्फी पीठ के पीछे छिपाई और बोला ,"बफ्फी .......चिया ......."