हम हैं बच्चे
हम हैं बच्चे दिल के सच्चे
समझ न हमको कच्चे कच्चे
जब अपनी पर हम आ जाते
बड़े बड़ों के छूटते छक्के ।
सात समंदर पार हो जाना
दूर गगन से तारे लाना
सब कुछ अपने बस में भैया
मेहनत से क्यूँ जी चुराना ।
दोस्त है अपनी लाल परी
हाथ में उसके छड़ी सुनहरी
जब भी मांगो, जो भी मांगो
सबकी इच्छा करती पूरी ।
सूरज अपने दादा लगते
दुनिया को रोशन कर देते
संग हमारे खेल खेल कर
जब वह छिपते हम घर आते ।
चंदा अपने मामा लगते
आँख मिचौली खूब खेलते
घटना, बढ़ना, गायब होना
गजब खेल हमको दंग करते ।
हम हैं बच्चे, दिल के सच्चे
सारी दुनिया से हम अच्छे
जब अपनी करतूत दिखाएं
बड़े बड़े खा जाते गच्चे ।
कवि कुलवंत सिंह
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12 पाठकों का कहना है :
चंदा अपने मामा लगते
आँख मिचौली खूब खेलते
घटना, बढ़ना, गायब होना
गजब खेल हमको दंग करते ।
हम हैं बच्चे, दिल के सच्चे
सारी दुनिया से हम अच्छे
जब अपनी करतूत दिखाएं
बड़े बड़े खा जाते गच्चे ।
" बहुत प्यारी और कोमल सी कवीता , अपने बचपन को याद दिलाती और मन को गुदगुदाती सी"
Regards
कुलवंत जी,बहुत बढिया बाल कविता है ।बधाई।
अच्छी लगी आपकी यह बाल कविता कवि जी !!
बहुत खूब कवि जी!
अंतिम पंक्तियों तक आते-आते तो मैं बचपन की कई यादों को गिन चुका था।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बढिया बाल मनसूबे कविता के माध्यम से .
aapki pyaari si komal si baal kavita bahut pasand aai(badhaai ho)....seema sachdev
कुलवंत जी बहुत ही प्यारी बाल कविता,
आलोक सिंह "साहिल"
धन्यवाद आप सभी का... लेकिन अभी कितने बच्चे लगभग देखते होंगे इस साइट को?
bachcho ke liye achchi kavita hai
unaki jaban par aane layak hai
aur unke shabdo me hi unke liye sandesh bhi
बढ़िया कवि जी बहुत बढिया..
वाह कुलवंत जी, बहुत सुन्दर कविता है। मेरी बधाई स्वीकारें।
कुलवंत जी अच्छी बालकविता लिखी है आपने
हम हैं बच्चे, दिल के सच्चे
सारी दुनिया से हम अच्छे
जब अपनी करतूत दिखाएं
बड़े बड़े खा जाते गच्चे ।
वाह
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