मेंढक की मस्ती
रिम-झिम, रिम-झिम पानी बरसा,
मेंढक नहीं पानी को तरसा,
टर्र, टर्र, टर्र, टर्र, शोर मचाये,
उछले-कूदे नाच दिखाये,
ठंड बड़ी मुश्किल से काटी,
गर्मी नहीं है साथ निभाती,
पानी की बौछार जो आई,
खिल गया मन, पा मन भाता साथी ।
-डा0अनिल चड्डा
रिम-झिम, रिम-झिम पानी बरसा,
मेंढक नहीं पानी को तरसा,
टर्र, टर्र, टर्र, टर्र, शोर मचाये,
उछले-कूदे नाच दिखाये,
ठंड बड़ी मुश्किल से काटी,
गर्मी नहीं है साथ निभाती,
पानी की बौछार जो आई,
खिल गया मन, पा मन भाता साथी ।
-डा0अनिल चड्डा
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11 पाठकों का कहना है :
वाह अनिल जी
मेडंक की मस्ती बखूबी लिखी है आपने
सुंदर बाल कविता
anil ji aapki choti si kavita bahut pasand aai , mendhak ki masti par maine bhi bachcho ko seekh deti ek kahaani likhi hai , jaldi hi baal-udyaan me bhejungi.....seema sachdev
ठंड बड़ी मुश्किल से काटी,
गर्मी नहीं है साथ निभाती,
पानी की बौछार जो आई,
खिल गया मन, पा मन भाता साथी ।
" अच्छी मन को गुदगुदाती पंक्तियाँ "
वाह डॉक्टर साहब..
बढिया मैढ़क की मस्ती...
होली के मौके पर..
ठंड बड़ी मुश्किल से काटी,
गर्मी नहीं है साथ निभाती,
पानी की बौछार जो आई,
खिल गया मन, पा मन भाता साथी ।
अंजुजी,सीमाजी,भूपेन्द्र्जी एवं सीमा गुप्ता जी,
आप सबको कविता पसन्द आई, उसका धन्यवाद!
सुंदर बाल कविता है यह अनिल जी
कविता पसन्द आने का शुक्रिया, रंजुजी ।
bahut khoob chadha Ji.. maza aa gaya..
मेढक की मस्ती वाकई लाजवाब है।
बहुत बढ़िया, अनिल जी
कवि कुलवंत, रजनीश एवं शैलेश जी,
मेरा प्रयास आप सभी को पसन्द आया, आभारी हूँ । आगे भी कोशिश करुँगा ।
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